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उदीरणम् [ उद्+ई---ल्युट ] 1. बोलना, उच्चारण, | वमन करना, कह डालना, उत्सर्जन-खर्जूरीस्कन्ध
--अभिव्यंजना उद्घातः प्रणवो यासां न्यायस्त्रिभिरुदी- नद्धानां मदोद्गारसुगन्धिषु-रघु० ४।५७, भर्तृ० २।३६, रणम् कु० २६१२, 2. बोलना, कहना 3. फेंकना, मेघ० ६३,६९, शि० १२१९, (ख) क्षरण, प्रवाह दिल (शस्त्रादिक का) चलाना ।
में भरी हुई बात का बाहर निकालना-रपु० ६१६०, उदीर्ण (भ० क. कृ०) [उद्+ईर+क्त ] 1. बढ़ा हुआ, महावी० ६१३३, 2. बार बार कहना, वर्णन-मा०
उगा हुआ, उत्पन्न 2. फूला हुआ, उन्नत 3. वधित, २।१३, 3. थूक, लार 4. डकार, कंठगर्जन । गहन ।
उद्गारिन् (वि.) [ उद्+ग+णिनि ] 1 ऊपर जाने उदुम्बरः दे० उडुम्बर।
वाला, उगने वाला 2. वमन करने वाला, बाहर भेजने उदूखल-उलूखल।
वाला----रघु० १३१४७। उढा [ उद्-वह+क्त--टाप् ] विवाहित स्त्री। उगिरणम् [ उद्+ग+ ल्युट्] 1. वमन करना 2. थक उदेजय (वि.) [ उद्-एज :-णिच् +खश् | हिलाने वाला, या लार गिराना 3. डकारना 4. उन्मूलन । कंपाने वाला, भयंकर --उदेजयान् भूतगणान् न्यपेधीत् ।
उद्गीतिः (स्त्री०) [उद-|-ग+क्तिन ] 1. ऊँचे स्वर से -भट्टि० १४१५।
गान करना 2. सामवेद के मन्त्रों का गान 3. आर्या उद्गतिः (स्त्री०) [ उद्-+ गम् । क्तिन् ] 1. ऊपर जाना. छंद का एक भेद---दे० परिशिष्ट ।
उठना, चढ़ना 2. आविर्भाव, उदय, जन्मस्थान 3. वमन | उदगीयः [ उद्+7+थक ] 1. सामवेद के मंत्रों का गायन करना।
(उद्गाता का पद) 2. सामवेद का उत्तरार्ध-भूयांस उद्गन्धि (वि०) [ उद्गतो गन्धोऽस्य ----ब० स० इत्वम् ] उद्गीथविदो वसन्ति-उत्तर० २३, 3. 'ओम' जो
1. सुगंधयुक्त, खुश्बूदार-विज़म्भणोद्गन्धिषु कुड्मलेपु परमात्मा का तीन अक्षरों का नाम है। - रघु० २६।४७ 2. तीव्र गंध वाला।
उद्गीण (वि.) [ उद्---ग+क्त] 1. वमन किया हुआ उद्गमः | उद्+गम्+घन ] 1. ऊपर जाना, (तारों 2. उगला हुआ, बाहर उडेला हुआ।
आदि का), उगना चढ़ना----आज्यधूमादगमेन --- श० | उद्गूर्ण (वि.) [ उद्+मूर्+क्त ] ऊँचा किया हुआ, १११५, 2. (बालों का) सीधे ग्वड़े होना-रामोद्गमः ऊपर उठाया हुआ-वेणी० ६।१२। प्रादुरभूदुमायाः --कु० ७१७७, मालवि० ४.१ अमरु उद्ग्रन्थः [ उद्+ग्रन्थ्+घा ] अनुभाग, अध्याय। ३६, 3. बाहर जाना, विदा 4. जन्म, उत्पत्ति, रचना उद्ग्रन्यि (वि.) [ ब० स०] बन्धनमुक्त (आलं. भी)। -- पारिजातस्योद्गम:--मा० २, आविर्भाव–फलेन उद्ग्रहः, हणम् | उद्+ ग्रह +अच् ल्युट् वा] 1. लेना, सहकारस्य पुष्पोद्गम इव प्रजा:-रघु० ४।९, कतिपय- उठाना, 2. ऐसा कार्य जो धार्मिक अनुष्ठान अथवा कुमुमोद्गमः कदम्बः-उत्तर० ३।२०, अमरु ८१, 5. अन्य कृत्यों से सम्पन्न हो सकता है 3. डकार । उभार, उन्नयन 6. (किसी पौधे का) अंकुरण - हरित- | उदग्राहः [उद्+ग्रह+घञ ] 1. उठाना या लेना, 2. तृणोद्गमशङ्कया मगीभिः -कि० ५।३८, 7. वमन | बाद का उत्तर देना, प्रतिवाद । करना, उगलना।
उद्ग्राहणिका [उद्-ग्रह+णिच्--यु+टा+क, उद्गमनम् [ उद्+ गम् + ल्युट ] उगना, दिखाई देना।। ___ इत्वम् ] वाद का उत्तर देना। उद्गमनीय (स० कृ०) [ उद्+गम्-1-अनीयर ] ऊपर | उग्राहित (भू० क. कृ.) [ उद्+ग्रह -+-णिच्+क्त ]
जाने या चढ़ने के योग्य, .. यम बुले कपड़ों का जोड़ा 1. ऊपर उठाया हुआ या लिया हआ 2. हटाया हुआ (तत्स्यादुद्गमनीयं यद्धौतयोर्वस्त्रयोर्यगम)-धौतोद्गम- 3. श्रेष्ठ, उन्नत 4. न्यस्त, मुक्त किया गया 5. बद्ध, नीयवासिनी-दश० ४२, गृहीतपत्यद्गमनीयवस्था--- नद्ध 6. प्रत्यास्मन, याद किया गया। कु०७१११ (यहाँ मल्लि० 'उ-" का अनवाद 'धौतवस्त्र' उदग्रीव, उग्रीविन (वि.) [उन्नता ग्रीवा यस्य-ब० करते हैं और कहते है कि 'युगग्रहणं तु नायिकाभि- स०, उन्नता ग्रीवा-प्रा० स०-- उग्रीवा+इनि] प्रायम्' दे० वहीं)।
गर्दन ऊपर उठाये हुए.--उनीवर्मयूरै--मालवि० उदगाढ (वि.) [ उद्+गाह.+वत ] गहरा, गहन, अत्य- श२१, अमरु ६३।
धिक, अत्यंत-उद्गाहरागोदया:---मा० ५७, ६६, उद्धः [ उद+ हन+ड ] 1. श्रेष्ठता, प्रमुखता (समास के
---ढम् आधिक्य, --(अव्य०) अत्यधिक, अत्यन्त । अन्त में) ब्राह्मणोद्घः==एक श्रेष्ठ ब्राह्मण-उद्घाउद्गात (०) [ उद्+गै--तृच ] यज्ञ के मुख्य चार दयश्च नियतलिङ्गा न तु विशेष्यलिङ्गाः-सिद्धा०,
ऋत्विजों में से एक जो सामवेद के मंत्रों का गान तु० मतल्लिकामचचिका प्रकाण्डमद्घतल्लजी, प्रशस्तकरता है।
वाचकान्यमूनि---अमर० 2. प्रसन्नता 3. अंजलि 4. उद्गारः [ उद्+ग+धन ] 1. (क) निष्कासन, थूकना, ! अग्नि 5. नमूना ६. शरीरस्थित आंगिक वायु ।
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