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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उच्यते-मनु० १२।१० 16. चार हाथ के परिमाण एक प्रकार की व्यूह-रचना जिसमें सैनिक पास २ का नाप 17. लिंग 18. धमंड 19. शरीर 20. यम का कतारों में खड़े किये जाते है,---शास्त्रम् दण्ड निर्णय विशेषण 21. विष्णु का नाम 22. शिव का नाम का शास्त्र, दण्डविधान, -हस्तः 1. द्वारपाल, पहरेदार, 23. सूर्य का सेवक 24. घोड़ा (अन्तिम पाँच अर्थों में संतरी 2. यम का विशेषण।। 'ल्लिग' है)। सम०-अजिनम् 1. (भक्ति के बाह्य- | दण्डकः [ दण्ड कन् ] 1. छड़ी, डण्डा आदि 2. पङ्क्ति , सूचक) डण्डा और मृगछाला 2. (आलं.) पाखण्ड, कतार 3. एक छंद-दे० परिशिष्ट, --कः,-का, छल, -- अधिपः मुख्य दण्डाधिकरण,--अनीकम् सेना --कम दक्षिण में एक विख्यात प्रदेश जो नर्मदा और की एक टुकड़ी,-तव हृतवतो दण्डानीकैविदर्भपतेः गोदावरी के बीच में स्थित है (यह एक बड़ा प्रदेश श्रियम्-मालवि० ५।२,--अपूपन्यायः 'न्याय' के अन्त- है, कहते हैं राम के समय यहाँ जङ्गल था) प्राप्तानि र्गत दे०,-अर्ह (वि०) दण्ड दिये जाने के योग्य, दण्ड दुःखान्यपि दण्डकेष्वपि--रघु० १४।२५, कि नाम का भागी,-अलसिका हैजा,--आज्ञा दण्डित करने के दण्डकेयम् .. -उत्तर० २, क्वायोध्यायाः पुनरुपगमो लिए न्यायाधीश का वाक्य,---आहता मट्ठा, छाछ, दण्डकायां वने वः --उत्तर० २०१३-१५ । -कर्मन् (नपुं०) दण्ड देना, ताडना करना, काकः बण्डनम् दण्ड + ल्युटु दण्ड देना, ताड़ना करना, जुर्माना पहाड़ी कौवा, काष्ठं लकड़ी का डण्डा या सोटा, करना। ---प्रहणम् संन्यासी का दण्ड ग्रहण करना, तीर्थयात्री | दण्डादण्डि (अव्य०) [ दण्डैश्च दण्डैश्च प्रहत्य प्रवृत्तं का डण्डा लेना, साधु हो जाना, --छदनम् बरतन रखने यद्धम् इच, द्वित्वं, पूर्वपददीर्घः ] लाठियों की लड़ाई, का कमरा,-ढक्का एक प्रकार का ढोल, ----दासः ऋण- वह मारपीट जिसमें दोनों ओर से लाठी चलती हों, परिशोध न करने के कारण बना हुआ सेवक, --देव- डण्डों की सोटों की लड़ाई। कुलम् न्यायालय, -धर, धार (वि.) 1. डण्डा रखने | दण्डारः [दण्ड+ऋ+अण् ] 1. गाड़ी 2. कुम्हार का चाक वाला, दण्डधारी 2. दण्ड देने वाला, ताडना करने ____3. बेड़ा, नाव 4. मदमस्त हाथी। वाला-उत्तर० २६१०, (-रः) 1. राजा -श्रमनुदं दण्डिकः [ दण्ड+ठन् ] दण्डधारी, छड़ीबरदार । मनुदण्डधरान्वयम् - रघु० ९।