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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1044 ) अतिथि: आम का वृक्ष, आनन्दवर्धनः अशोक या / तवोपभोक्तं षष्ठांशमा इव रक्षितायाः--रघु० 2 / किकिरात वृक्ष, ज्य (वि.) जिस की डोरी भोरों 66, (उपज के भिन्न भिन्न भेद जिनके छठे भाग का से बनी है (जैसे कि कामदेव का धनुष)-प्राय- अधिकारी राजा है-मनु० 7131-2 में बताये गये चापं न वहति भयान्मन्मथः षट्पदज्यम् - मेघ० 73, हैं) वृत्तिः उपज के छठे भाग का अधिकारी राजा, प्रियः नागकेशर नाम का वृक्ष, "पदी (षट्पदी) -षष्ठांशवत्तेरपि धर्म एष:-श० 5 / 4, -- अन्नम् छठा 1. छ: पंक्तियों का श्लोक 2. भ्रमरी 3. जू,--प्रज्ञः भोजन, कालः तीन दिन में केवल एक बार भोजन (पद्मशः) जो छः विषयों से सुपरिचित है अर्थात् करने वाला, जैसा कि प्रायश्चित्तस्वरूप किया चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) या मानव- जाता है। जीवन के उद्देश्य और लोकप्रकृति, ब्रह्मप्रकृति-धर्मार्थ- षष्ठी [ षष्ठ+डीप ] 1. चान्द्रमास के किसी पक्ष की छठ काममोक्षेषु लोकतत्त्वार्थयोरपि। षट्सु प्रज्ञा तु यस्यासौ 2. (व्या० में) छठी विभक्ति या सम्बन्ध कारक षट्प्रज्ञः परिकीर्तितः / / 2. विलासी, कामासक्त पुरुष 3. कात्यायनी के रूप में दुर्गा का विशेषण, जो --बिनुः (षदिनुः) विष्णु का विशेषण, - भागः सोलह दिव्य मातृकाओं में से एक है। समः (पभागः) छठा भाग,भाग-श०२।१३, मनु० -तत्पुरुषः छठी. विभक्ति के लोप वाला तत्पुरुष 7 / 131, 8133, भुज (वि०) (षड्भुज) 1. छ: समास, ऐसे समास में.विग्रह करने पर पहला पद हैं सहायक जिसके, छ: कोनों वाला, (जः) षट्कोण सदैव छठी विभक्ति का होता है, पूजनम्,-पूजा (जा) 1. दुर्गा का विशेषण 2. तरबूज,-मासः बालक उत्पन्न होने के छठे दिन छठी देवी की पूजा (षष्मासः) छ: महीने का समय,-मासिक (वि.) करना। (षाण्मासिक) छमाही, अर्धवार्षिक,- मुखः (षण्मुखः) षहसानुः [सह-+आनु, असुक्, पृषो० षत्वम् ] 1. मोर कार्तिकेय का विशेषण-रघु० 17467, (-खा) तर- 2. यज्ञ। बूज,-रसम्-रसाः (पुं० ब० व०) (षड्सम् आदि) बाट (अव्य०) [ सह +वि, पृषो० षत्वं टत्वम् सम्बोधक छ: रसों की समष्टि - दे० 'रस' के अन्तर्गत,- रात्रम् अव्यय / (पात्रम्) छ: रातों का समय या अवधि,-वर्गः | | षादकौशिक (वि०) (स्त्री०-की) [ षट्कोश+ठक] (षड्वर्गः) 1. छ: वस्तुओं की समष्टि 2. विशेष रूप छः तहों में लिपटा हुआ। से मनुष्य के छः शत्रु, षडिपु' भी कहते हैं)-कामः पारवः [षड्+अ+अच् ततः स्वार्थे अण् ] 1. राग, कोषस्तथा लोभो मदमोही च मत्सरः। कृतारिषड्वर्ग- मनोवेग 2. गाना, संगीत 3. (संगीत में) एक राग जयेन-कि० 1 / 9, व्यजेष्ट षड्वर्गम् - भट्टि० 12, जिस में संगीत के सात स्वरों में से छ: स्वर प्रयुक्त --विशतिः (स्त्री०) (षड्वंशतिः) छब्बीस (षड्- होते है-पंचमः पञ्चभिः प्रोक्तः स्वरैः षड्भिस्तु विश छब्बीसवाँ),--विष (षड्विध) (वि०) छ: षाडवः। प्रकार का, छ: गुना--रघु०४।२६,-षष्टिः (स्त्री०) षागुण्यम् [षड्गुण+ष्यभ.11. छ: गुणों की समष्टि (पपष्टिः) छासठ,-सप्ततिः (षट्-सप्ततिः) 2. राजा के द्वारा प्रयुक्त छ: युक्तियाँ, राजनीति के छिहत्तर / छः उपाय,-शि० 2093, दे० 'गुण' के अन्तर्गत 3. छ: पष्टिः (स्त्री०) [षडगुणिता दशतिः नि०] साठ-मनु० से किसी संख्या का गुणन / सम० - प्रयोगः राजनीति 3177, याज्ञ. 384, °तम साठवाँ। सम०-भागः के छ: उपाय, या छ: युक्तियों का प्रयोग। शिव का विशेषण, मत्तः साठ वर्ष की आयु का हाथी षामातुरः [षण्णां मातृणाम् अपत्यम्, षण्मातृ+अण, जिसके मस्तक से मद चूता है.- योजनी (स्त्री०) उत्व, रपर ] छ: माताओं वाला, कार्तिकेय का साठ योजन का विस्तार या यात्रा,-संवत्सरः साठ विशेषण / वर्ष की अवधि या समय,-हायन: 1. (साठवर्ष की | वामासिक (वि.) (स्त्री०-की) [षण्मास+ठक] आयु का) हाथी 2. एक प्रकार का चावल / / 1. छमाही, अर्धवार्षिक 2. छ: महीने का,-- मौक्तिकापष्ठ (वि.) (स्त्री०-ठी) षण्णां पूरणः - षष् +डट, | नां पाण्मासिकानाम्-विक्ष. 1217 / बुक] छठा, छठा भाग--षष्ठं तु क्षेत्रजस्यांशं प्रदद्या- पाठ (वि.) (स्त्री०-ठी) [षष्ठ-+अण् स्वार्थे ] त्पैतृकाद्धनात् मनु० 9 / 164, 7 / 30, षष्ठे भागे छठा। -विक्रमा० 2 / 1, रघु० 17178 / सम० -- अंशः | विद्गः [ सिट+गन्, पृषो० षत्वम् ] 1. विलासी, ऐयाश, 1. सामान्य छठा भाग--याज्ञ० 3 / 35 2. विशेष कर कामुक, कामासक्त 2. प्रेमनिपुण, असंगत प्रेमी, उपजका छठा भाग जिसको कि राजा अपनी प्रजा से विट--पिगैरगद्यत ससंभ्रममेव काचित--शि० . भूमिकर के रूप में ग्रहण करता है-ऊघस्यमिच्छामि / 5 / 34 / 1 For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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