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धनः [उद्+हन्+अप् ] लकड़ी का तख्ता जिस पर । दिग्गजे-रघु० ११७८-शि० ११११९ 3. भयावह बढ़ाई लकड़ी रख कर घड़ता है, आगड़ी - लौहोद्घन- 4. स्वेच्छाचारी 5. अतिबहल, विशाल, बड़ा, अत्यधिक
घनस्कन्धा ललितापधनां स्त्रियम् --भट्टि० ७।६२ । --मेघ० २५, रत्ना० २१४, मः 1. यम 2. वरुण, उपनम्मा [उद्+घट्ट+ल्युट्, युच् वा ] रगड़, -मम् (अव्य०) प्रचण्डता के साथ, भीषणतापूर्वक, ..से टकराना-मेघ०६१ ।
बलपूर्वक-अद्योद्दामं ज्वलिष्यतः--उत्तर० ३।९। पर्वणम् [उद्+घृष्+ल्युट ] 1. रगड़ना, घोटना-यस्यो- | उद्दालकम् [ उद्+दल+णिच्+अच्+कन् ] एक प्रकार दुघर्षणलोष्टकैरपि सदा पृष्ठे न जातः किणः-मृच्छ० का शहद, लसोड़े का फल । २।११, 2. सोटा।
उहित (वि०) [ उद+दो+क्त ] बंधा हुआ, बद्ध । उधाटः [ उद्+घट्+घञ्] चौकीदार या चौकी इष्ट (भू० क० कृ०) [ उद्+दिश्+क्त ] 1. बताया (जिसमें सैन्य संरक्षक दल ठहरे)।
हुआ, विशिष्ट, विशेष रूप से कहा गया 2. इच्छित उषाटकः [उद्+घट+णिच+पवुल ] 1. कुंजी 2. कुएँ 3. चाहा हुआ 4. समझाया गया, सिखाया गया।
की रस्सी और डोल, कुएँ की चर्बी (-कम् भी)। | उद्दीपः [ उद्+दीप+घञ ] 1. प्रज्वलित करने वाला, उदघाटन (वि०) (स्त्री०-नी) [उद्+घट+णि+ | जलाने वाला 2. प्रज्वालक ।
ल्युद] खोलना, ताला खोलना-धर्म यो न करोति | उद्दीपक (वि०) [ उद्+दी+णिच्+ण्वुल ] 1. उत्तेजक निन्दितमतिः स्वर्गिलोद्घाटनम्-हि० १११५३,-नम् | 2. प्रकाशक, प्रज्वालक । 1. प्रकट करना-वेणी०१2. उन्नत करना, ऊपर | उहीपनम् [उद+दी+णिच् + ल्युट् ] 1. जलाने वाला, उठाना 3. कुंजी 4. कुएँ पर की रस्सी व डोल, पानी उत्तेजना देने वाला 2. (अल० शा०) जो रस को निकालने की ची।
उत्तेजित करे, दे० 'आलंबन' 3. प्रकाश करना, जलाना उधातः [उद्+हन्+घ ] 1. आरंभ, उपक्रम-उद्- 4. शरीर को भस्म करना।
घातः प्रणवो यासाम्-कु० २।१२, आकुमारकथोद्घातं | उद्दीप्र (वि.) [उद्+-दीप्+रन् ] चमकता हुआ, दहकता शालिगोप्यो जगुर्यशः-रघु० ४।२० 2. संकेत, उल्लेख हुआ,—प्रः,-प्रम् गुग्गुल । 3. प्रहार करना, घायल करना 4. प्रहार, थप्पड़, | उदप्त [ उद्+द+क्त ] घमंडी, अभिमानी । आषात 5. हचकोला, झकझोरना, (गाड़ी आदि का) | उद्देशः [उद्+दिश+घा] 1 संकेत करने वाला, निदेश धचका-शि० १२१२, रघु० २।७२, वेणी० २।२८, 6. . करने वाला 2. वर्णन, विशिष्ट वर्णन 3. निदर्शन, उठना, उन्नत होना 7. मुद्गर 8. शस्त्र 9. पुस्तक व्याख्यान, दृष्टान्त 4. निश्चयन, पृच्छा, समन्वेषण,
