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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शतिगृहानुत्तरमी, कुटंब डको, औ ( ३५१ ) पृषो० तारा०] 1. एक बार ब्याई हुई गौ, पहलौठी । नम् हवा,--नाशनः जंगली कबूतर,-नीड: चिड़िया, गाय (सकृत्प्रसूता गोः)-आपीनभारोद्वहनप्रयत्नादगृष्टि: गोरया,-पतिः 1. गृहस्थ, ब्रह्मचर्य आश्रम के पश्चात् --रघु० २।१८, स्त्री तावत्संस्कृतं पठन्ती दत्तनवनस्या विवाहित जीवन बिताने वाला घर का मालिक इव गृष्टि: सूसूशब्दं करोति - मच्छ०३ 2. (दूसरे 2. यजमान 3. गृहस्थ के उपयक्त कर्म अर्थात् आतिथ्य पशुओं के नामों के साथ जुड़कर) किसी भी पशु का आदि,-पाल: 1. घर का संरक्षक 2. घर का कुत्ता, (मादा बच्चा, वासितागृष्टि : हथिनी का(मादा)बच्चा। -..-पोतक: घर की जगह, वह भूभाग जिस पर घर गृहम् [ग्रह +क] 1. घर, निवास, आवास भवन-न गृहं की इमारत बनी हुई है और जो घर को घेरती है, गृहमित्याहुगुहिणी गृहमुच्यते-पंच० ४।८१, पश्य वानर --प्रवेश: नये घर में विधिपूर्वक प्रवेश करना,- बभ्रुः मूर्खण सुगृही निर्गुहीकृता० - पंच० १२३९० 2. पत्नी पालतू नेवला,-बलि: वैश्वदेव यज्ञ में दी जाने वाली (उपर्युक्त उद्धरण कई बार निदर्शन के रूप में प्रयुक्त | आहुति, अवशिष्ट अन्न सब जीवजन्तुओं को वितरण होता है) 3. गृहस्थ-जीवन 4. मेषादि राशि 5. नाम करना, मनु० ३१२६५, भुज् (पुं०) 1. कौवा या अभिधान, हाः (पुं०, ब० व०) 1. घर निवास 2. चिड़िया ---नीडारम्भर्गहबलिभुजामाकुलग्रामचैत्या: --इमे नो गृहा:--मुद्रा० १, स्फटिकोपलविग्रहा गृहाः, -मेघ०२३, देवता घर का देवता जिसे आहुति दी जाती शशभृद्भित्तनिरङ्कभित्तयः- नै० १७६, तत्रागारं है,- भग: 1. घर से निर्वासित व्यक्ति, प्रवासी 2. घर धनपतिगृहानुत्तरेणास्मदीयम् मेघ० ७५ 2. पत्नी का नाश करना 3. घर में सेंध लगाना 4. असफलता 3. घर के निवासी, कुटंब। सम०--अक्षः झरोखा, किसी दुकान या घर की बर्बादी या नाश,-भूमिः मोखा, गोल या आयताकार खिड़की,-अधिपः-ईशः, (स्त्री०) वास्तु स्थान, वह जमीन जिस पर कोई -ईश्वरः 1. गृहस्थ 2. किसी राशि का स्वामी, मकान बना हो,--भेदिन् (वि.) 1. घर के कामों - अयनिक: गृहस्थ,--अर्थ: घरेलू मामला, घरेलू बातें में ताक झांक करने वाला 2. घर में कलह कराने -~-ग्रहार्थोऽग्निपरिष्क्रिया-मनु० २०६७,--अम्लम् वाला, - मणिः दीपक,-माचिका चमगीदड़, मगः एक प्रकार की कांजी,-अवग्रहणी देहली,-अश्मन् कुत्ता,- मेधः 1. गुहस्थ 2. पंचयज्ञ, मेधिन् (पु०) (५०) सिल, (एक आयताकार पत्थर जिस गहस्थ-गृहेर्दारमधन्ते