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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वह केवल एक ही प्रेयसी में अनुरक्त है 3. शिव या या सम्ब० के साथ)-दक्षिणेन वृक्षवाटिकामालाप इव विष्णु का विशेषण । सम०-- अग्निः दक्षिण की ओर . श्रयते-- श० १, दक्षिणेन ग्रामस्य । स्थापित अग्नि, इसको 'अन्वाहार्यपचन' भी कहते दग्ध (भू० क० कृ०) [दह +क्त] 1. जला हुआ, आग में है,..अन (वि०) दक्षिण की ओर संकेत करता हुआ, भस्म हुआ 2. (आलं०) शोकसंतप्त, सताया हुआ, -~-अचल: दक्षिणी पहाड़ अर्थात् मलयपर्वत,-अभिमुख दुःखी 3. दुभिक्षग्रस्त 4. अशुभ 5. शुष्क, नीरस, स्वाद(वि०) दक्षिण की ओर मुंह किये हुए, दक्षिणोन्मुख, हीन 6. दुर्वत्त, अभिशप्त, दुष्ट ('दुर्वचन' सूचक शब्द, ---अयनम् भूमध्य रेखा से दक्षिण की ओर सूर्य की समास का प्रथम पद)- नाद्यापि में दग्धदेहः पतति प्रगति, वह आधावर्ष जब कि सूर्य उत्तर से दक्षिण की - उत्तर० ४, अस्य दग्धोदरस्यार्थे कः कुर्यात्पातकं ओर बढ़ता है, शरद् की दक्षिणी अयन सीमा,--अर्धः महत्-हि० १६८, इसी प्रकार 'दग्धजठरस्यार्थे' 1. दायाँ हाथ 2. दाहिना या दक्षिणी पार्श्व,—आचार भर्त० ३।८। (वि.) 1. ईमानदार, आचरणशील 2. पावन अनुष्ठान दग्धिका [ दग्ध+कन् + टाप, इत्वम् ] मुर्मुरे, भुने हुए के अनुसार शक्ति का उपासक, -आशा दक्षिण दिशा, चावल। पतिः यम का विशेषण, - इतर (वि०) 1. बायाँ । दध्न (वि०) (स्त्री०- नी) ऊँचाई, गहराई या पहुँच (हाथ या पैर) कु० ४।१९ 2. उत्तरी (-रा) उत्तर की भावना को प्रकट करने के लिए संज्ञा शब्दों के दिशा,-उत्तर (वि०) दक्षिण उतर की ओर मुड़ा साथ लगने वाला प्रत्यय--उरुदघ्नेन पयसोत्तीर्य-का० हआ, वृत्तम् मध्याह्न रेखा,---पश्चात् (अव्य): ३१०, कीलालव्यतिकरगुल्फदध्नपङ्कः (मार्गः)-मा० दक्षिण पश्चिम की ओर,--पश्चिम (वि.) दक्षिण ३११७, ५।१४, याज्ञ० २।१०८।। पश्चिमी, (-मा) दक्षिण पश्चिम दिशा,-पूर्व, ----प्राच दण्ड (चरा० उभ० दण्डयति-ते, दण्डित) सजा देना, (वि०) दक्षिण पूर्वी,-पूर्वा,--प्राची दक्षिण पूर्व दिशा, जुर्माना करना, मरम्मत करना, (१६ द्विकर्मक धातुओं -समुद्रः दक्षिणी सागर,-स्थः सारथि। में से एक धातु) तान् सहस्रं च दडण्येत् .....मनु० दक्षिणतः (अव्य०) [दक्षिण+तसिल | 1. दाईं ओर से या ९।२३४, ८।१२३, याज्ञ० २।२६९, स्थित्यं दण्डयतो दक्षिण दिशा से 2. दाई ओर को 3. दक्षिण दिशा की दण्डधान्-~रधु० १।२५। ओर (सम्बं० के साथ)। दण्डः --- डम् [ दण्ड + अच् ] 1. यष्टिका, डंडा, छड़ी, गदा, दक्षिणा (अव्य०) [दक्षिण+आच ] 1. दाईं ओर, दक्षिण मुद्गर, सोटा--पततु शिरस्यकाण्ड यमदण्ड इवैष भुजः की ओर 2. दक्षिण दिशा में (अपा० के साथ) [दक्षिण -मा० ५।