खोज 5. संक्षिप्त वक्तव्य या वर्णन----एष तुद्देशतः उपोषः [उद्+धुष्+घ ] 1. ऊँची आवाज में कहना प्रोक्तो विभुतेविस्तरो मया--भग० १०१४०, 6. दत्त
ढिंढोरा पीटना 2. सर्वजन प्रिय बात, सामान्य विवरण । कार्य 7. अनबन्ध 8. अभिप्राय, प्रयोजन 9. स्थान, ईशः [उद्+दंश्+अच ] 1. खटमल 2. जूं 3. मच्छर । प्रदेश, जगह-अहो प्रवातसुभगोऽयमुद्देशः-श. ३, गम (वि.) [अत्या० स०] 1. जिसका तना, डंठल या मालवि०३।
ध्वज उठा हुआ हो--उद्दण्डपन गृहदीर्घिकाणाम्-रघु० उद्देशकः [ उद्+दिश --ण्वुल ] 1. निदर्शन, दृष्टांत १६.४६, °धवलातपत्राः मा०६, 2. मजबूत, भयानक । । 2. (गणित में) प्रश्न, समस्या। सम०-पाल: 1. दंड देने वाला 2. एक प्रकार की | उदेश्य (सं००) [उद+दिश+ण्यत] 1. उदाहरण देकर मछली 3. एक प्रकार का साँप ।
स्पष्ट करने या समझाये जाने के योग्य 2. अभिप्रेत, नहन्तुर (वि.) [प्रा. स.] 1. जिसके दाँत लंबे, या | लक्ष्य,-श्यम 1. लक्ष्यार्थ, प्रोत्साहक 2. किसी उक्ति
बाहर निकले हुए हों 2. ऊँचा, लंबा 3. भयानक, (क्रिया)का कर्ता, (विप० विधेय) दे० 'अनुवाद्य' भी। मजबूत।
उद्योतः [उद्+द्युत्+घञ्] 1. प्रकाश, प्रभा (शा० और उद्दामम् [ उद्+दो+ल्युट ] 1. बंधन, कैद-उहाने क्रिय- आलं.)-विभिनेत्रः कृतोदयोतम्-महा०, कुलोद्योत
माणे तु मत्स्यानां तव रज्जुभिः-महा0 2. पालतू करी तव-रामा० अलंकृत करते हुए 2. किसी पुस्तक बनाना, वश में करना 3. मध्यभाग, कटि 4. चूल्हा, के प्रभाग, अध्याय, अनुभाग या परिच्छेद । अंगीठी, 5. वडवानल।
उद्मावः [उद्+दु+घञ्] भागना, पीछे हटना। हान्त (वि.) [उद्+दम्+क्त] 1. ऊर्जस्वी 2. विनीत।।
दम् क्त 1. ऊजस्वी 2. विनीत । | उसत (भू० क. कृ.) [उद्+हन्+क्त] 1. ऊँचा किया रहाम (वि.) [ग० सं०] 1. निबंध, अनियंत्रित, निरंकुश, हुआ, उन्नत, ऊपर उठाया हुआ---लागूलमुद्धतं धुन्वन्
मुक्त-शि०४।१० 2. (क) सबल, सशक्त-पंच. - भट्रि० ९७ आत्मोद्धतरपि रजोभिः-श० १२८, ३३१४८ (ख) भीषण, नशे में चर-स्रोतस्युद्दाम- । उठाई हुई, रषु० ९/५० हांफा हुआ-कि० ८1५३
उबयामाग, अध्याय, अना7. मुद्गर ४.१णी० २।२८, ४. / उद्देशः (उदर दृष्+क्त प
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