________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1045 ) पः [सु+डु, पृषो० षत्वम् ] प्रसूति, प्रजनन / पोरशिक (वि.) (स्त्री०-की) [षोडशन्+ठक् ] षोडश (वि०) (स्त्री०-- शो) [षोग्शम् +डट् ] | सोलह भागों से युक्त, सोलह गुना - षोडशिर्को सोलहवाँ मनु० 2165,86 / / देवतोपचारः। षोडशम् (संख्या० वि०) ब० ब०, सोलह / सम.--अंशुः | पोरशिन् (पुं०) [षोडशन्+इनि] अग्निष्टोम यज्ञ शुक्रग्रह,-अङ्ग (वि०) एक प्रकार का गन्धद्रव्य, का रूपान्तर। -- अङ्गलक (वि०) छ: अंगुल की चौड़ाई का, अनिः | वोढा (अव्य०) [षष्+घाच्, षष उत्वम्, धस्य ष्टुत्वम् ) केकड़ा,- अधिस शुक्र ग्रह,-आवर्तः शंख, छ: प्रकार से। सम० - म्यासः मंत्र पढ़ते हुए शरीर -उपचारः (पुं०, ब०व०) किसी देवता को | स्पर्श के छः प्रकार,-मुखः छ: मंह वाला, कार्तिकेय, श्रद्धांजलि अर्पित करने की सोलह रीतियाँ, जिनकी -द्रोढा , जनोर्जनितषोढामुखः समिति बोढा सा गिनती यह है-आसनं स्वागतं पाद्यमय॑माचमनी- हाटकगिरेः---अश्व०७। यकम् / मधुपर्काचमस्नानं वसनाभरणानि च। ष्ठिव (म्वा० दिवा. पर० ष्ठीवति, ष्ठीव्यति, ष्ठपूत) गंधपूष्पे धूपदीपो नैवेद्यं वन्दनं तथा,-कल: चन्द्रमा 1. थूकना, मुंह से खखार निकालना, 2. राल टपकना, की सोलह कलाएं, जिनके नाम यह है- अमता -गट्टि० 1218, नि -, 1. प्रक्षेपण करना, निकालना, मानदा पूषा तुष्टिः पुष्टी रतिधुतिः। शशिनी धकेलना--श० 4 / 4, रघु० 2175. भट्टि. 141100, चन्द्रिका कान्तिज्योत्स्ना श्रीः प्रीतिरेव च / अङ्गदा 17.10, 18 / 14, काव्या० 1195 2. मुंह से बहार च तथा पूर्णामृता षोडश व कला:,- भुजा दुर्गा की निकालना मनु०४।१३२, याज. 31213 / एक मूर्ति, मातृका (स्त्री०) ब०व०, सोलह दिव्य व्ठीवनम्, ष्ठेवनम् [ष्ठी+ल्युट्, 'ष्ठि+ल्युट् ] माताएँ जिनके नाम निम्नांकित हैं- गौरी पना ____ 1. थूकना 2. लार, यूक, खखार। शची मेघा सावित्री विजया जया / देवसेना स्वघा | छपूत (भू० क. कृ.) [ष्ठि+क्त, ऊ ] थूका हुआ, स्वाहा मातरो लोकमातरः। शान्तिः पुष्टिकृति- खखारा हुआ। स्तुष्टिः कुलदेकात्मदेवताः // स्वक, ध्वस्त (भ्वा० आ० ष्वक्कते, वस्कते). जाना, षोडशषा (अव्य०) [ षोडशन्+घाच् ] सोलह प्रकार से / / हिलना-जुलना / स (अव्य०) सह, सम्, तुल्य या सदृश, और एक अथवा हुआ, दबाया हुआ, वश में किया हुआ 2. जकड़ा समान शब्दों के स्थान पर आदेश होने वाला उपसर्ग, हुआ, एक स्थान पर बाँधा हुआ 3.बेड़ियों से जकड़ा। जो विशेषण अथवा क्रियाविशेषण बनाने के लिए हुआ 4. बन्दी, कैदी, कारावासी-रघु० 3 / 20 संज्ञा शब्दों के साथ समास में प्रयक्त होकर निम्नांकित. 5. उद्यत, तैयार 6. व्यवस्थित, दे० सम् पूर्वक 'यम् / अर्थ प्रकट करता है (क) के साथ, मिला कर, के सम०-अञ्जलि (वि.) जिसने विनम्र प्रार्थना के साथ साथ, संयुक्त होकर, युक्त, सहित - सपुत्र, लिए हाथ जोड़े हुए हैं,-आत्मन् (वि०) जिसने मन सभार्य, सतृष्ण, सधन, सरोषम, सकोपम, सहरि आदि को वश में कर लिया है, नियंत्रितमना, आत्मनिग्रही। (ख) समान, सदृश,. सधर्मन् 'समान प्रकृति का', - आहार (वि०) मिताहारी,-उपस्कर (वि.). इसी प्रकार सजाति, सवर्ण (ग) वही, सोदर, सपक्ष, जिसका घर सुव्यवस्थित हो, जिसके घर का सामान सपिंड, सनाभि आदि, (पुं०) 1. साँप 2. वाय, हवा सब क्रमपूर्वक रक्खा हो, चेतस्, - मनस् (वि.) 3. पक्षी 4. 'षड्ज' नामक संगीत स्वर का संक्षिप्त मन को नियन्त्रण में रखने वाला, -प्राण (वि०) 5. शिव का नाम 6. विष्णु का नाम / जिसका श्वास नियंत्रित किया हुआ है, प्राणायाम का संयः[सम्+यम्+ड] कंकाल, पंजर / अभ्यास करने वाला, वाच (वि०) मूक, मौन रहने संयत् (स्त्री०) [ सम्+यम्-+क्विप्] युद्ध, संग्राम, वाला, मितभाषी। लड़ाई यः संयति प्राप्तपिनाकिलील:- रघु० 672, 1 संयत्त (वि.) [सम्+यत्+क्त] 1. सन्नद्ध, तत्पर, 7.39, 18120, कि० 1219, शि० 1615 / सम० तैयार महावीर० 5 / 51 2. सावधान, सतर्क / वरः राजा, राजकुमार। संयमः [सम्+यम्+अप् ] 1. प्रतिबंध, रोकथाम, नियंसंयत (भू० क० कृ०) [ सम् +यम्+क्त ] 1. रोका ! वण-श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुह्वति-भग० For Private and Personal Use Only