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( २७४ )
मिमं रविः - भग० १३/३३,५१६, प्रति 1. की तरह प्रकट होना 2. विरोध या विषमतास्वरूप चमकना, वि, 1. खिलना, खुलना ( फूल की भांनि ) 2. चमकना, सम्, की भाँति दिखाई देना । काश:, शम् [काश् + अच्] छत में या चटाइयों के बनाने के लिए प्रयुक्त होने वाला एक प्रकार का घास - ऋतु० ३।१२ - शम् 'काश नामक घास का फूल – कु० ७ ११, रघु० ४।१७, ऋतु० ३३२८, - शः
= कासः ।
काशि (पुं० ब० व० ) [ काश् + इक् ] एक देश का नाम । काशि:, शी (स्त्री० ) [ काश् +इन्, काश् + अच् + ङीष् ] गंगा के किनारे स्थित एक प्रसिद्ध नगरी, वर्तमान वाराणसी, सात पावन नदियों में से एक - दे० कांची । सम० - पः शिव की उपाधि, राज: एक राजा का नाम, अंबा, अंबिका और अंबालिका के पिता ।
काशिन् ( वि० ) ( स्त्री० - नी ) ( प्रायः समास के अंत में )
[काश् +इन्, स्त्रियां ङीप् ] दीप्यमान, किसी का रूप धारण किये हुए दिखाई देने वाला या प्रकट होने वाला, उदा० जितकाशिन् - जो काशि के विजेता की भांति व्यवहार करता है-दे० ।
काशी- दे० काशि । सम० - नाथः शिव की उपाधि, - यात्रा वाराणसी की तीर्थयात्रा ।
काश्मरी [काश् + वनिप, र ङीप्, पृषो० मत्वम्] एक पौधा जिसे लोग बहुधा गांधारी के नाम से पुकारते हैं, काश्मर्याः कृतमालमुद्गतदलं को यष्टिकष्टीकते
-मा० ९।७।
काश्मीर (वि० ) ( स्त्री - री ) [ कश्मीर +अण्] काश्मीर में उत्पन्न, काश्मीर का या काश्मीर से आने वाला, -रा: ( ब० व० ) एक देश और उसके निवासियों का नाम - दे० कश्मीर भी, रम् 1. केसर, जाफरान --- काश्मीरगन्धमृगनाभिकृताङ्गरागाम् - चौर० ८. भर्तृ० १, ४८, काश्मीरगौरवपुषामभिसारिकाणाम् -- गीत० ११, १ भी 2. वृक्ष की जड़ । सम० जम्, - जन्मन् ( नपुं०) केसर, जाफ़रान भामि० १।७१, शि० ११।५३ ।
काश्यम् [कुत्सितम् अश्यं यस्मात् ब० स०] मदिरा । सम० -पम् मांस ।
काश्यपः [ कश्यप + अण् ] 1. एक प्रसिद्ध ऋषि का नाम 2. कणाद । सम० - नन्दनः 1. गरुड़ की उपाधि 2. अरुण का नाम ।
काश्यपिः [ कश्यप् + इ ] गरुड़ और अरुण विशेषण |
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काश्यपी [ काश्यप + ङीष् ] पृथ्वी, तानपि दधासि मातः काश्यपि यातस्तवापि च विवेक:- भामि० १४६८ ।
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काष: [ कष् + घञ ] 1. रगड़ना, खुरचना - पथिषु विटपिनां स्कन्धकाषैः स धूमः - वेणी० २।१८ 2. जिससे कोई वस्तु रगड़ी जाय ( जैसे कि वृक्ष का तना ) -लीनालिःसुरकरिणां कपोलकाषः -- कि० ५/२६, दे० 'कपोलकाष' ।
काषाय ( वि० ) ( स्त्री० –यी ) [ कषाय +अण्] लाल, गेरुए रंग में रंगा हुआ — काषायवसनाघवा- अमर०, – यम लाल कपड़ा या वस्त्र - इमे काषाये गृहीते मालवि० ५, रघु० १५७७ ।
काष्ठम् [काश् + क्त्थन् ] 1. लकड़ी का टुकड़ा, विशेषकर ईंधन की लकड़ी मनु० ४।४९, २४१, ५/६० 2. लकड़ी, शहतीर लकड़ी का लट्टा या टुकड़ा यथा काष्ठं च काष्ठं च समेयातां महोदधी - हि० ४/६९ मनु० ४/४० 3. लकड़ी- याज्ञ० २।२१८ 4. लम्बाई मापने का उपकरण । सम० – अगार अगारम् लकड़ी का घर या घेरा, अम्बुवाहिनी - लकड़ी का डोल, - कबली जंगली केला, कीटः घुण, एक छोटा कीड़ा जो सूखी लकड़ी में पाया जाता है, कुहः, ---- कूट: खुटबढ़ई, कटफोड़वा-पंच० १३३२, ( जंगल में पाया जाने वाला जन्तु), कुदाल: लकड़ी की बनी एक कुदाल जो किस्ती में से पानी उलीचने या उसकी तलों को खुरचने और साफ करने के काम आती है, - तक्ष (पुं० ) - तक्षकः बढ़ई, तन्तुः शहतीर में पाया जाने वाला छोटा कीड़ा, दारुः दियार या देवदारु का वृक्ष, दु: पलाश (ढाक) का वृक्ष, - पुतलिका कठपुतली, कारु की बनी प्रतिमा, - भारिकः लकड़हारा, मठी (स्त्री० ) चिता,
मल्लः अर्थी, लकड़ी का चौखटा जिस पर मुर्दे को रख कर ले जाते हैं, लेखक: लकड़ी में पाया जाने वाला छोटा कीड़ा, काष्ठकूट, लोहिन् (पुं०) लोहा जड़ा हुआ सोटा, वाट:, - टम् लकड़ी की बनी दीवार ।
काष्ठकम् [काष्ठ + कन् ] अगर की लकड़ी ।
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काष्ठा [काश् + क्थन् + टाप् ] 1. संसार का कोई भाग या प्रदेश दिशा, प्रदेश - कि० ३।५५ 2. सीमा, हद स्वयं विशीर्णदुमपर्णवृत्तिता परा हि काष्ठा तपसः - कु० ५/२८ 3. अन्तिम सीमा, चरम सीमा, आधिक्य --काष्ठगत स्नेहसानुविद्धम् कु० ३1३५ 4. घुड़दौड़ का मैदान, मैदान 5. चिह्न, निर्दिष्ट चिह्न 6. अन्तरिक्ष में बादल और वायु का मार्ग 7. काल की माप = ॐ कला ।
काष्ठिकः [ काष्ठ + ठन् ] लकड़हारा । काष्ठिका [ काष्ठिक+टाप् ] लकड़ी का छोटा टुकड़ा । काष्ठीला ( स्त्री० ) [ कुत्सिता ईषत् वा अष्ठीलेव, को: कादेशः ] केले का पेड़ ।
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