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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३२८ ) लेखक का कथन है-फाल्गुने गगने फेने णत्वमिच्छन्ति नाम,-पुत्रः 1. भीष्म 2. कार्तिकेय 3. एक संकर जाति बर्बरा) 1. आकाश, अन्तरिक्ष-अवोचदेनं गगन- जिसका व्यवसाय मर्दे ढोना है 4. गंगा के घाट पर स्पृशा रघुः स्वरेण--रघु० ३।४३, गगनमिव नष्टतारम् बैठने वाला पंडा जो तीर्थयात्रियों का पथप्रदर्शन -पंच० ५।६, सोऽयं चन्द्रः पतति गगणात्--श०४, करता है, .--भृत् (पुं०) 1. शिव 2. समुद्र, मध्यम् अने० पा०, शि० ९।२७ 2. (गण में) शून्य गंगा का तल भाग,-यात्रा 1. गंगा नदी पर जाना 3. स्वर्ग। सम०-अग्रम उच्चतम आकाश,--अङ्गना 2. रोगी को गंगातट पर इसलिए ले जाना कि वहीं स्वर्गीय परी, अप्सरा,---अध्वगः 1. सूर्य 2. ग्रह 3. स्व- उसकी मृत्यु हो,-सागरः वह स्थान जहाँ गंगा समुद्र र्गीय प्राणी,-अम्बु (नपुं०) वर्षा का पानी,-उल्मुकः से मिलती है,- सुतः 1. भीष्म का विशेषण 2. कार्तिमंगलग्रह,-कुसुमम्, पुष्पम् आकाश का फूल अर्थात् केय का विशेषण,-ह्रदः एक तीर्थ स्थान का नाम । अवास्तविक वस्तु, असंभावना, दे० 'खपुष्प',--गतिः गङ्गाका, गङ्गका, गङ्गिका [गङ्गा-+क+टाप, ह्रस्वो 1. देवता 2. स्वर्गीय प्राणी--मेघ०४६ 3. ग्रह,-चर वा, पक्षे इत्वम् अपि ] गंगा। ('गगनेचर' भी) (वि०) आकाश में घूमने वाला गङ्गोलः एक रत्न जिसे गोमेद भी कहते हैं । (--) 1. पक्षी 2. ग्रह 3. स्वर्गीय आत्मा,-ध्वजः गच्छः [गम् ।श | 1. वृक्ष 2. (गण में) प्रक्रम का समय 1. सूर्य 2. बादल,--सद् (वि.) अन्तरिक्ष में रहने (अर्थात राशियों की संख्या)। वाला (पुं०) स्वर्गीय जीव-शि० ४५३,-सिन्धु गज़ (भ्वा०पर०-गजति गजित) 1. चिंघाड़ना, दहाड़ना (स्त्री०) गंगा की उपाधि, स्थ,--स्थित (वि०) -जगजुर्गजा:-भट्टि० १४१५ 2. मदिरा पीकर मस्त आकाश में विद्यमान, स्पर्शन: 1. वाय, हवा 2. आठ होना, व्याकुल होना, मदोन्मत्त होना। मरुतों में से एक। गजः [ गज-+अच् ] 1. हाथी-कचाचितौ विष्वगिवागजी गङ्गा गम्+गन्+टाप् ] 1. गंगा नदी, भारत की पवित्र- गजौ--कि० ११३६ 2. आठ की संख्या 3. लम्बाई की तम नदी, अधोऽधो गङ्गेय पदमुपगता स्तोकमथवा माप, गज (परिभाषा-साधारणनरांगल्या त्रिंशदंगलको --भर्तृ० ३।१०, रघु० २।२६, १३॥५७, (इसका गजः) 4. एक राक्षस जिसे शिव ने मारा था। सम० उल्लेख ऋग्वेद० १०।७५।५ में दूसरी नदियों के साथ --अग्रणी (पुं०) 1. सर्वश्रेष्ठ हाथी 2. इन्द्र के हाथी २ मिलता है) (इसके अतिरिक्त और दूसरी नदियों ऐरावत का विशेषण,-अधिपतिः हाथियों का के लिए भी जो भारत में पावन समझी जाती हैं, यह स्वामी, उत्तम हाथी, अध्यक्षः हाथियों का अधीक्षक, शब्द कभी २ प्रयुक्त किया जाता है) 2. गंगा देवी के .