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कोड: [ऋड+घञ्] 1. सूअर 2. वृक्ष की खोडर, गढ़ा। ---वारणः,-सूदन: 1. कार्तिकेय और 2. परशुराम के
-हा हा हन्त तथापि जन्मविटपिकोडे मनो धावति-उद्धट विशेषण। 3. सीना, वक्षः स्थल, छाती, कोडोक छाती से लगाना | क्रौर्यम् [क्रूर+व्या क्रूरता, कठोरहृदयता।
-भर्त० २।३५ 4. किसी वस्तु का मध्यभाग--विक्र- | क्लन्द (भ्वा० पर०-क्लन्दति, क्लन्दित) 1. पुकारना, मांक. ११७५-दे० 'क्रोड' (नपुं०) 5. शनिग्रह का चिल्लाना 2. रोना, विलाप करना, (भ्वा० आ० विशेषण,-डम्डा 1. छाती, सीना, कन्धों के बीच —क्लन्दते या क्लदते) घबड़ा जाना। का भाग 2. किसी वस्तु का मध्यवर्ती भाग, गढ़ा, क्लम् (म्वा०-दिवा०, पर०-क्लामति, क्लाम्यति, क्लान्त) कोटर। सम०-अक:-अघ्रिः , पावः कछुवा,-पत्रम् थक जाना, थक कर चूर होना, अवसन्न होना-न 1. प्रान्तवर्ती लेख 2. पत्र का पश्चलेख 3. सम्पूरक चक्लाम न विव्यथे-भट्टि० ५।१०२, १४११०१, वि-, 4. वसीयतनामे का परवर्ती उत्तराधिकार-पत्र ।
थक जाना। कोडीकरणम् [क्रोड्+च्चि++ ल्युट्] आलिंगन करना, | क्लमः, क्लमयः [क्लम्+घञ, अथच् वा थकावट, क्लान्ति छाती से लगाना।
अवसाद-विनोदितदिनक्लमाः कृतरुचश्च जाम्बूनदैः क्रोडीमुखः [क्रोडयाः मुखमिव मुखमस्या:-ब० स०] गेंडा। --शि० ४।६६, मनु० ७.१५१, श० ३।२१ । कोषः [क्रुध+घञ] 1. कोप, गुस्सा-कामाक्रोधोऽभिजा- क्लान्त (वि.) [क्लम्+क्त] 1. थका हुआ, थक कर चूर
यते-भग० २।६२, इसी प्रकार क्रोधान्धः, क्रोधानल: हुआ,--तमातपक्लान्तम्-रघु० २।१३, मेघ०१८,३६, 2. (सा० शा० में) क्रोध एक प्रकार की भावना है विक्रम० २।२२ 2. मुाया हुआ, म्लान--क्लान्तो जिससे रौद्ररस का उदय होता है। सम-उजित मन्मथलेख एष नलिनीपत्रे नखरर्पितः-श० ३१३६, (वि०) क्रोध से मुक्त, शान्त, स्वस्थ,--मूछित (वि.) रघु०१०।४८ 3. दुबला-पतला। क्रोध से अभिभूत या क्रोधोन्मत्त ।
क्लान्ति (स्त्री०) क्लम्+क्तिन] थकावट । सम-छिद क्रोधन (वि०) [क्रुध् + ल्युट्गुस्से से भरा हुआ, क्रोधा- (वि.) थकावट दूर करने वाला, बलदायक ।
विष्ट, क्रुद्ध, चिड़चिड़ा-यद्रामेण कृतं तदेव कुरुते | क्लिद् (दिवा० पर०—क्लिद्यति, क्लिन्न) गीला होना, द्रौणायनिः क्रोधनः-वेणी० ३।३१,--नम् क्रुद्ध होना, आर्द्र होना, तर होना-प्रेर० तर करना, गीला करना कोप।
---न चैन क्लेदयन्त्यापः-भग० २।२३, भट्टि. १८॥ क्रोधालु (वि०) [ऋ---आलची क्रोधाविष्ट, चिड़चिड़ा, ११। गुस्सैल।
क्लिन (वि०) [क्लिद्+क्त] गीला, तर। सम०- अक्षा कोशः [श+घञ्] 1. चिल्लाना, चीख, चीत्कार, कूका (वि.) चौंधियाई आँखों वाला।
देना, कोलाहल 2. चौथाई योजन, एक कोस-क्रोशाध क्लिश i (दिवा० आ०--(कुछ के मत में) पर०, क्लिश्यते प्रकृतिपुरःसरेण गत्वा-रघु० १३१७९, समुद्रात्पुरी क्लिष्ट, क्लिशित) 1. दुःखी होना, पीड़ित होना, कष्ट क्रोशो-या-क्रोशयोः । सम०-तालः,-ध्वनिः एक उठाना-अप्युपदेशग्रहणे नातिक्लिशते वः शिष्याः बड़ा ढोल।
---मालवि० १, त्रयः परार्थे क्लिश्यन्ति साक्षिणः कोशन (वि.) [क्रुश्+ल्युट्] चिल्लाने वाला,-नम् चीख
प्रतिभूः कुलम् ---मनु० ८।१६९ 2. दुःख देना, सताना, चिल्लाहट ।
ii (ऋया. पर०-क्लिश्नाति, क्लिष्ट, क्लिशित) कोष्टु (पुं०) (स्त्री०---ष्ट्री) [क्रुश्+तुन] गीदड़ (इस
दुःख देना, पीड़ित करना, सताना, कष्ट देना,-- शब्द की रूप रचना में यह शब्द सर्वनाम स्थान में
क्लिश्नाति लब्धपरिपालनवृत्तिरेव-...श० ५।६, एवअनिवार्यतः क्रोष्ट्र बन जाता है, तथा अन्यत्र कोष्ट, एवं
माराध्यमानोऽपि क्लिश्नाति भुवनत्रयम्-कु० २१४०, खरादि' में द्वि० तथा पष्ठो व०व० को छोड़कर सर्वत्र रघु० १११५८। विकल्प से)।
क्लिशित,क्लिष्ट (वि०) [क्लिश्+क्त] 1. दुःखी, पीडित, कौञ्चः [क्रुञ्च+अण्] जलकुक्कुटी, कुररी, बगला-मनोहर- संकट ग्रस्त 2. कष्टग्रस्त, सताया हुआ 3. मुझया
क्रौंचनिनादितानि सीमान्तराण्यत्सुकयन्ति चेत:----ऋतु० हुआ 4. असंगत, विरोधी-उदा. माता मे बन्ध्या ४१८, मनु०१२१६४ 2. एक पर्वत का नाम (कहते 5. परिष्कृत, कृत्रिम (रचना आदि) 6. लज्जित । है कि यह पहाड़ हिमालय का पोता है, तथा कार्तिकेय | क्लिष्टिः (स्त्री०) [क्लि+क्तिन् ] 1. कष्ट वेदना, दुःख, एवं परशुराम ने इसे बींध दिया है) हंसद्वार भग- | पोडा 2. सेवा। पतियशोवर्म यत्क्रौंचरन्ध्रम् -- मेघ० ५७ । सम० क्लीब (ब) (वि०) [क्लीब् (व)+क] 1. हिजड़ा नपुं--अदनम् कमलडंडो के रेशे, अरातिः,-अरिः,-रिपुः सक, बधिया किया हुआ—मनु० ३।१५०, ४।२०५, 1. कार्तिकेय का विशेषण 2. परशुराम का विशेषण । याज्ञ. ११२२३ 2. पुरुषार्थहीन, भीरु, दुर्बल, दुर्बलमना
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