३१, काष्ठदण्ड: 2. राजचिह्न, राजसत्ता +टाप्]-णा 1. (यज्ञादिक धार्मिक कृत्यों की पूर्णा का प्रतीकरूप दण्ड---आत्तदण्ड-श० ५।८ 3. उपहुति पर) ब्राह्मणों को उपहार 2. दक्षिणा (जो प्रजा नयन संस्कार के समय द्विज को दिया गया डण्डा-तु० पति को पुत्री तथा मूर्तरूप यज्ञ को पत्नी समझी जाती मनु० २।४५-४७ 4. संन्यासी का डण्डा 5. हाथी की है-पत्नी सुदक्षिणेत्यासीदध्वरस्येव दक्षिणा-रघु० १। संड 6. (कमल आदि का) डंठल या वन्त (छतरी ३१ 3. भेंट, उपहार, दान, शुल्क, पारिश्रमिक-प्राण आदि की) मूठ-ब्रह्माण्डच्छत्रदण्ड: दश०१ (आरंभिक दक्षिणा, गुरुदक्षिणा आदि 4. अच्छी दुधार गाय, बहु श्लोक); राज्यं स्वहस्तधृतदंडमिवातपत्रम्-श०५।६, प्रसवी गाय 5. दक्षिण दिशा 6. दक्षिण देश अर्थात कु०७८९, इसी प्रकार 'कमल दंड, आदि 7. पतवार, दक्षिणभारत । सम० ---अर्ह (वि०) उपहार प्राप्त करने डांड 8. रई का डंडा 9. जुर्माना-मनु० ८।३४१, के योग्य या अधिकारी,-आवर्त (वि०) 1. दाईं ओर ९।२२९, याज्ञ० २।२३७ 10. ताडन, शारीरिक दण्ड, मुड़ा हुआ 2. दक्षिण की ओर मुड़ा हुआ, काल: सामान्य दण्ड-यथापराधदण्डानाम्-रघु० ११६, एवं दक्षिणा प्राप्त करने का समय,--पयः भारत का राजापथ्यकारिषु तीक्ष्णदण्डो राजा--मद्रा० १, दण्ड दक्षिणी प्रदेश --अस्ति दक्षिणापथे विदर्भेषु पमपुरं नाम दण्डचेषु पातयेत्-मनु० ८।१२६, कृतदण्डः स्वयं राज्ञा नगरम्-मा० १,-प्रवण (वि०) दक्षिणोन्मुख । लेभे शूद्रः सतां गतिम् -- रघु० १५।५३ 11. कैद दक्षिणाहि (अव्य०) [दक्षिण+आहि ] 1. दूर दाईं ओर 12. आक्रमण, हमला, हिंसा, दण्ड--वर्णित चार उपायों 2. दूर दक्षिण में, के दक्षिण की ओर (अपा० के साथ) में से अन्तिम-दे० 'उपाय' मनु० ७।१०९, शि० दक्षिणाहि ग्रामात्---सिद्ध०। २०५४ 13. सेना--तस्य दण्डवतो दण्डः स्वदेहान्न व्यदक्षिणीय, दक्षिण्य (वि.) [ दक्षिणामहति-दक्षिणा-छ, शिष्यत-रघु०१७।६२, मनु० ७१६५, ९।२९४, कि० यत् वा ] यज्ञीय उपहार को ग्रहण करने के योग्य या २।१२ 14. सैन्यव्यवस्था का एक रूप, व्यूह 15. वशीअधिकारी जैसा कि ब्राह्मण । करण, नियंत्रण, प्रतिबन्ध-वाग्दण्डोऽथ मनोदण्ड: दक्षिणेन (अध्य.) [दक्षिण एनप्] की दाईं ओर (कर्म । कायदण्डस्तथैव च, यस्यते निहिता बुद्धौ त्रिदण्डीति स हुति पर) ब्राह्मण मूर्तरूप यज्ञ का दक्षिणा-रघु For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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