________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( २१० )
घा मा भू
करना,
करना, सफ़दा
2. संबंधबोधक अव्यय के रूप में इसका अर्थ है:-(क)। 3. समझ, मति 4. अटकल, अनमान 5. संलक्ष्यता, अधिक, पर (संबं० के साथ, कर्म के साथ बिरल आविर्भाव (मीमांसकों ने 'उपलब्धि' को प्रमाण का प्रयोग,) शि० ११३३ (ख) सिर से पैर तक (ग) के एक भेद माना है) दे० 'अनुपलब्धि' । पीछे (संबं के साथ)।
उपलम्भः [उप+लभ+घञ , नुम् ] 1. अभिग्रहण-अस्माउपरीतकः [ उपरि+5+क्त+कन् ] रतिक्रिया का आसन दङगुलीयोपलम्भात्स्मृतिरुपलब्धा-श०७ 2. प्रत्यक्ष
विशेष ('विपरीतक' भी कहलाता है)-ऊरावेकपदं ज्ञान, अभिज्ञान, स्मति से भिन्न संबोध (अर्थात अनुभव) कृत्वा द्वितीयं स्कन्धसंस्थितं, नारी कामयते कामी बन्धः —प्राक्तनोपलभ मा० ५ ज्ञातौ सुतस्पर्शसुखोपलम्भात् स्यादुपरीतकः । शब्द० ।
-रघु०१४।२ 3. निश्चय करना, जानना-अविघ्नउपरूपकम् [उपगतं रूपकं दृश्यकाव्यं सादृश्येन-प्रा० स०] क्रियोपलम्भाय---श०१।
घटिया प्रकार का नाटक, इसके निम्नांकित १८ भेद | उपलालनम् [उप+लल-णिच् + ल्युट्] लाड प्यार गिनाये गए हैं:-नाटिका त्रोटक गोष्ठी सट्टकं नाट्य- | करना । रासकम्, प्रस्थानोल्लाप्य काव्यानि खणं रासकं तथा, | उपलालिका [ उप+लल+वल, इत्वम् ] प्यास । संलापकं श्रीगदितं शिल्पक च विलासिका, दुर्मल्लिका
उपलिङ्गम् [प्रा० स०] अपशकून, दैवी घटना जो अनिष्ट प्रकरणी हल्लीशो भाणिकेति च । सा० द० २७६ ।
__सूचक हो। उपरोधः [ उप-रुध् +घञ ] 1. अवबाघा, रुकावट, रोक उपलिप्सा [ उप-+ लभ+सन्+अ+टाप् ] प्राप्त करने
--रघ० ६१४४ शि० २०७४ 2. बाधा, कष्ट- | की इच्छा। -तपोवननिवासिनामुपरोधो मा भुत्-श० १, अनुग्रहः उपलेपः । उप + लिप्+घञ्] 1. लेप, मालिश 2. सफाई खल्वेष नोपरोध:--विक्रम० ३ 3. आच्छादित करना, करना, सफ़ेदी पोतना 3. अवबाधा, जड होना, घेरा डालना, अवरुद्ध करना 4. संरक्षा, अनुग्रह ।
(ज्ञानेन्द्रियों का) सुन्न होना। उपरोधक (वि.) [उप+रुध् +वल] 1. अवबाधक | उपलेपनम् [ उप-+-लिप् + ल्यट 11. मालिश, लेप, पोतना
2. आड़ करने वाला, घेरा डालने वाला,-कम्, भीतर 2. मलहम, उबटन । का कमरा, निजी कमरा।
उपवनम् [प्रा० स०] बाग, बगीचा, लगाया हुआ जंगल उपरोषनम् [ उप+रुध् + ल्युट ] अवबाधा, रुकावट आदि –पाण्डुच्छायोपवनवृतयः केतकैः सूचिभिन्नैः----मेघ० दे. उपरोध ।
२३, रघु० ८७३, १३।७९, लता-उद्यान की बल। उपलः [ उप+ला-क] 1. पत्थर, पाषाण—उपलशकल- | उपवर्णः [उप-वर्ण+घञ ] सूक्ष्म या ब्योरेवार वर्णन ।
मेतदद्रेक गोमयानाम्-मद्रा० ३.१५-कान्ते कथं | उपवर्णनम् [ उप+वर्ण+ल्युट् सूक्ष्म वर्णन, ब्योरे वार घटितवानपलेन चेतः-शृंगार० ३, मेघ०१९, श० चित्रण-अतिशयोपवर्णन व्याख्यानम्-सुश्रुत, याज्ञ० १११४2. मूल्यवान् पत्थर, रत्न, मणि ।
१।३२० । उपलक: [ उपल+कन् ] पत्थर,--ला 1..रेत, बालुका | उपवर्तनम् [उप+वृत्+ल्य ट्] 1. व्यायामशाला 2. परिष्कृत शर्करा।
2. जिला या परगना 3. राज्य, 4. कीचड़, दलदल । उपलक्षणम् [उप+लक्ष+ल्याट ] 1. देखना, दृष्टि डालना, उपवसथः [ उप+बस+अथ ] गाँव ।
अंकित करना-वेलोपलक्षणार्थम् --श०४ 2. चिह्न । उपवस्तम् [ उप+वस् (स्तम्भे)+क्त ] उपवास, व्रत। विशिष्ट या भेदक रूप-विक्रम० ४.३३ 3. पद, पदवी उपवासः [ उपवस्+घा ] 1. व्रत-सोपवासस्त्र्यहं वसेत् 4. किसी ऐसी बात का ध्वनित होना जो वस्तुतः कही __--याज्ञ. १।१७५, ३.१९०, मनु० ११११९६ न गई हो, किसी अतिरिक्त वस्तु की ओर या अन्य 2. यज्ञाग्नि का प्रदीप्त करना। किसी समरूप पदार्थ की ओर संकेत जबकि केवल एक | उपवाहनम् [ उप-+ बह+णिच् + ल्युट ] ले जाना, निकट का ही उल्लेख किया गया हो, समस्त वस्तु के लिए लाना। उसके किसी एक भाग का कथन, पूरी जाति को प्रकट उपवाह्यः,-ह्या [ उप-वह --ण्यत्, स्त्रियां टाप् ] 1. राजा करने के लिए व्यक्ति की ओर संकेत आदि (स्वप्रति- की सवारी का हाथी या हथिनी,-- चन्द्रगप्तोपवाह्यां पादकत्वे सति स्वेतरप्रतिपादकत्वम्)-मन्त्रग्रहणं गजवा-- मद्रा २ 2. राजकीय सवारी।
ब्राह्मणस्याप्यपलक्षणम् पा० ११।४।८० सिद्धा० । उपविद्या | प्रा० स०] सांसारिक ज्ञान, घटिया ज्ञान । उपलरिषः (स्त्री०) [उप+लभ+क्तिन् ] 1. प्राप्ति, | उपविषः-षम् [प्रा० स० ] 1. कृत्रिम जहर 2. निद्रा
अवाप्ति, अभिग्रहण-वृथा हि मे स्यात्स्वपदोपलब्धिः जनक, मूर्खाकारी नशीली औषध--अर्कक्षीरं स्नहीक्षीरं --रघु० ५/५६, ८1१७ 2. पर्यवेक्षण, प्रत्यक्षज्ञान, तथैव कलिहारिका, धतूरः करवीरश्च पंच चोपविषाः ज्ञान -नाभाव उपलब्धेः-तु० न्या० सू० २।२८ । स्मृताः ।
For Private and Personal Use Only