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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1192 ) (4) प्रमवा (कुररीरुता) राधिका वितयं माधवाद्य मासि माषवे परि० नजभजला गुरुश्च भवति प्रमदा। मोहमेति निर्भरं त्वया विना कलानिधे / / गण. न, ज, भ, ज, ल, ग (6.8) (2) मालिनी उदा० अनतिचिरोज्मितस्य जलदेन चिर परि० ननमयययुतेयं मालिनी भोगिलोकः / स्थितबहुबुवुदस्य पयसोऽनुकृतिम् / गण. न, न, म, य, य (8.7) बिरलविकीर्णवजशकला सकला. उदा० शशिनमुपगतेयं कौमुदी मेघमुक्तम् मिह विदधाति धौतकलधौतमही। शि० 4 / 41 / जलनिधिमनरूपं जहनकन्यावतीर्णा / (5) प्रहरणकलिका इति समगुणयोगप्रीतयस्तत्र पौराः परि० सनभनलगिति प्रहरणकलिका। श्रवणकटु नृपाणामेकवाक्यं विवछः / / रघु० 6 / 85 / गण. न, न, भ, न, ल, ग (7.7) (3) लोलाखेल उदा. व्यथयति कुसुमप्रहरणकलिका परि० एकन्यूनौ विद्युन्मालापादो चेल्लीलाखेलः / प्रमदवनभवा तव धनुषि तता। गण. म, म, म, म, म विरहविपदि मे शरणमिह ततो उदा० मा कान्ते पक्षस्यान्ते पर्याकाशे देशे स्वाप्सी: मधुमथनगुणस्मरणमविरतम् / / कान्तं वक्त्रं वृत्तं पूर्ण चन्द्रं मत्वा रात्री चेत् / (6) मध्यक्षामा (हंसश्यनी या कुटिल) क्षुत्क्षामः प्राटश्चेतश्चेतो राहुः क्रूरः प्राद्यात् परि० मध्यक्षामायुगदशविरमा म्भौ न्यो गौ। तस्माद्ध्वान्ते हर्म्यस्यान्ते शय्यकांते कर्तव्या / / गण. म, भ, न, य, ग, ग (4.10) सरस्वती वा० नीतोच्छायं महरशिशिररश्मेरुन (4) शशिकला रानीलाभैविरचितपरभागा रत्नैः / परि० गुरुनिघनमनलघुरिह शशिकला। ज्योत्स्नाशङ्कामिह वितरति हंसश्येनी गण० न, न, न, न, स (अन्तिम को छोड़ कर सब लघु) मध्येऽप्यतः स्फटिकरजतभित्तिच्छाया / / उवा० मलयजतिलकसमदितशशिकला कि० 5 / 31 / वजय वतिलसदलिक गगनगता / (7) वसन्ततिलका सरसिजनयनहृदयसलिलनिधि (वसन्ततिलक, उद्धर्षिणी या सिंहोनता) व्यतनुत विततरभसपरितरलम् / / परि० उक्ता वसन्ततिलका तभजा जगी गः / सोलह वर्णों के चरण वाले वृत्त गण. त, भ, ज, ज, ग, ग (8.6) उदा० यात्येकतोऽस्तशिखरं पतिरोषधीना (अष्टि) माविष्कृतारुणपुरःसर एकतोऽर्कः / (1) चित्र तेजोद्वयस्य युगपद व्यसनोदयाभ्यां परि० चित्रसंज्ञमीरितं रजौ रजो रगौ च वृत्तम् / लोको नियम्यत इवात्मदशान्तरेषु // श० 411 / गण० र, ज, र, ज, र, ग (8.8 या 4.4.4.4) (8) वासन्ती उदा० विद्रुमारुणाघरोष्ठशोभिवेणुवाद्यहृष्टपरि० मात्तो नो मो गौ यदि गदिता वासन्तीयम् / वल्लबीजनाङ्गसंगजातमुग्धकण्टकाङ्ग। गण. म, त, न, म, ग, ग (4.6.4) त्वां सदैव वासुदेव पुण्यलभ्यपाद देव उदा. भ्राम्यद्भुङ्गी निर्भरमघुरालापोद्गीतैः वन्यपुष्पचित्रकेश संस्मरामि गोपवेश / / श्रीखण्डारद्भुतपवनैर्मन्दान्दोला / 2) पञ्चचामर लीलालोला पल्लवविलसद्धस्तोल्लासः परि० प्रमाणिका पदद्वयं वदन्ति पंचचामरम् / कंसाराती नृत्यति सदृशी वासन्तीयम् // (जरी जरी ततो जगौ च पंचचामरं वदेत्' पन्द्रह वर्णों के चरण वाले वृत्त गण० ज, र, ज, र, ज, ग (8.8 या 4.4.4.4) उवा० सुरद्रुमलमण्डपे विचित्ररत्ननिर्मिते (अतिशयरी) लसद्वितानभूषिते सलीलविभ्रमालसम् / (1) तूणक सुरांगनाभवल्लबीकरप्रपंचचामरपरि तूणकं समानिका पदद्वयं विनान्तिमम् / स्फुरत्समीरवीजितं सदाच्य तं भजामि तम् // गण. र, ज, र, ज, र (4.4.4.3 या 7.8) (3) वाणिनी मा० सा सुवर्णकेतकं विकाशि भृङ्गपूरितम् परि० नजभजरयंदा भवति वाणिनी गयुक्तः / पञ्चवाणवाणजालपूर्णहेतितूणकम् / गण. न, ज, भ,,,म। For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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