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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २९० ) कुशलः [ कुस्+ऊलच, पृषो० सस्य शत्वम् ] 1. अन्नागार | प्रयुक्त होती है,-- अञ्जलिः मुट्ठी भर फूल,- अधिपः, (खत्ती), कोठी, भंडार--को धन्यो वह भिः पूत्रैः --अधिराज् (पुं०) चम्पक वक्ष (इसके फूल पीले रंग कुशलापूरणाकै--हि० प्र० २० 2. भूसी से बनाई के सुगंधयुक्त होते हैं),- अवचायः फूलों का चुनना हुई आग। .....अन्यत्र यूयं कुसुमावचायं कुरुध्वमत्रास्मि करोमि कुशेशयम् [ कुशेशी +अच, अलक स०] कुमद, कमल सख्यः– काव्य० ३,-अवांसकम् फूलों का गजरा, -भूयात्कुशेशयरजोमृदुरेणुरस्याः (पन्थाः )---२० ४११०, --- अस्त्रः, - आयुधः,-- इषुः,-बाणः,-शरः 1. पुष्परघु० ६।१८,-यः सारस पक्षी। मय वाण 2. कामदेव,---अभिनवः कुसुमेषुव्यापारः कुष (ऋया० पर०-कुष्णाति, कुपित) 1. फाड़ना, निचो- -मा० १ यहाँ 'कुसुमेषु व्यापारः' भी पढ़ा जा सकता ड़ना, खींचना, निकालना--शिवाः कुष्णन्ति मांसानि है)--तस्मै नमो भगवते कुसुमायुघाय-भर्त० १११, - भट्रि० १८।१२, १७१०, ७४९५ 2. जाँचना, ऋतु०६।३३, चौर० २०, २३, रघु०७६१, शि० परीक्षा लेना 3. चमकना, निस्-निचोड़ना, फाड़ना, ८७०, ३१२ कुमुमशरबाणभावेन-गीत० १०, आकरः निकालना-उपान्तयोनिष्कुषितं विहङ्गः - रघु० ७।५०, 1. उद्यान 2. फूलों का गुच्छा 3. बसंत ऋतु- ऋतूनां भद्रि० ९।३०, ५।४२, इसी प्रकार--काकैनिकुषितं कुसुमाकर:-भग० १०॥३५, इसी प्रकार भामि० ११४८, श्वभिः कवलितं गोमाय भिलण्ठितम् --गंगाप्टक । --आत्मकम् केसर, जाफरान,- आसवम् 1. शहद कुषाकुः [ कुष्-+ काकु ] 1. सूर्य 2. अग्नि 3. लंगूर, बंदर । 2. एक प्रकार की मादक मदिरा (फलों से तैयार की कुष्ठः,-ष्ठम् [कुष-+कथन ] कोढ़ (कोढ़ १८ प्रकार का गई), उज्ज्वल (वि०) फूलों से चमकीला, कार्मुकः, होता है)-गलत्कुष्ठाभिभूताय च-भर्तृ० १।९.० । ...चापः,-धन्वन् (पुं०) कामदेव के विशेषण -- कुसुमसम-अरि: 1. गंधक 2. कुछ पौधों के नाम । चापमतेजयदंशुभिः - रघु० ९।२९, ऋतु. ६।२७, कुष्ठित (वि.) [ कुष्ठ+इतच ] कोढ़ से पीड़ित, कोढ़- | -चित (वि०) पुष्पों का अम्बार हो गया है जहाँ ग्रस्त । -पुरम् पाटलीपुत्र (पटना) का नाम कुसुमपुराभिकुष्ठिन (वि.) (स्त्री०-नी) [ कूष्ट---इनि ] कोढ़ी। ! योग प्रत्यनदासीनो राक्षसः -- मुद्रा० २,-लता खिली कुष्माण्डः [ कु ईषत् उष्मा अण्डेषु बीजेषु यस्य-ब० स० हई लता,...-शयनम् फूलों की शय्या ----विक्रम० ३।१०, शक° पररूपम् ] एक प्रकार की लौकी, तूमड़ी, ----स्तवकः फलों का गुच्छा, गुलदस्ता-- -कुसुमस्तवककुम्हड़ा। स्येव द्वे गती स्तो मनस्विनाम्-- भत० २।३३। कुस् (दिवा० पर०- कुष्यति, कुसित) 1. आलिंगन करना | कुसुमवती [ कुसुम+मतुप्-+-डोम्, मस्थ वः ] ऋतुमती या 2. घरना। रजस्वला स्त्री। कुसितः [ कुस्+क्त ] 1. आवाद देश 2. जो सूद से जीविका कुसुमित (वि०) [कुगुम- इतन् ] फूलों से युक्त, पुष्पों चलाता है, दे० 'कुशोद' नी०। से सुसज्जित। कुसी (सि) दः [कुस+ईद] (इसे 'कशीद' या 'कृयीद' कुसुमालः [ कुसुमक्त् लोभनीयानि द्रव्याणि आलाति- इति भी लिखते हैं। साहूकार, सूदखोर-दम्, 1. वह । कुसुम---आ+ला+क] चोर । कर्जा या वस्तू जो ब्याज सहित लौटायी जाय। कुसुम्भः,-भम् कुस् + उम्भ] 1. कुमुम्भ, कुमुम्भारुणं चारु 2. उधार देना, सूदखोरी, सूदखोरी का व्यवसाय | चेलं वसाना---जग०, रघ० ६।६ 2. केसर 3. संन्यासी -कुसीदाद् दारिद्रयं परकरगतग्रन्थिशमनात्---पंच० का जलपात्र, कमण्डल,---भम सोना,--भः बाह्य स्नेह ११११, मनु० १।९०, ८१४१०, याज्ञ० ११११९ । (कुसुम्भी रंग से तुलना की गई है)। सम-पथः सूदखोरी, सूदखोर (पठान) का ब्याज, | कुसूलः [ कुस्-Fऊलच ] 1. अन्नागार (खत्ती), भण्डार, प्रतिशत से अधिक ब्याज-वद्धिः (स्त्री) धन पर गृह (अनाज आदि के लिए)। मिलने वाला ब्याज,—कूसीदवद्धिद्वैगम्यं नात्येति सक- | कुसृतिः (स्त्री०)[ कुत्मिता सृतिः ] जालसाजी, ठगी, धोखादाहृता--मनु० ८।१५१ ।। "देही। कुसोदा [ कुसीद+-टाप् ] सूदखोर स्त्री। कुस्तुभः [ कु+-स्तुंभ---क ] 1. विष्ण 2. समुद्र । कुसीदायी [ कुसीद-। डीप, ऐ आदेशः । सूदखोर की पत्नी। कुहः [ कुह +णि+अच् ] कुबेर, धनपति । कुसोदिकः - कुसीदिन् (पुं०) [ कुसीद--प्टन्, इनि वा ] कुहकः [ कुह+क्वन् ] छली, ठग, चालाक (ऐन्जालिक), सूदखोर । --कम,--का चालाकी, धोखा। सम--कार कुसुमम् [ कुप+उम ] 1. फूल,-उदेति पूर्व कुसुमं ततः (वि.) कपटी, छलिया,- चकित (वि०) दाँवपेंच से फलम्,-- श० ७।३० 2. ऋतु-स्राव 3. फल। सम० डरा हुआ, शक करने वाला, सावधान, सजग--हि० -अञ्जनम् पीतल की भस्म जो अंजन की भांति | ४११०२,--स्वनः,--- स्वरः मुर्गा। For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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