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( २७३ )
शा० ४।१६। सम० कर्षणः,-भेदनः वलराम का। डीप् दक्षिणभारत में बहने वाली एक नदी-कावेरी विशेषग, सूः (स्त्री) सूर्य की पत्नी संज्ञा, -सोदरः सरितां पत्युः शकुनीयामिवाकरोत रघु० ४।४५ मृत्युपा देवता यम ।
2. [कुत्सितं वेग शरीरमस्याः] वेश्या, रंडी। कालिमन् (०) काल-|-इमनि] कालापन ----अमरु ८८ | काव्य (वि.) [कवि ण्यत् ] 1. ऋषि या कवि के गुणों मि. ४,५७।
से यक्त 2. मंत्रद्रष्टाविषयक या पैगम्बरी, प्रेरणा-प्राप्त, कालियः | के जले आलीयते .क+11- लोक अत्यन्त
छन्दोबद्ध,-व्यः राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य,---ठया विशालकाय सपं जो कि यमना नदी को तली में रहता
1. प्रज्ञा 2. सखी,-व्यम् 1. कविता, महाकाव्य,-मेघदूतं था। द स्थान सोभरिमपि के बाप के कारण साँगों
नाम काव्यम 2. काव्य, कविता, कवितामयी रचना के पत्र पल्ड के लिए निषिद्ध धा। कृष्ण ने जब कि
(काव्यशास्त्र के रचयिताओं ने काव्य की भिन्न भिन्न अभी वह बालकही या उस सांप को कुचल दिया
परिभाषाएँ दी है----तददोषौ शब्दार्थो सगुणावनलंकृती - ०६।४९ । सम० दानः नः कृष्ण के
पुन: क्वापि-काव्य० १, वाक्यं रसात्मकं काव्यम् विशेषण।
-सा० द० १, रमणीयार्थप्रतिपादकः शब्दः काव्यम् काली काल | डोप] 1. पालिमा 2. मसी, काली मसी - रस०, शरीरं तावदिष्टार्थव्यवच्छिन्ना पदावली
3. पार्वती को उपाधि, गिर की पत्नी काले बादलों ----काव्या० श१०, दे० चन्द्रा० ११७ भी 3. प्रसकी पंक्ति 5. काले रंग की स्त्री 6. व्याल की माता नता, कल्याण 4. बुद्धिमत्ता, अन्तः प्रेरणा। सम० सत्यवती 7. रात, ... तनयः भैसा ।
- अर्थः कवितासम्बन्धी चिन्तन या विचार, चौरः कालीक: के जले अलति पर्याप्नोति क-1-अल। इकन् दूसरे कवि के विचारों का चोर, काव्य चौर, यदस्य
पृषी० दीर्घः एक प्रकार का वगला, प्रौञ्च पक्षी।। दैत्या इव लुण्ठनाय काव्यार्थचौरा: प्रगुणीभवन्ति कालीन (वि०) काल+ब! 1. किसी विशिष्ट समय से ---विक्रमः १११,-चौरः दूसरे व्यक्तियों की कविसम्बन्ध रखने वाला 2. तु के अनुकूल ।
ताओं को चुराने वाला,---मीमांसकः साहित्यशास्त्री, कालीयात, कासवाल छ, कन् वा एक प्रकार की चन्दन विवेचक,-रसिक (वि.) जो काव्य के सौन्दर्य को की लकड़ी।
मराह सके या काव्यरस रखता हो,---लिंगम् एक अलकालुल्यम् कला या 1. मरिनता, गन्दगी, गन्दला- कार, इसकी परिभाषा --काव्यलिङ्गं हेतोवविय पदार्थता
पन, पंकिता आलं० से भी)...-काल प्यमुपयाति बुद्धिः ...--काव्य०१०, उदा०--जितोऽसि मन्द कन्दर्प मच्चि..का० १०३, गन्दलीना मलिन हो जाती है तेऽस्ति त्रिलोचनः-चन्द्रा० ५।११९।। 2 नालन 3. अगहमति ।
काश (भ्वा०, दिवा० आ०--काश-----इय...ते, काशित) कालेय (वि.) किलि-हक कलि-पग से सम्बन्ध रखने
1. चमकना, उज्ज्वल या मुन्दर दिखाई देना--रघु० बाला, यम् 1. जिगर 2. कालो चन्दन को लकड़ी
१०.८६, ७।२४, कु० २२४, भट्रि० २२५, शि० ---कु०७२ 3. केसर, जाफ़रान ।
६१७४ 2. प्रकट होना. दिखाई देना, नैवभमिर्न च कालेयरु: (०) !. कुना 2. चन्दन को जाति ।
दिशः प्रदिशो वा चकाशिरे--महा० 3. प्रकट होना, काल्पनिक (वि०) (स्त्री- की कल्पना : ठक्] 1. केवल की भांति दिखाई देना, निस् , (प्रेर०) 1. निकाल विचारों को, बाटी--काल्पनिको व्यत्यति:--2, खोटा, देना, निर्वासित करना, ठेल देना, जलावर्तन करनावनापटी (किसी कला से)।
दे० निरा पूर्वक कस्..... खोलना 2. प्रकाशित करना काल्य (वि०) काल ..त् 1. समय पर, "तु के अनुकूल, 3. वृष्टि के सामने प्रस्तुत करना, प्र.-,चमकना,
रुचिकर, सुहावना, शुभ, ल्यः पौ फटना, प्रभातकाल ! उज्ज्वल दिखाई देना 2. दिखाई देना, प्रकट होना होना।
... एषु सर्वेषु भूतेषु गूढात्मा न प्रकाशते. कठ० काल्याणकम् [कल्याग--वामांगल्य, शुभ ।।
3. की भांति दिखाई देना या प्रकट होना (प्रेर०) काचिका (वि०) (स्त्री०- की) किवच-ठ] जिरह 1. दिखाना, प्रदर्शित करना, आविष्कार करना, उद्घा
बस्तर सम्बधी कवचधारी,--कम् कवचधारी व्यक्तियों टित करना, व्यक्त करना ---अवसरोऽयमात्मानं प्रकाशका समूह।
गितम्-श०१, सां० का० ५९ 2. प्रकाश में लाना, कावृकः [कुत्सतो वृक इव, वा पित् वृक इव, को: कादेशः। प्रकाशित करना, उद्घोषणा करना... कदाचित्कुपितं ___ 1. नुर्गा 2. चकमक पक्षी।
मित्र सर्वदोष प्रकाशयेत् - चाण० २७ 3. मुद्रित कावेरम् किस्य सूर्यरा इस, वा ईपन रम् अङ्ग यस्य ज्यो- करवाना, प्रकाशित करना (पूस्तक आदि)-प्रणीतः तिर्नपत्यात केसर, जाफ़रान।
न तु प्रकाशितः ---उत्तर० ४ 4. रोशनी करना, कावेरी किं जलमेव रं शरीरमस्याः ... क+ र+अण् + (दीपक) जलाना - यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्नं लोक
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