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( ३२१
क्षैण्यम् [[ क्षीण + ष्यञ ] 1. सुकुमारता ।
विनाश 2
दुबलापन,
क्षेत्रम् [ क्षेत्र + अण् ] 1. खेतों का समूह 2. खेत । क्षरेय ( वि० ) ( स्त्री० [ क्षीर + ढञ ] दूधिया, दूध जैसा ।
यी )
ोड: [ शोड़ +घञ ] हाथी बांधने का खंभा । क्षोणि:, क्षोणी (स्त्री) • क्षै + डोनि, 1. पृथ्वी 2. एक (गणित में ) । क्षत (पुं० ) [ क्षुद् + तृच् ] मूसली, बट्टा । क्षोदः [ क्षुद् + घञ्ञ ]1. चूरा करना, पीसना 2. सिल ( जिस पर रखकर कोई चीज पीसी जाती है) 2. धूल, कण कोई छोटा या सूक्ष्मकण-उत्तर० ३।२। - ( वि० ) जो जांच पड़ताल या अनुसन्धान में ठहर सके ।
सम० --
क्षोदिमन् (पुं० ) [ क्षोद + इमनिच् ] सूक्ष्मता । क्षोभः [ क्षुभ् + घञ् ]1. डोलना, हिलना, लोटपोट होना
-- मेघ० २८, ९५, इसी प्रकार काननक्षोभः 2. हत्रकोले खाना - रघु० १५८, विक्रम० ३।११3. (क) आन्दोलन, डाँवाडोल होना, उत्तेजना, संवेग स्वयंवर | क्षोभकृतामभावः रघु० ७/३, अर्थेन्द्रियक्षोभमयुग्मनेत्रः पुनर्वशित्वाद्वलवन्निगृह्य - कु.० ३।६९, (ख) उकसाहट, चिढ़ - प्रायः स्वमहिमानं क्षोभात्प्रतिपद्यते जन्तुः
- श० ६/३१
क्षोभणम् [ क्षुभ् + णिच् + ल्युट् ] क्षुब्ध करना, व्याकुल करना - णः कामदेव के पाँच वाणों में से एक । क्षोम, मम् [क्षु + मन्] घर की छत पर बना कमरा, चौबारा |
क्षौरम् [ क्षुर + अण् ] हजामत ।
क्षोणि + ङीष् ] क्षौरिकः [ क्षौर + ठन् ] नाई ।
क्षौणि: - णी (स्त्री०) दे० क्षोणि । सम० प्राचीर: समुद्र, -भुज् (पुं०) राजा, भृत् (पुं०) पहाड़ । क्षौद्रः क्षुद्र - अण् ] चम्पक वृक्ष, द्रम् 1 हल्कापन 2. कमीनापन, ओछापन 3. शहद सक्षौद्रपटलैरिव - रघु० ४।६३ 4. जल 5. धूलकण सम०-जम् मोम | क्षौद्रेयम् [ क्षीद्र ठञ ] मोम |
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क्षौमः, -मम् [ क्षु + मन् + अण् ] 1. रेशमी कपड़ा, ऊनी कपड़ा - क्षौमं केनचिदिन्दुपाण्डुतरुणा माङ्गल्यमाविष्कृतम् - श० ४ । ५ - क्षोमान्तरितमेखले (अङ्के) रघु० १०८ 2. चौबारा 3. मकान का पिछला भाग, मम् 1. अस्तर 2. अलसी, मी सन ।
खः [ग्वव् + ] सूर्य, खम् 1. आकाश खं केशवोऽपर इवाक्रमितुं प्रवृत्तः -- मृच्छ० ५। २ यावद्गिरः खे मरुतां चरन्ति कु० ३१७२, मेघ० ९ 2. स्वर्ग, 3. ज्ञानेन्द्रिय 4. एक नगर 5. खेत 6. शून्य 7. एक बिन्दु, अनुस्वार 8. गर, द्वारक, विवर, रन्ध्र मनु० ९।४३१. शरीर
४१
( अदा० पर० - क्ष्णौति, क्ष्णुत) पैना करना, तेज करना । सम्-, ( आ०) तेज करना (आलं० भी ) भट्टि० ८४० । क्ष्मा [ क्षम+अच् उपधालोपः ] 1. पृथ्वी, ( पुत्रं) क्ष्मां लम्भयित्वा क्षमयोपपन्नम् - रघु० १८१९, किं शेषस्य भरव्यथा न वपुषि क्ष्मां न क्षिपत्येष यत् मुद्रा० २११८ 2. (गणित में ) एक की संख्या । सम० -ज: मंगलग्रह, -प:, पतिः, भुज् (पुं० ) राजा, कविक्ष्मापतिः - गीत० १, देशानामुपरि क्ष्मापा:- पंच० १।१५५, -भृत् (पुं०) राजा या पहाड़ ।
क्ष्माय् (भ्वा० आ० - क्ष्मायते, क्ष्मायित) हिलाना, कांपना -चक्ष्माये च मही - भट्टि० १४/२१, १७/२३ । क्ष्विड् ( स्वा० उभ० --- -श्वेडति - ते, क्ष्वेट्ट या क्ष्वेडित) भिनभिनाना, दहाड़ना, चहचहाना, गुर्राना, बुदबुदाना, अस्पष्ट ध्वनि करना - मनु० ४१६४ ।
क्ष्विड़ ( भ्वा० आ०) क्ष्विद् ( दिवा० पर० - क्ष्विद्यति, क्ष्वेदित, क्ष्विण्ण), 1. गीला होना, चिपचिपा होना 2. ( वृक्ष का दूध या ) रस निकलना, रस छोड़ना, मवाद बहना, पसीजना, प्र--, बुदबुदाना, भिनभिनाना भट्टि० ७ १०३ ।
वेड: [ विड् + घञ, अच् वा ] 1. शब्द, शोर, कोलाहल
2. विष, जहर - गुणदोषो बुधो गृह्णन्निन्दुक्ष्वेडाविवेश्वरः, शिरसा श्लाघते पूर्वं परं कण्ठे नियच्छति - सुभा० 3. आर्द्र या तर करना 4. त्याग, डा 1. शेर की दहाड़ 2. युद्ध के लिए ललकार, रणगुहार 3. बाँस । वेडितम् [ दिवड + क्त ] सिंह गर्जना । क्ष्वेला [ क्ष्वेल् + अ + टाप् ] खेल, एसी, मजाक ।
के द्वारक ( जो गिनती में ९ हैं अर्थात् मुंह, दो कान, दो आँखें, दो नाथुनें, गुदा तथा जननेन्द्रिय ) - खानि चैव स्पृशेदद्भि: - मनु० २२६०, ५३, ४ १४४, याज्ञ० १।२० तु० कु० ३।५० 10. घाव 11 प्रसन्नता, आनन्द 12. अभ्रक 13. कर्म 14. ज्ञान 15. ब्रह्मा । सम०
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