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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १९४ ) 6. उच्च स्वराघात दे० नी०, तः 1. उच्च स्वर में उच्चरित - उच्चैरुदात्तः- पा० १।२।२९, ताल्वादिषु स्थानेषूर्ध्वभागे निष्पन्नोऽनुदात्तः - सिद्धा०, अनुदात्त के नीचे भी दे०, निहन्त्यरीनेकपदे य उदात्तः स्वरानिव - शि० २।९५, 2 उपहार, दान 3. एक प्रकार का वाद्य — उपकरणं, बड़ा ढोल, तम् ( अलं० शा ० ) एक अलंकार - सा० द० ७५२, तु० काव्य ० १०, उदात्तं वस्तुनः संपन्महतां चोपलक्षणम् । उबामः [उद्+अन्+घञ] 1. ऊपर को सांस लेना 2. सांस लेना, श्वास, 3. पांच प्राणों में से एक जो कण्ठ से आविर्भूत होकर सिर में प्रविष्ट होता है— अन्य चार हैं: -- प्राण, अपान, समान और व्यान; - स्पन्दयत्यघरं वक्त्रं गात्रनेत्रप्रकोपनः, उद्वेजंयति मर्माणि उदानो नाम मारुतः । 4. नाभि । वायुध (वि० ) [ ब०स०] जिसने शस्त्र उठा लिया है, शस्त्र ऊपर उठाये हुए मनुजपशुभिनिर्मर्यादेर्भवद्भिरुदायुधैः, वेणी० ३१२२; उदायुधानापततस्तान्दृप्ताप्रेक्ष्य राघवः -- रघु० १२/४४ । उदार (वि० ) [ उद् + आ+रा+क] 1. दानशील, मुक्तहृदय, दानी 2. ( क ) भद्र, श्रेष्ठस तथेति विनेतुरुदारमते रघु० ८/९१ ५।१२, भग० ७।१८ (ख) उच्च, विख्यात, पूज्य, कीर्ते: कि० १११८, 3. ईमानदार, निष्कपट, खरा 4. अच्छा, बढ़िया, उमदा - उदारः कल्पः -- श० ५ 5. वाग्मी 6. बड़ा, विस्तृत, विशाल, शानदार - रघु० १३७९, उदारनेपथ्यभृताम् - ६, 6. मूल्यवान् वस्त्र पहने हुए 7. सुन्दर, मनोहर, प्यारा - कु० ७।१४, शि० ५।२१, रम् ( अव्य० ) जोर से - शि० ४।३३ । सम० आत्मन् — चेतस्-चरित, मनस् -- तत्त्व ( वि०) विशालहृदय, महामना - उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् - हि० १, घी (वि०) उदात्त प्रतिभाशील, अत्यन्त बुद्धिमान् - रघु० ३३०, दर्शन (वि) जो देखने में सुन्दर है, बड़ी आंखों वाला - कु० ५।३६ । उदारता [उदार+तल्+टाप् ] 1. मुक्तहस्तता, 2. समृद्धि ( अभिव्यक्ति की ) - वचसाम् - मा० १।७ । उदास (वि० ) [ उद् + अस् + घञ्ञ ] तटस्थ, वीतराग, बाग, सः, 1. निःस्पृह, दार्शनिक 2. तटस्थता, अनासक्ति । उदासिन ( वि० ) [ उद् + आस् + गिनि ] 1. निःस्पृह, 2. तत्ववेत्ता । उदासीन (वि०) [उद् + आस् + शानच् ] 1. तटस्थ, बेलाग, निष्क्रिय - तद्दृशिनमुदासीनं त्वामेव पुरुषं विदुः – कु० २०१३, (भौतिक संसार की रचना में कोई भाग न लेते हुए) दे० सांख्य 2. ( विधि में ) अभियोग से असंबद्ध व्यक्ति 3. निष्पक्ष ( जैसा कि राजा या Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राष्ट्र ), -नः 1. अजनवी 2. तटस्थ भग० ६१९ 3. सामान्य परिचय | उदास्थितः [ उद् + आ + स्था + क्त ] 1. अधीक्षक 2. द्वारपाल 3. भेदिया, गुप्तचर 4. तपस्वी जिसका व्रत भङ्ग हो गया है । उदाहरणम् [ उद् + आ + ह् + ल्युट् ] 1. वर्णन, प्रकथन, कहना 2. वर्णन करना, पाठ करना, समालाप आरंभ करना - अथाङ्गिरसमग्रण्यमुदाहरणवस्तुपु - कु० ६।५५, 3. प्रकथनात्मक गीत या कविता, एक प्रकार का स्तुतिगान जो 'जयति' जैसे शब्द से आरंभ हो तथा अनुप्रास से युक्त हो - चरणेभ्यस्त्वदीयं जयोदाहरणं श्रुत्वा - विक्रम ० १ जयोदाहरणं बाह्वोर्गापयामास किन्नरान् रघु० ४।७८, विक्रम० २०१४, ( येन केनापि तालेन गद्यपद्यसमन्वितम्, जयत्युपक्रमं मालिन्यादिप्रासविचित्रितम्, तदुदाहरणं नाम विभक्त्यष्टाङ्गसंयुतम् - प्रतापरुद्र । 4. निदर्शन, मिसाल, दृष्टांत-समूलघातमघ्नन्तः परान्नोद्यन्ति मानिनः, प्रध्वंसितान्धतमसस्तत्रोदाहरणं रविः । शि० २।३३5. ( न्या० में) अनुमानप्रक्रिया के पांच अंगों में से तीसरा 6. ( अलं० शा ० ) ' दृष्टान्त' जो कुछ अलंकारशास्त्रियों द्वारा अलंकार माना जाता है - यह अर्थान्तरन्यास से मिलता जुलता है- उदा० अमितगुणोऽपि पदार्थो दोषेणैकेन निन्दितो भवति, निखिलरसायनराजो गन्धेनोग्रेण लशुन इव । रस०, ( दोनों अलंकारों में भेद स्पष्ट करने के लिए 'उदाहरण' के नी० दे० रस० ) । उदाहारः [ उद् + आ + ह् + घञ् ] 1. मिसाल या दृष्टांत 2. किसी भाषण का आरम्भ । उदित (भू० क० कृ० ) [ उद् + इ + क्त ] 1. उगा हुआ, चढ़ा हुआ - उदितभूयिष्ठ: मा० १, भामि० २८५ 2. ऊँचा, लंबा, उत्तुंग 3. बढ़ा हुआ, आवर्धित 4. उत्पन्न, पैदा हुआ, 5. कथित उच्चरित ( वद् का यन्त रूप ) । सम० -- उदित ( वि० ) शास्त्रों में पूर्ण-शिक्षित । उदीक्षणम् [ उद् + ईक्ष् + ल्युट् ] 1. ऊपर की ओर देखना 2. देखना, दृष्टिपात करना । उदीची [ उद् + अञ्च् + क्विन् + ङीप ] उत्तर दिशा, - तेनोदीचीं दिशमनुसरे: मेघ० ५७ । उदीचीन (वि० ) [ उदीची+ख ]1. उत्तर दिशा की ओर मुड़ा हुआ 2. उत्तर दिशा से संबंध रखने वाला । उदीच्य (वि० ) [ उदीची + यत् ] उत्तर दिशा में होने या रहने वाला, च्यः 1. सरस्वती नदी के पश्मिमोत्तर में स्थित एक देश 2. ( ब० व० ) इस देश के निवासी - रघु० ४।६६, च्यम् एक प्रकार की सुगन्ध । उदीपः [ उद्गता आपो यत्र उद् + अप् (ईप्) ब० स० ] बहुत पानी, जलप्लावन बाढ़ । For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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