SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 361
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३५२ ) पहिन (वि.) [गृह+इनि] घर का स्वामी, गृहस्थ, के योग्य, - यम् 1. गीत, गायन गाने की कला-गये घरबारी--पीड्यन्ते गृहिणः कथं नु तनयाविश्लेषदुःखै- | केन विनीतौ वाम् --रघु० १५।६९, मेघ० ८६, अनन्ता नवैः ~श० ४१५, उत्तर० २।२२, शा० २।२४ । वाङमयस्याहो गयस्येव विचित्रता-शि० २।७२ । गहीत (भ० क० कृ०) [ग्रह +क्त] 1. लिया हुआ, पकड़ा | गेष् (भ्वा० आ० -- गेषते, गेष्ण) ढुंडना, खोजना, तलाश हआ-केशेष गृहीत: 2. स्वीकृत 3. प्राप्त, अवाप्त करना--तू० 'गवेष' । 4. परिहित, पहना हुआ 5. लुटा हुआ 6. अधिगत; । गेहम् [गो गणेशो गंधर्वो वा ईहः ईप्सितो यत्र तारा०] घर, ज्ञात-दे० 'ग्रह'। सम० गर्भा गर्भवती स्त्री, आवास -- सा नारी विधवा जाता गेहे रोदिति तत्पतिः -विश् (वि०) 1. भागा हुआ, भगोड़ा, तितरबितर ----(सुभा०, वि०- इस शब्द का अधि० का रूप हुआ 2. तिरोभूत, लापता । अलुक त० स० बनाने के लिए कई शब्दों के साथ गहोतिन् (वि०) (स्त्री०-नी) [गहीत+ इनि] जिसने प्रयोग होता है, उदा० गेहेमवेडिन् (वि०) 'घर पर कोई बात समझ ली है (अधि० के साथ)-गृहीती तीसमारखां' अर्थात् कायर, भीरु, मेहेदाहिन (वि०) षट्स्वङ्गेषु - दश० १२०। 'घर पर ही तेज' अर्थात् कायर, गेहेनदिन् (वि०) गृह्य (वि०) [ग्रह+क्यप्] 1. आकृष्ट या प्रसन्न होने के 'घर पर ही ललकारने वाला' अर्थात् कायर धूरे का योग्य जैसा कि 'गुणगृह्यः' 2. घरेलू 3. जो अपना मुर्गा या डरपोक', गेहेमेहिन् (वि०) 'घर में ही मूतने स्वामी न हो, परतन्त्र 4. पालतू, घर में सधाया हुआ वाला' अर्थात् आलसी, गेहेव्याड: डींग मारनेवाला, 5. बाहर स्थित -ग्रामगृह्या सेना -(गाँव के बाहर | आत्मश्लाघी, शेखीखोर, गेहेशरः 'अपने मोहल्ले में स्थित सेना), ह्यः 1. घर में रहने वाला 2. पालतू कुत्ता भी शेर होता है' चहारदीवारी के सूरमा, कालीन जानवर,—ाम् गुदा । सम०--अग्निः अग्निहोत्र के शर, डींग मारनेवाला कायर । की आग जिसको स्थापित रखना प्रत्येक ब्राह्मण का गहिन (वि.) (स्त्री०-दी) [गेह+ इनि]:-गृहिन् । विहित कर्म है। गेहिनी गहिन् + डोप पत्नी, घर की स्वामिनी-धैर्य यस्य गृह्या गृह्य +टाप्] नगर के निकट बसा हुआ गाँव । पिता क्षमा च जननी शान्तिश्चिरं गहिनी-शा० गत (ऋचाः पर० --गृणाति, गर्ण) 1. शब्द करना, पुका- । ४१९, मदगेहिन्याः प्रिय इति सखे चेतसा कातरेण रना, आवाहन करना 2. घोषणा करना, बोलना, -मेघ० ७७। उच्चारण करना, प्रकथन करना -रघु० १०११३ (भ्वा० पर० - गायति, गीत) 1. गाना, गीत गाना 3. बयान करना, प्रचारित करना 4. प्रशंसा करना, ---अहो साधु रेभिलेन गीतम् -- मच्छ० ३, ग्रीष्मसमयस्तुति करना-केचिद्धीताः प्राञ्जलयो गणन्ति -- भग० मधिकृत्य गीयताम्- श०१, मनु० ४।६४, ९।४२ ११।२१, भट्टि० ८1७७, अनु-प्रोत्साहित करना, 2. गाने के स्वर में बोलना या पाठ करना 3. वर्णन भट्टि० ८1७७, (तुदा० पर० .-गिरति या गिलति) करना, घोषणा करना, कहना--(छन्दोमयी भाषा में) 1. निगलना, हडप करना, खा जाना 2. निकालना, मीतश्चायमर्थोङ्गिरसा-मा० २ 4. गाने के स्वर में उंडेलना, थूक देना, मह से फेंकना, अव --,(आ.) वर्णन करना, बयान करना या प्रख्यात करना—चारणखाना, निगलना-तथावगिरमाणश्च पिशाचर्मास द्वन्द्वगीत: श० २।१४, प्रभवस्तस्य गीयते-कु० २१५, शोणितम् ---भट्टि० ८१३०, उद -1. फेंकना, थूक देना, अनु-, गाने में अनुकरण करना--अनुगायति वमन करना -उद्गिरतो यद् गरलं फणिनः पूष्णासि काचिदुदञ्चितपञ्चमरागम् ---गीत० १, कि० ३१६०, परिमलोद्गारः .. भामि० ११११, शि०१४।१ 2. उत्स अव-, निन्दा करना, कलंकित करना, उद्-, ऊँचे र्जन करना, निकाल बाहर करना, उगल देना --कु० स्वर में गाना, उच्च स्वर में गायन -- उद्गास्यता११३३, रघु० १४१५३ वेणी० ५।१४, पंच० ५।६७, मिच्छति किन्नराणाम - - कु. ११८, गेयमुद्गातुकामा नि-,निगलना, खा जाना ---भामि० ११३८, सम् - ---मेघ० ८६, उद्गीयमानं वनदेवताभि:-रघु०२।१२, 1. निगलना 2. प्रतिज्ञा करना, व्रत करना, (आ०), उप--, गाना, निकट गाना-शिष्यप्रशिष्यरुपगीयमासमुद्र -, 1. बाहर फेंक देना, निकाल देना 2. जोर नमवेहि तन्मण्डनमिश्रधाम --उद्भट, कि० १८।४७, से चिल्लाना, ii (चुरा० आ० --गारयते) 1. बत परि-, गाना, बयान करना, वर्णन करना, वि-, लाना, वर्णन करना 2. अध्यापन करना। 1. बदनाम करना, झिड़कना, कलंकित करना-विगीगेंड (दु) क: [गच्छतीति गः इन्दुरिव, गेदु+कन्, गेंडुक यसे मन्मथदेहदाहिना --नै० १७९ 2. विषम स्वर (बेमेल स्वर) में गाना। गेय (वि.) [गै+यत्] 1. गायक, गाने वाला—यो माण- गैर (वि.) (स्त्री०-री) [गिरि-+-अण्] पड़ाड़ से आया वक: साम्नाम् -पा० ३।४१६८, सिद्धा. 2. गाये जाने । हुआ, पहाड़ी, पहाड़ पर उत्पन्न । गेंड (यू) कामकालिए गेंद, (गेंडूक' भी)। ) (स्त्री-रो) [गिरि For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy