________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 831 ) दासी के रूप में देवयानी के साथ गई, क्योंकि इसने / यवनः [ यु+युच् ] 1, ग्रीस देश का निवासी, यूनान देश किसी समय देवयानी का अपमान किया था और उस | का वासी 2. विदेशी, जंगली--मनु० 10144 (आजअपमान की क्षति पूर्ति के लिए आज शमिष्ठा को कल इस शब्द का प्रयोग मुसलमान और यूरोपियन देवयानी की सेविका वनना पड़ा (दे० देवयानी)। के लिए भी किया जाता है) 3. गाजर। परन्तु ययाति को इस दासी से प्रेम हो गया, फलतः यवनानी [ यवनानां लिपि: यवन+आनुक, डीप च] उसने गुप्त रूप से उससे विवाह कर लिया। इस | यवनों की लिपि या लिखावट / / बात से खिन्न होकर देवयानी अपने पिता के पास | यवनिका, यवनी [यु-+ ल्यट-डीपयवनी---कन्+ चली गई और उनसे अपने पति के आचरण को टाप, हस्वः / 1. यवनस्त्री, ग्रीस देश की स्त्री या शिकायत की। शुक्राचार्य ने ययाति को प्राक्कालिक मुसलमानी,- यवनी नवनीतकोमलांगी-जग०, यवनीबार्धक्य तथा अशक्तता से ग्रस्त कर दिया। ययाति मुखपद्मानों सेहे मधुमदन सः 10 4161, (नाटकों ने जब बहुत अनुनय-विनय किया तो प्रसन्न होकर से ऐसा प्रतीत होता है कि पूर्व काल में यवन बालाएं शुत्राचार्य ने ययाति को अनुमति दे दी कि यह अपने राजाओं की दामियों के रूप में नियक्त की जाया बुढ़ापे को जिस किसी को दे सकता है यदि वह लेना करती थीं विशेषकर राजाओं के धनुष और तरकस को स्वीकार करे। उसने अपने पांचों पुत्रों से पूछा, संभालने के लिए, 10 एष बाणासहस्ताभियंवनीभिः परन्तु सब से छोटे पुरु को छोड़कर किसी ने भी परिवत इत एवागच्छति प्रियवयस्य:-०२, प्रविश्य बुढ़ापा लेना स्वीकार नहीं किया। फलस्वरूप ययाति शाहस्ता यवनी श०६, प्रविश्य चापहस्ता यवनी ने अपना बुढ़ापा पुरु को देकर उसकी जवानी ले लो। -विक्रम० 5 आदि) 2. परदा / इस प्रकार इस समद्ध यौवन को पाकर ययाति फिर यवसम् [ यु | असच् ] घास, चारा, चरागाहों का पास विषयवासनाओं तथा आमोद प्रमोद में व्यस्त रहने यवसघनम् पंच० 1. याज्ञ० 3130, मनु० 775 / लगा। इस प्रकार का क्रम 1000 वर्ष तक चला यवागू (स्त्री०) यूयते मियते-..यु-+आगू] चावलों परन्तु ययाति की तृप्ति नहीं हई। आखिरकार, का नांड, चावलों के माड़ की कांजी, या जौ आदि बड़े प्रयत्न के साथ ययाति ने इस विलासी जीवन को किसी और अन्न की कांजी यवागूविरलद्रवा-सुथु०, छोड़कर, पुरु की जवानी उसको वापिस कर दी और मुत्राय कल्पते यवाग:-.-महा। उसे राज्य का उत्तराधिकारी बना स्वयं पवित्रजीवन यवानिका, यवानी [ दुप्टो यवो यवानी-यव+डीप, बिताने तथा परमात्मचिन्तन करने के लिए बन को आनुक, पक्षे कन्+टाप, ह्रस्वः | अजवायन / प्रस्थान किया] 5. यविष्ठ (वि०) [युदन-इप्ठन, यबादेश: / कनिष्ठ, ययावर:-:यायावर दे० / सबसे छोटा, प्ठः सबसे छोटा भाई, कनिष्ठ ययिः,- यी (पुं०) या+ई, कित्, धातोद्वित्वम् | भ्राता। 1.अश्वमेध या अन्य किसी यज्ञ के उपयुक्त घोड़ा-शि० | यवीयस् (वि.) [ युवन् / ईयसुन् यवादेशः ] छोटा, 15 / 69 2. घोड़ा। बच्चा,-पुं० 1. छोटा भाई 2. शूद्र / यहि (अव्य०) यद्+हिल ] 1. जब, जब कि, जब यशस् (नपु०) / अश् स्तुती असुन् घातो: युट् च् ] कभी 2. क्योंकि, यतः, चूंकि, (इसका उपयुक्त सह- प्रसिद्धि, ख्याति, कीति, विश्रुति - विस्तीर्यते यशो संबन्धी 'तहि' या 'एतहि है परन्तु अत्युत्तम साहित्य लोके तेलबिन्दुरिवाम्भसि-मनु० 7 / 34, यशस्तु रक्ष्य में इसका विरल प्रयोग है)। परतो यशोधनः-रघु० 3.48, 2 / 40 / सम० यवः [युअच् ] 1. जो यवा: प्रकीर्णाः न भवन्ति -कर (वि०) (यशस्कर) कीर्ति देने वाला यशस्वी शालयः मच्छ० 4 / 17 2. जौ के दाने या जौ के मन० ८।३८७,-काम (वि०) (यशस्काम) दानों का भार 3. लम्बाई की एक नाप - एक अंगुल 1. प्रसिद्धि प्राप्त करने का इच्छुक 2. उच्चाकांक्षी, का 1/6 या 1/8 4. हाथ की अंगुलियों में बना जौ महत्त्वाकांक्षी,-कायम्, शरीरम् प्रसिद्धि के रूप में के दाने का चिह्न जो धनधान्य, प्रजा, और सौभाग्य शरीर, कीर्तिदेह,-यशः शरीरे भव मे दयालु:-रघु० का सूचक है। सम० -अङ्कुरः, प्ररोहः जौ का 2157, रघु० 1157, भर्तृ० २१३४,-व (वि०) अंखुवा या पत्ती,--आग्रयणम् जो की खेती का पहला (यशोद) कीर्तिकर (व:) पारा (दा) नन्द की पत्नी फल, - क्षारः जवाखार, शोरा, सज्जी, शकः:,-शूकजः और कृष्ण की पालक माता का नाम, -धन (वि०) जो की भूसी को जला कर उसकी राख से तैयार (वि०) कीति ही जिसका धन है, ख्याति में समृद्ध, किया गया क्षारीय नमक, सज्जी,-सुरम् जौ की अत्यंत विश्रुत-अपि स्वदेहात् किमुतेन्द्रियार्थात् यशोशराब, यवमद्य / घनानां हि यशो गरीयः-रघु०१४॥३५, २।१,-पटहः For Private and Personal Use Only