- अपसदः दुष्ट या बदमाश हाथी, सामान्य या नीच रूप में मूर्त गंगा (हिमवान् पर्वत की ज्येष्ठ पुत्री गंगा नसल का हाथी--,अशनः अश्वत्थ वृक्ष (--नम्) है, कहते हैं ब्रह्मा के किसी शाप के कारण गंगा को कमल की जड़,--अरि: 1. सिंह 2. शिव जिसने गज इस धरती पर आना पड़ा जहाँ वह शंतनु राजा को नामक राक्षस को मारा था,- आजीदः हाथियों से जो पत्नी बनी; गंगा के आठ पूत्र हए, जिनमें भीष्म सब अपनी जीविकोपार्जन करता है, महावत,- आननः, से छोटा था, भीष्म अपने आजीवन ब्रह्मचर्य तथा शौर्य --आस्यः गणेश का विशेषण,--आयर्वेदः हाथियों की के कारण विख्यात हो गया था। दूसरे मतानुसार चिकित्सा का विज्ञान,--आरोहः महावत, --आह्वम् वह भगीरथ की आराधना पर इस पृथ्वी पर आई, -... आह्वयम् हस्तिनापुर, - इन्द्रः 1. उत्तम हाथी, गजदे० 'भगीरथ' और 'जौँ' और तु० भर्तृ० ३।१०) राज - किं रुष्टासि गजेन्द्रमन्दगमने-शृंङ्गार० ७ सम०–अम्ब,-अम्भस् (नपुं०) 1. गंगाजल 2. वर्षा 2. इन्द्र का हाथी ऐरावत, कर्णः शिव का विशेषण, का विशुद्ध जल (जैसा कि आश्विन मास में बरसता ---कन्दः खाने के योग्य एक बड़ी जड़,--कर्माशिन् है), अवतारः 1. गंगा का इस पृथ्वी पर पदार्पण-भगी (पुं०) गरुड़,—गतिः (स्त्री०) 1. हाथी जैसी मंद रथ इव दृष्टगङ्गावतार:-का० ३२, (यहाँ इस शब्द का चाल, हाथी की सी चाल वाली स्त्री, ---गामिनी हाथी अर्थ-स्नान के लिए गंगा में उतरना भी है) 2. पुण्य की सी मन्द तथा गौरवभरी चालवाली स्त्री,---दघ्न, स्थान का नाम, उद्धवः गंगा का उद्गम स्थान, ----यस (वि.) हाथी जैसा ऊँचा,-- दन्तः 1. हाथी -क्षेत्रम् गंगा तथा उसके दोनों किनारों का दो २ का दांत 2. गणेश का विशेषण 3. हाथीदांत 4. खंटी कोस तक का प्रदेश,-चिल्ली एक जलपक्षी,-जः या ब्रेकेट जो दीवार में लगा हो, मय (वि.) हाथी1. भीष्म 2. कार्तिकेय,-दत्तः भीष्म का विशेषण,-द्वारम दांत से बना हुआ,-दानम् 1. हाथी के गण्डस्थल से समतल भूमि का वह स्थान जहाँ गंगा प्रविष्ट होती है बहने वाला मद 2. हाथी का दान.--- नासा हाथी का (हरिद्वार' भी उसी स्थान को कहते हैं), धरः गंडस्थल, ---पति: 1. हाथियों का स्वामी 2. विशाल1. शिव का विशेषण 2. समुद्र, पुरम् एक नगर का । काय हाथी-शि० ६।५५ 3. सर्वश्रेष्ठ हाथी,-पुङ्गवः For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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