संगच्छन्ते-मल्लि०) प्रजायै गृहपर मसाले पीसे जाते हैं), - आरामः गृहवाटिका, मेधिनाम्-रघु० १७, दे० 'गृहपति',-यन्त्रम् उत्सव --आश्रमः गृहस्थों का आश्रम, ब्राह्मण के धार्मिक आदि के अवसर पर झंडा फहराने का डंडा या कोई जीवन की दूसरी अवस्था--दे० आश्रम, .. उत्पातः और उपकरण--गृहयन्त्रपताकाश्रीरपौरादरनिर्मिता-कु० कोई घरेल वाधा,-उपकरणम् घरेलू बरतन, गृहस्थ ६।४१, -वाटिका--वाटी घर से मिली हुई बगीची, के उपयोग की सामग्री,-कच्छप:-गृहाश्मन् दे०, -वित्तः घर का स्वामी,-शुक: पालतू तोता, आमोद -कपोतः, तक: पालतू कबूतर,-करणम् 1. घरेलू के लिए पाला हुआ तोता-अमरु १३,-संवेशक: मामला 2. घर की इमारत-कर्मन् (न०) गृहस्थ व्यावसायिक भवन निर्माता, स्थपति, स्थ: गही, दूसरे के लिए विहित कर्म, दास: चाकर, घरेल नौकर आश्रम में प्रवेश करके रहने वाला संकटा ह्याहिता ग्नीनां प्रत्यवायर्गहस्थता-उत्तर० ११९, दे० 'गृहपति' शम्भुस्वयंभुहरयो हरिणेक्षणानां येनाक्रियन्त सततं और मनु० ३।३८, ६१९०,°आश्रम: गृहस्थ का जीवन गृहकर्मदासाः-भर्तृ० १११, कलह, घरेल झगड़ा भाई दे० गृहाश्रम, धर्मः गृहस्थ के कर्तव्य ।। भाई की लड़ाई, कारक: घर बनाने वाला, राज, याज्ञ० ३।१४६,--कुक्कुट: पालतू मुर्गा, कार्यम् घर गृहयाय्यः [गृह---णिच्+आय्य] 1. गृहस्थ, घरबार वाला का कामकाज- मनु० ५।१५०,-चूल्ली साथ लगे (तारा के अनुसार 'शब्दकल्पद्रुम' में दिया गया हुए दो कमरों का घर जिनमें से एक का मुख पूर्व 'गृहयाप्य' रूप शुद्ध नहीं है)। और दूसरे का पश्चिम की ओर हो,--छिद्रम 1. घर | गृहयाल (वि.) [गृह-+-णिच्+आलु] पकड़ने वाला, की गुप्त बातें या कमजोरियाँ 2. कौटुम्बिक अनबन, ___ ग्रहण करने वाला। --जः,-जातः घर में ही पैदा हुआ नौकर,---जालिका | गहिणी [गह+इनि+की गहस्वामिनी, पत्नी, गहपत्नी, धोखा, कपटवेष,-ज्ञानिन् (गहेज्ञानिन्' भी) 'घर (घर का कार्यभार संभालने वाली स्त्री)-न गृहं में ही तीसमारखां', अनुभवशून्य, जड, मूर्ख, तटी गृहमित्याहुहिणी गृहमुच्यते, गृहं तु गृहिणीहीनं घर के सामने बना चबूतरा,-दासः घरेल सेवक, कान्तारादतिरिच्यते---पंच० ४।८१ । सम-पदम --देवता घर की अधिष्ठात्री देवता, (व० व०) गृहस्वामिनी का पद या प्रतिष्ठा-यांत्येवं गृहिणीपर्द कुल देवताओं का समूह,-वेहलो घरको दहलोज-यासां युवतयो वामाः कुलस्याधयः-श. ४११७, स्थिता बलि: सपदि मद्गृहदेहलीनाम्-मृच्छ० ११९,-- नम- गृहिणीपदे १८। For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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