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( ३२२ ) .--अट: (खेऽट:) 1. ग्रह, 2. राहु, आरोही शिरोबिन्दु मण्डलम्-श० ७.११ 2. निश्चित, सम्मिश्रित 3. जड़ा -~-आपगा गंगा का विशेषण,--उल्क: 1. धमकेतु 2. ग्रह, हुआ, जटित, भरा हुआ (समासगत) मणि, रत्न ।
-उल्मुकः मंगल ग्रह,-कामिनी दुर्गा, -कुन्तल: शिव, खज [भ्वा० पर०... खजति, खजित ] मंथन करना, बिलोना, ---ग: 1. पक्षी--अधुनीत खगः स नकधा तनुम्-० | आंदोलित करना। २।२, मनु० १२।६३ 2. वायु, ह्वा--तमासीव यथा | खजः,-जकः [ खज्+अच्, कन् च ] मथानी, रई का सूर्यों वृक्षानग्निर्धनान्खगः---महा० 3. सूर्य 4. ग्रह
डंडा। -उदा० आपोक्लिमे यदि खगाः स किलेन्दुवार:-तारा० खजपम् [खज+कपन ] घी। 5. टिड्डा, 6. देवता 7. बाण, अधिपः गरुड का विशेषण खजाक: [ख आक | पक्षी । अंतक: बाज, श्येन, °अभिरामः शिव का विशेषण, | खजाजिका [ख+अ+टाप -- खजा, अज्+घा, आसनः 1. उदयाचल 2. विष्ण का विशेषण, इन्द्रः, खजाये आजो यस्याः ब० स०, खजाज+डी-|-कन् °ईश्वरः पतिः गरुड के विशेषण, 'वती (स्त्र०) पृथ्वी, +टाप, ह्रस्वः ] कड़छी चम्मच । स्थानम् 1. वृक्ष की खोडर 2. पक्षी का घोंसला, | खंज (भ्वा० पर०... खजति) लँगड़ाना, ठहर-ठहर कर -गंगा आक श-गंगा, गतिः (स्त्री०) हवा में उड़ान, चलना-खजन् प्रभञ्जनजनः पथिक: पिपासु:- नै० -मः पक्षी,-(खे) गमनः एक प्रकार का जलकुक्कुट, ११११०७ । ....गोल: आकाशमंडल, विद्या ज्योतिष विद्या, चमस. | खंज (वि.) [ख ।-अच् ] लँगड़ा, विकलांग, पंगु चाँद,-चरः (खेचर भी) 1. पक्षी 2. बादल 3. सूर्य -~-पादेन खञ्जः--सिद्धा०, मनु० ८।२४२, भर्तृ० १॥ 4. हवा 5. राक्षस (-री अर्थात् खेचरी) 1. उड़ने ६४। सम०---खेट:,--- खेलः खंजनपक्षी।। वाली अप्सरा 2. दुर्गा की उपाधि, जलम 'आकाशीय | खञ्जनः [खञ् | ल्युट ] खंजन पक्षी-- स्फुटकमलोदर जल' ओस, वर्षा, कोहरा आदि, ज्योतिस् (पुं०) खेलितखजनयुगमिव शरदि तड़ागम् - गीत० ११, नेत्रे जुगनू,-तमाल: 1. बादल 2. धूआँ,—द्योतः 1. जुगन् खञ्जनगञ्जने--सा० द०, एको हि खजनवरो नलिनी- खद्योताली विलसि ।निभां विद्युदुन्मेषदृष्टिम् -- मेघ दलस्थः----शृंगार० ४,७... नम् लंगड़ा कर जाने वाला, ८१ 2. सूर्य, द्योतनः सूर्य, --धूपः अग्निबाण - मुमुचुः सम० - रतम् सन्यासियों का गुप्त मथुन । खधूपान्-.-भट्टि० ३।५, ---परागः अंधकार, पुष्पम् खञ्जना, खञ्जनिका [खञ्जन | टाप, खञ्जन। ठन् + आकाश का फूल, असम्भवता को प्रकट करने की आलं० टाप् ] खञ्जन पक्षियों की जाति । अभिव्यक्ति इस प्रकार की ४ असंभ वनाएं इस श्लोक | खजरीटः,-टकः, खजलेखः [खज+ऋ । कीटन्, कन् में बतलाई गई हैं :-- मृगतृष्णाम्भसि स्टातः शशशृंग- च, खन्ज- लिख -- घा] खंजन पक्षी-भामि० धनुर्धतः, एष बन्ध्यासुतो याति खपुष्पकृतशेखर:- सुभा०, २१७८, चौर०८, मनु० ५।१४, याज्ञ० १११७४ अमरु,
भम् ग्रह,- भ्रान्तिः दयेन,-मणिः 'आकाश की मणि' सूर्य, मीलनम् निद्रालुता, थकावट, --भूतिः शिव का खटः [खट् -- अच्] 1. कफ 2. अन्धा कुआँ 3. कुल्हाड़ी विशेषण,—वारि (नपं०) वर्मा का पानी ओस आदि, 4. हल 5. घास सम० कटाहकः पीकदान, ... खादक: -बाय: बर्फ, पाला,- शय (खेशय भी) (वि.) 1. गीदड़ 2. कौवा 3. जानवर. शीशे का बर्तन । आकाश में विश्राम करने वाला या रहने वाला,-शरी- खटक: खट-बुन्] 1. सगाई-विवाह तय करने का व्यवरम् आकाशीय शरीर,-श्वासः हवा, वायु, समुत्थ, साय करने वाला-तु० घटक: 2. अधमुन्दा हाथ । --संभव (वि०) आकाश में उत्पन्न... -सिंधुः चाँद,
खटकामखम बाण चलाते समय हाथ की विशेष अवस्थिति। -स्तनी पृथ्वी, स्फटिकम् सूर्यकान्त या चन्द्रकान्त | खटिका खट-अच- कन्+टाप, इत्वम] 1. खोडया
मणि-हर (वि०) जिस (राशि) का हर शून्य हो।। 2. कान का बाहरी विवर। खक्खट (वि.) खक्ख अटन् ] कठोर, ठोस, टः खड़िया। खट (ड) क्किका-पार्श्वद्वार, सिड़की। खङ्करः [ख-+ +खच्, मुम् ] अलक, बालों की लट। खटिनी, खटी [ खट-इनि- डीप, खट् + अक्-डी ] खच् (भ्वा०---क्या० परखचति-खच्नाति, खचित) | खड़िया।
1. आगे आना, प्रकट होना 2. पुनर्जन्म होना 3. पवित्र खट्टन (वि०) [खट्ट+ ल्युट्] ठिंगना,- नः ठिंगना आदमी। करना, (चुरा० उभ०-खचयति, खचित) जकड़ना, खद्रा खल+अच्-+टाप] 1. खाट 2. एक प्रकार का बांधना, जड़ना,-उद्--,मिलाना, गडमड करना, जड़ना घास ।। -रघु० ८१५३, १३१५४, मुद्रा, ४।१२ ।
खट्टिः (पु०, स्त्री...) खट्ट । इन्) अर्थी । सचिन (वि.) खचत] 1. जकडा हुआ, संपुवत, भरा खट्टिकः खट्ट+अच्+टन्] 1) कसाई 2. शिकारी, बहे
हुआ,। अन्तमिश्रित, शाकुन्तनीहसचितं बिभ्रज्जटा-]". लिया।
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