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( २९१ )
कुहनः [ कु+हन् + अच्] 1 मूसा 2. साँप - नम् 1. छोटा मिट्टी का बर्तन 2. शीरों का वर्तन । कुहना, कुहनिका | कुह + य, कुहन + क + टापू, इत्वम् ] स्वार्थ की पूर्ति के लिए धार्मिक कड़ी साधनाओं का अनुष्ठान, दंभ |
कहरम् [ कुह + क -- कुहं राति, रा+क ] 1. गुफा, गढ़ा जैसा कि 'नाभिकहर' या आस्य में 2. कान 3. गला 4. सामीप्य 5. मैथुन । कुहरितम् | कुहर | इतच् | 1. ध्वनि 2. कोयल की कुकू 3. मैथन के समय सी, सी का शब्द ।
कह:, कुहूः (स्त्री० ) [ कुह । कु, कुहु + ऊ ] 1. नया चंद्रदिवस अर्थात् चान्द्रमास का अन्तिम दिन - ( अमावस्या ) जब कि चन्द्रमा अदृश्य होता है करगतैव गता यदियं कुहूः - नं० ४1५७ 2. इस दिन की अधिष्ठात्री देवी मनु० ३।८६ 3. कोयल की कूक पिकेन रोपाणचक्षुपा मुहुः कुरुतायन चन्द्रवैरिणी- नै० ११००, उन्मीलति कुहू कुहूरिति कलात्तालाः पिकानां गिरः-- गीत० १ सम० कण्ठः, मुखः, -रवः, - - शब्दः कोयल |
(स्वा० तुदा० आ०- कवते, कुवते ) ( क्या० उभ० -- कुकूनाति, कु कुनीते ) 1. ध्वनि करना, कलरव करना 2. कष्टावस्था में कन्दन करना-खगारचुकु त्रिभम् भट्टि०१४/२० १२० १८१५, १५०६, १६।२१ ।
कः (स्त्री० ) [ कृ + क्विप् ] पिशाचिनी, चुड़ैल | कचः | कृ | चट् | स्त्री का स्तन ( विशेष कर जवान या अविवाहित स्त्री का ) दे० 'कु' |
कचिका, कची | कूच + कन् । टापू, इल्बम् कृत्र | झीप ] 1. बालों का बना छोटा ब्रा, कंची 2. नाही | कूज् (भ्वा० पर०---कृजनि, कृजित ) अस्पष्ट ध्वनि करना, गंजना, कजना, ककना कजलं राम रामेति मधरं मधुराक्षरम् - रामा० पुंस्कोकिला यन्मधुरं चुकूज - कु० ३३२ ० ६ । २२, रघु० २।१२, नै० १।१२७ नि , परि वि कूजना, कुक की अस्पष्ट वर्शन करता । कूज:, कूजनम्, कूजितम् | कृज् - अन् कुन् ल्युट् कृ 1 + ] 1. कूजन, कुक की ध्वनि करना 2. पहियां की घरघराहट |
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कूट ( वि० ) [ कूट + अच् ] 1. मिथ्या, जैसा कि 'कूटा: पूर्वसाक्षिणः' में याज्ञ० ११८० 2. अचल, स्थिर, टः, -टम् 1. जालसाजी, भ्रम, धोखा 2. दांव, जाल साजी से भरी हुई योजना 3. जटिल प्रश्न, पेचीदा या उलझनदार स्थल जैसा कि कूटटलोक और कूटान्योक्ति 4. मिध्यात्व असत्यता ( प्रायः समास म विशेषण के बल के साथ प्रयोग) वचनम्, झूठे या
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धोखे में डालने वाले शब्द तुला, मानम् आदि 5. पहाड़ का शिखर या चोटी-वर्धयन्निव तत्कूटानुद्धतेर्धातुरेणुभिः -- रघु० ४।७१, मेघ० ११३ 6. उभार या उत्तुंगता 7. अपने उभारों समेत माथे की हड्डी, सिर का शिखा 8 सींग 9 सिरा, किनारा - याज्ञ० ३।९६ 10. प्रधान, मुख्य 11 राशि ढेर, समूह; अभ्रकूटम् वादलों का समूह, इसी प्रकार अन्नकूटम् - अनाज का ढेर 12. हथौड़ा, घन 13. हल की फाली, कुशी 14. हरिणों को फसाने का जाल 15 गुप्ती, जैसे ऊनी म्यान में वर्धी, या हाथ की यष्टिका में कृपाण 16. जलकलश, टः 1. घर, आवास 2. अगस्त्य की उपाधि | सम०-अक्षः झूठा या कपट से भरा पासा ( सीमा या पारा भरा हुआ जिससे फेंकने पर वह खाग बल पर ही चित हो) कूटाक्षोपधिदेविन:- याज्ञ० २२२०२ - अगारम् छत पर बनी कोठरी, -अर्थ: अर्थो की सन्दिग्धता "भाषिता कहानी, उपन्यास, - उपायः जालसाजी से भरी योजना, कूटचाल, कूटनीति -कारः बांखेबाज, झूठा गवाह, - कृत् (वि०) ठगनेवाला, धोखा देने वाला 2 जाली दस्तावेज बनानेवाला - याज्ञ० २७० 3. घूस देने वाला (पुं० ) 1. कायस्थ 2. शिव का विशेषण, कार्षापण: झूठा कार्यापण, खङ्गः गुप्ती, छद्यन् (पुं० ) ठग, तुला पासंग वाली तराजू,
धर्म (वि०) जहाँ झूठ ( मिथ्यात्व ) कर्तव्य कर्म Test जाय ( ऐसा स्थान, घर, और देश आदि),
पाकल: पित्तदोपयुक्त ज्वर जिससे हाथी ग्रस्त होता है, हस्तिवातज्वर अचिरेण वैकृतविवर्तदारुणः कलभं कठोर इव कूटपाकल ( अभिहन्ति ) - मा० १/३९, ( कभी कभी इसी शब्द को 'कूटपालक' भी लिख देते हैं ) - पालक: कुम्हार, कुम्हार का आवा, पाशः, - वन्धः जाल, फंदा, - रघु० १३१३१ - मानम् झूठी माप या तोल - मोहनः स्कन्द का विशेषण, यन्त्रम् हरिण एवं पक्षियों को फंसाने का जाल या फंदा, युद्धम् छल और धोखे की लड़ाई, अधर्मयुद्ध रघु० १७/६९, - शाल्मलि : (पुं० [स्त्री० ) 1. सेमल वृक्ष की एक जाति, 2. तेज काटा से युक्त वृक्ष (एक उपकरण -गदा- जिससे यमराज पापियों को दण्ड देता है) - दे० रघु० १२ । १५ और इस पर मल्लि० की टीका, शासनम् जाली आज्ञापत्र या फरमान, - साक्षिन् (पुं०) झूठा गवाह, -स्थ (वि०) शिखर पर खड़ा हुआ, सर्वोच्च पद पर अधिष्ठित (वंशावलीद्योतक तालिका में प्रधान पद पर अवस्थित), स्थः परमात्मा (अचल, अपरिवर्तनीय, तथा सावन) भग० ६।८, १२०३, स्वर्णम् खोटा सोना । कूटकन् [ कूट- कन् ] 1. जालसाजी, धोखादेही, चालाकी 2. उत्सव, उत्तुंगता 3. कुशी, हल की फाली । सम ० -- आख्यानम् गढ़ी हुई कहानी ।
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