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( २७६ मित्र,-स किंसखा साधु न शास्ति योऽधिपम् ---कि०
१।५। किम् (सर्व०वि०) (कर्त० ए० व०, ५०-क:) [स्त्री०
'का] [नपुं०--किम् ] 1. कौन, क्या, कौनसा | (प्रश्नवाचक के रूप में)-प्रजासु क: केन पथा प्रयातीत्यशेषतो वेदितुमस्ति शक्तिः --श० ६२६, करुणाविमुखेन मृत्युना हरता त्वां वद किं न मे हृतम -----रघु० ८।६७, का खल्वनेन प्रार्थ्यमानात्मना विकत्थते --विक्रम० २, कः कोऽत्र भोः, सर्वनाम के रूप में यह शब्द कभी कभी कार्य करने की शक्ति या अधिकार' को जताने के लिए प्रयुक्त होता है--उदा० के आवा परित्रातुं दुष्यन्तमाक्रन्द--श० १, 'हम कौन हैं ?' अर्थात् 'हममें क्या शक्ति है ?' आदि 2. नपु० (किम) संज्ञा शब्दों के करण के साथ प्रयुक्त होकर बहुधा अर्थ होता है, क्या लाभ है ? ---कि स्वामिचेष्टानिरूपणेन ---हि० १, 'लोभश्चेदगुणेन किम्' आदि भर्त० १५५, 'कि तया दृष्टया' श० ३, कि कुलेनोपदिष्टेन शीलमेवात्र कारणम्-मच्छ० ९७, प्रायः 'अनिश्चय' अर्थ को प्रकट करने के लिए, 'किम' के साथ 'अपि' 'चित्' 'चन' 'चिदपि या 'स्वित जोड़ दिया जाता है--विवेश कश्चिज्जटिलस्तपोवनम्- कु. ५।३० कोई तपस्वी'; कापि तत एवागतवती -----मा० १, कोई स्त्री; कस्यापि कोऽपीति निवेदितं च. ११३३, किमपि किमपि जल्पतोरक्रमेण --3. १२२७; कस्मिंश्चिदपि महाभागधेयजन्मनि मन्मभविकारमुपलक्षितवानस्मि-मा० १, किमपि, किंचित् 'थोड़ा सा' 'कुछ'-याज्ञ० २।११६, उत्तर० ६।३५, 'किमपि' का अर्थ 'अवर्णनीय' भी है, दे० अपि, 'संभावना' के अर्थ को जतलाने के लिए कभी कभी 'किम्' के साथ 'इव' भी जोड़ दिया जाता है (अधिकतर काल के साथ बल और सौंदर्य को जोड़ने वाला) -विना सीतादेव्या किमिव हि न दुःखं रघुपतेः-उत्तर० ६।३०, किमिव हि मधुराणां मण्डनं नाकृतीनाम् ----शा० ११२०, 'इव' को भी दे, (अव्य०) 1. प्रश्नवाचक निपात, जातिमात्रेण किं कश्चिद्धन्यते पूज्यते क्वचित् --हि. ११५८, 'मारा जाता है या पूजा जाता है। आदि, ततः किम्-तो फिर क्या 2. 'क्यों' 'किसलिए' अर्थ को प्रकट करने वाला अव्यय-किमकारणमेव दर्शनं विलपन्त्य रतये न दीयते--कू० ४७ 3. क्या, प्रश्नवाचक या ('या' की भावना को प्रकट करने वाले सहसंबंधी शब्द–किम, उत, उताहो, आहोस्वित्, वा, किंवा, अथवा, इन शब्दों को देखो)। सम०-अपि (अध्य०) 1. कुछ अंश तक, कुछ, बहुत अंशों तक 2.बर्णनातीत रूप से, अवर्णनीय रूप से (गण, परिमाण व प्रकृति आदि) 3. अत्यधिक, कहीं अधिक, किमपि ।
) कमनीयं वपुरिदम् श० ३, किमपि भीषणं किमपि करालम्-आदि,—अर्थ (वि.) किस उद्देश्य या प्रयोजन बाला किमर्थोऽयं यत्नः,-अर्थम् (अव्य०) क्यों, किसलिए,---आख्य (वि०) किस नाम वाला ----किमाख्यस्य राजर्षेः सा पत्नी,---श० ७,-इति (अव्य०) क्यों निस्सन्देह, किस लिए निश्चयार्थ, किस प्रयोजन के लिए (प्रश्न पर बल देने वाला), तत्किमित्य दासते भरता:-..-मा० १, किमित्यपास्याभरणानि यौवने धृतं त्वया वार्यकशोभि वल्कलम् -- कु० ५।४४, --उ, --उत 1. क्या, या (सन्देह या अनिश्चय को प्रकट करने वाला);-किम विविसर्पः किमु मदः --उत्तर० ११३५, अमरु ९ 2. क्यों (निस्संदेह), प्रियसत्सार्थः किम त्यज्यते 3. और कितना अधिक, कितना कम,-यौवनं धनसम्पत्तिः प्रभुत्वमविवेकिता, एककमप्यनर्थाय किम यत्र चतुष्टयम । हि० प्र० ११, सर्वाविनयानामेकैकमप्येषामायतनं किमुत समवायः --का० १०३, रघु०१४१६५, कु० ७१६५
करः नौकर, सेवक, दास अवेहि मां किङ्करमष्टमूर्तेः- रघु० २।३५, (रा) सेविका, नौकरानी (रो) सेवक की स्त्री, कर्तव्यता - कायंता वह अवस्था जब कि मनुष्य अपन मन में सोचता है कि अब क्या करना चाहिए.....किंकर्तव्यतामढः (यह समझने में असमर्थ या घबराया हुआ कि अब क्या करना चाहिए), .-कारण (वि०) क्या कारण या क्या तर्क रखने वाला,--किल (अव्य०) कैसी दयनीय अवस्था (असंतोष या दुःख, को अभिव्यक्त करने वाला—पा० ३।३।१५१), न संभावयामि न मर्पयामि तत्रभवान् कि किल वृषलं याजयिष्यति-सिद्धा०,-क्षण (वि०) जो कहता है कि 'एक मिनट का है ही क्या', एक आलसी पुरुष जो क्षणों की परवाह नहीं करता है -हि० २।९१,--गोत्र (वि०) किस परिवार से सम्बन्ध रखने वाला,-च (अव्य०) इसके अतिरिक्त और फिर, आगे,---चन (अव्य०) कुछ दर्जे तक, थोड़ा सा,चित् (अव्य०) कुछ दर्जे तक, कुछ, थोड़ा सा - किंचिदुत्कान्तशैशवी-रधु० १५।३३, २०४६, १२।२१, ज्ञ (वि.) थोड़ा सा जानने वाला, पल्लवग्राही, कर (वि.) कुछ करने वाला, उपयोगी, - काल:---कुछ समय, थोड़ा सा समय प्राणः थोड़ा सा जीवन रखने वाला, मात्र (वि.) थोड़ा सा, -छन्दस् (वि.)किस वेद से अभिज्ञ,--तर्हि (अव्य०) तो फिर क्या, परन्तु, तथापि,-तु (अव्य०) परन्तु, तो भी, तथापि, इतना होते हुए भी-अवैमि चैनामनघेति किन्तु लोकापवादो बलवान्मतो मे...रघु. १४१४०, श६५,-देवत (वि.) किस देवता से सम्बद्ध,-नामधेय, नामन् (वि.) किस नाम वाला,
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