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प्रविणम् [ द्रु + इनन् ] 1. दौलतमन्दी, धन, संपत्ति, द्रव्य | द्राघयति ( ना० धा० पर० ) 1. लम्बा करना, फैलाना,
-वेणी० ३१२०, भामि० ४।२९ 2 सोना रघु० ४।७० 3. सामर्थ्य, शक्ति 4. वीरता, विक्रम 5. बात. सामग्री सामान । सम० अधिपतिः, ईश्वरः कुबेर का विशेषण ।
विस्तार करना 2. बढ़ाना, गाढ़ा करना - द्राघयंति हि से शोकं स्मर्यमाणा गुणास्तव भट्टि० १८ ३३3. ठहरना, देर करना ।
द्रव्यम् [दु + यत् ] 1. वस्तु, सामग्री, पदार्थ, सामान 2. अवयव, उपादान 3. सामग्री 4. उपयुक्त पात्र ( शिक्षादि ग्रहण करने के लिए) मुद्रा० ७११४, दे० 'अद्रव्य ' भी 5. मूल तत्त्व, गुणों का आधार, वैशेषिकों के सात प्रवर्गों में से एक (द्रव्य नौ हैं पृथिव्यप्तेजोवायवाकाशकाल दिगात्ममनांसि ) 6. स्वायत्तीकृत कोई पदार्थ, दौलत, सामग्री, संपत्ति, धन-तत्तस्य किमपि द्रव्यं यो हि यस्य प्रियो जनः उत्तर० २।१९ 7. औषधि, दवाई 8. लज्जा, शालीनता 9 कांसा 10. मदिरा 11. शर्त, दाँव । सम०-- अर्जनम्, -वृद्धिः, - सिद्धि: ( स्त्री० ) धन की अवाप्ति, ओघः सम्पन्नता, धन की बहुतायत, - परिग्रहः संपत्ति या धन का संचय, प्रकृतिः ( स्त्री०) माया का स्वभाव, - संस्कारः यज्ञ के पदार्थों का शुद्धीकरण, वाचकम् संज्ञा, सत्तासूचक |
द्रव्यवत् (वि० ) [ द्रव्य + मतुप् ] 1 धनी दौलतमंद 2. सामग्री में अन्तर्निहित ।
द्रष्टव्य (सं० कृ० वि० ) 1. देखे जाने के योग्य, जो दिखलाई दे सके 2. प्रत्यक्षज्ञानयोग्य 3. देखने, अनुसंधान करने या परीक्षा करने के योग्य 4. प्रिय, दर्शनीय, सुन्दर - त्वया द्रष्टव्यानां परं दृष्टम् श० २, भर्तृ०१८ | द्रष्टृ (पुं०) (दृश् + तृच् ] 1. दर्शक,
मानसिक रूप से
देखने वाला, जैसाकि 'ऋषयो मन्त्रद्रष्टारः' में 2. न्यायाधीश ।
ग्रहः [ हृद पृषो० साधुः ] गहरी झील ।
ब्रा (अदा० दिवा० द्राति, द्वायति ) 1. सोना 2. दौड़ना, शीघ्रता करना 3. उड़ना, भाग जाना, नि,नींद आना, सोना, सो जाता - अथावलंव्य क्षगमेकपादिकां तदा निद्रापपल्वलं खगः नं० १।२१, नाव ते समयो रहस्यमना निद्राति नायः - भर्तृ० ३।९७, भानि० १४१, भट्टि० १०/७४, शा० ४।१९, वि०, प्रत्यावर्त करना, भाग जाना, उड़ना ।
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ब्राक् ( अव्य० ) [ द्रा + कु ] जल्दी से, तुरन्त उसी समय तत्काल | सम० - भूतकम् कुएँ से अभी २ निकाला हुआ जल ।
ब्राक्षा [द्राञ्ज् !-अ---टाप्, नि० नलोपः ] अंगूर, दाख ( अंगूर की बेल या फल) द्राक्षे द्रक्ष्यंति के त्वाम् गीत० १२, रघु० ४।६५, भामि० १ १४,४३९ । सम० --- रस: अंगूर का रस, मदिरा ।
दामिन् (पुं० ) [ दीर्घ + इमनिच् द्राघ् आदेशः ] 1. लम्बाई 2. अक्षांश रेखा का दर्जा ।
द्राधि ( वि० ) [ अतिशयेन दीर्घः दीर्घ + इष्ठन्, द्राघ् आदेशः ] 1. सबसे अधिक लम्बा 2. अत्यन्त लम्बा, ( 'दीर्घ' की उ० अ० ) ।
द्राघीयम् (वि० ) ( स्त्री० सी ) [ दीर्घ + ईयसुन्, द्राघ्, आदेश: ] अपेक्षाकृत लम्बा, बहुत लम्बा ( 'दीर्घ' का म० अ० ) ।
द्राण ( वि० ) [द्रा + क्त, नत्वं णत्वम् ] 1. उड़ा हुआ,
भागा हुआ, 2. सोता हुआ, निद्रालु, - णम् 1. दौड़ जाना, भगदड़, प्रत्यावर्तन 2. निद्रा ।
[द्रा + णिच् +अच्, पुक् ] 1. कीचड़, दलदल 2. स्वर्ग, आकाश 3. मूर्ख, जड 4. शिव का विशेछोटा शंख । दामिल: [ मिल +- अण् ] चाणक्य | ब्रायः [ द्रु+घञ ] 1. भगदड़, प्रत्यावर्तन 2. चाल,
षण,
3. दौड़ना, बढ़ाव 4. गर्मी 5. तरलीकरण, पिघलना । ras: [+] 1. पिघलाने वाला पदार्थ 2. अयtara after 3. चन्द्रकांत मणि 4. चोर 5. बुद्धिमान पुरुष, परिहास चतुर्, ठिठोलिया, विदूषक 6. लम्पट, व्यभिचारी, कम् मोम |
द्रावणम् [दु + णिच् + ल्युट् ] 1. भाग जाना 2. पिघलना, गलना 3. अर्क निकालना 4. रीठा ।
द्राविड: [ ft + अण् ] 1. द्रविड देश निवासी, द्रविड का
2. पंच द्रविड ( द्राविड, कर्णाट, गुर्जर, महाराष्ट्र, और तैलंग) ब्राह्मणों में एक, डाः ( ब० व०) द्रविड देश तथा उसके निवासी, डी इलायची ।
द्राविडकः [ द्राविड + कन् ] आमाहल्दी, --कम् काला
नमक ।
। (स्वा० पर० द्रवति, द्रुत, इच्छा० दुदूपति) 1 दौड़ना, बहना, भाग जाना, प्रत्यावर्तन करना ( प्रायः कर्म० के साथ) - या नदीनां बह्वोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखं द्रवन्ति भग० ११/२८, रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति ३६ द्रुतं द्रवत कौरवाः महा० 2. धावा बोलना, हमला करना, सत्वर आक्रमण करनाभट्टि० १/५९ 3. तरल होना, घुलना, पिघलता, रिसना ( आलं० भी ) द्रवति च हिमरश्माबुद्गते चंद्रकान्त: मा० ११२८, द्रवति हृदयमेतत् - वेणी० ५।२१. शि० ९१९ भट्टि० २१२ 4 जाना, हिलना-डुलना | प्रेर० द्रावयति - ते 1. भगा देना, उलटे पाँव भगा देना 2. पिघलना, गलना, अनु,
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