३ 2. यम 3. न्यायाधीश, दण्डिका [ दण्डिक-+टाप् ] 1. लकड़ी 2. पक्ति , कतार, सर्वोच्च दण्डाधिकरण,नायकः 1. न्यायाधीश, पुलिस श्रेणी 3. मोतियों को लड़ी, हार 4. रस्सी। का मुख्य अधिकारी, दण्डाधिकरण 2. सेना का मुखिया, | दण्डिन (पुं०) [ दण्ड---इनि ] 1. चौथे आश्रम में स्थित सेनापति, · नीतिः (स्त्री०) 1. न्याय प्रशासन, न्याय- ब्राह्मण, संन्यासी 2. द्वारपाल, ड्योढ़ीवान 3. डाँड करण 2. नागरिक तथा सैनिक प्रशासन,--पद्धति, चलाने वाला 4. जैन संन्यासी 5. यम का विशेषण राज्यशासनविधि, राज्यतंत्र ---रघु० १८१४६,---नेत 6. राजा 7. दशकूमार चरित और काव्यादर्श का रच(पुं०) राजा,-पः राजा -पांशुल: दरबान, द्वारपाल, यिता, दण्डी कवि-जाते जगति वाल्मीके कविरित्य-पाणिः यम का विशेषण,-पातः 1. डण्डे का गिरना भिघाऽभवत्, कवी इति ततो व्यासे कवयस्त्विति 2. दण्ड देना,..पातनम् दण्ड देना, ताडना करना दण्डिनि-उद्भट। --पारुष्यम् 1. संप्रहार, प्रघात 2. कठोर तथा दारुण | वत् (१०) [ सर्वनाम स्थान को छोड़ कर सर्वत्र 'दन्त' के दण्ड देना--पालः, -पालक: 1. मुख्य दण्डाधिकरण स्थान में 'दत्' आदेश विकल्प से ] दाँत । सम० 2. द्वारपाल, ड्योढ़ीवान,---पोणः मूठदार चलनी, --छवः (दच्छदः) होछ, ओष्ठ । -प्रणामः 1. शरीर को विना झकाये नमस्कार करना इत्त (भू० क० कृ०) [ दा+क्त ] 1. दिया हुआ, प्रदत्त, (डण्डे की भांति सीधे खड़े रह कर) 2. भूमि पर लेट प्रस्तुत किया हुआ 2. सोंपा हुआ, वितरित, समर्पित कर प्रणाम करना,-बालधिः हाथी,-मनः दण्डाजा पर | 3. रक्खा हुआ, फैलाया हुआ-दे० 'दा', -- तः 1. हिन्द्र अमल न करना,-भृत् (पुं०) 1. कुम्हार 2. यम का धर्मशास्त्र में वणित १२ प्रकार के पुत्रों में से एक विशेषण,-माण (न) वः 1. दण्डधारी 2. दण्डधारो ('दत्त्रिम' भी कहते हैं)-- माता पिता वा दद्यातां संन्यासी, मार्गः राजमार्ग, मुख्यमार्ग,-यात्रा 1. बरात यद्भिः पुत्रमापदि, सदर्श प्रीतिसंयक्तं स ज्ञेयो दत्तिमः का जलूस 2. युद्ध के लिए कूच, दिग्विजय के लिए सुत: 1. मनु० ९।१६८ 2. वैश्यों के नामों के साथ प्रस्थान,---यामः 1. यम का विशेषण 2. अगस्त्य मुनि लगने वालो उपाधि तु० 'गुप्त' के अन्तर्गत उद्धरण से की उपाधि 3. दिन,--वादिन,-बासिन द्वारपाल 3. अत्रि और अनसूया का पुत्र--दे० 'दत्तात्रेय' नी०, सन्तरी, पहरेदार,- वाहिन् (पुं०) पुलिस अधिकारी, ----तम् उपहार, दान । सम०-अनपकर्मन्--अप्रदा -विधिः 1. दण्ड देने का नियम 2. दण्डविधान, निकम् दी हुई वस्नु को न देना, या दान की हुई वस्तु -विष्कम्भः मथानी की रस्सी बांधने का खंभा,व्यहः को वापिस लेना, हिन्दू धर्मशास्त्र में वर्णित १८ स्वाधि यामः बार पुलिडविधा For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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