________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 718 ) छीमी, दर्शकः रंगशाला का व्यवस्थापक,--धान्यम् | बुद (भ्वा० उभ०-बोदति-ते) 1. प्रत्यक्ष करना, देखना, धनिया,-न्यासः नाटक की कथावस्तु के स्रोत को | समझना, पहचानना 2. समझ लेना, जान लेना। बतलाना,-पुरुषः कुल प्रवर्तक,-फलकः बीजपूर का | बुद्ध (भू० क० कृ०) | बुध+क्त ] 1. ज्ञात, समझा हुआ, पेड़,-मन्त्रः रहस्यमय अक्षर जिससे मंत्र आरम्भ प्रत्यक्ष किया हुआ 2. जगाया हुआ, जागरूक 3. देखा होता है,--मातृका कमल का बीजकोष,-रुहः दाना, हुआ 4. प्रकाशमान / अनाज,-वापः 1. बीज बोने वाला 2. बीज का बोना, | बद्धिमान (दे० बध)-T: 1. बद्धिमान या विद्वान पुरुष, -वाहनः शिव का विशेषण,-सूः पृथ्वी,-सेक्तृ ऋषि 2. (बौद्धों के साथ) बुद्धिमान् या ज्ञानज्योति (10) प्रस्रष्टा, प्रजापति / से प्रकाशमान पुरुष जो सत्य के प्रत्यक्ष ज्ञानद्वारा बोजकः [ बीज+कन् ] 1. सामान्य नींबू 2. नींबू या जन्म-मरण से छुटकारा पा चुका है तथा जो स्वयं चकोतरा 3. जन्म के समय बच्चे की भुजाओं की मुक्त होने से पूर्व संसार की मोक्ष या निर्वाण प्राप्त स्थिति,—कम् बीज। करने की रीति बतलाता है 3. शाक्यसिंह का नाम बोजल (वि.)बीज-लच बीजों से युक्त, बीजों वाला। 'बुद्ध' जो बौद्धधर्म का प्रसिद्ध प्रवर्तक था (उसने बीजिक (वि०) [बोज+ठन ] बीजों से भरा हुआ, कपिलवस्तु में जन्म लिया और ईसा से 543 वर्ष जिसमें बहुत बीज हों। पूर्व निर्वाण प्राप्त किया, कई बार उसे विष्णु का बोजिन् (वि.) (स्त्री०-नी) [ बीज+इनि ] बीजों से नवाँ अवतार माना जाता है, जयदेव कहता है: . युक्त, बीज रखने वाला (पुं०) 1. वास्तविक पिता निन्दसि यज्ञविधेरहह श्रुतिजातं सदयहृदय दर्शितयो प्रजनक (बीज का बोने वाला) (विप० क्षेत्रिन् पशुघातं केशव धृतबुद्धशरीर ! जय जगदीश हरे -खेत या स्त्री का पति या स्वामी) दे०--मनु० 91 -गोत. १)सम०—आगमः बौद्धधर्म के सिद्धान्त और 51 तथा आगे 2. पिता 3. सूर्य / मन्तव्य, उपासकः बुद्ध की पूजा करने वाला, --गया बोज्य (वि.) [बीज-यत् ] 1. बीज से उत्पन्न 2. सम्मानित कुल का, सत्कुलोद्भव / और मत, बुद्धवाद / बीभत्स (वि.) [बध+सन्+घञ ] 1. घणोत्पादक, बुद्धिः (स्त्री०) [बुध। क्तिन् ] 1. प्रत्यक्ष ज्ञान, संबोध घिनौना, दुर्गधयुक्त, भीषण, जुगुप्साजनक- हन्त बीभ- 2. मति, समझ, प्रज्ञा, प्रतिभा तीक्ष्णा नारन्तुदा त्समेवाने वर्तते मा० 5, 'अहो ! यह निश्चित रूप बुद्धिः - शि० 2 / 109, शास्त्रेष्वकुण्ठिता बुद्धि:--रघु० से घिनौना दश्य है' 2. ईाल, प्रद्वेषी, विद्वेषपूर्ण 1 / 19 3. ज्ञान-बुद्धिर्यस्य बलं तस्य हि०२।१२२ 3. बर्बर, क्रूर, खूख्वार 4. मन से विरक्त,-त्सः 'ज्ञान ही शक्ति है' 4. विवेक, विवेचन, सूक्ष्म विचा1. जुगुप्सा, घिनौनापन, गर्हणा 2. बीभत्सरस, काव्य रणा 5. मन - मूढः परप्रत्ययनेयबुद्धिः--मालवि० के आठ या नौ रसों में से एक जुगुप्सास्थायिभावस्तु श२, इसी प्रकार कृपण' पाप' आदि 6. औसान बीभत्स: कथ्यते रसः–सा० द० 236 (उदा० मा० रहना, प्रत्युत्पन्नमतित्व 7. धारणा, सम्मति, विश्वास, 5 / 16) 3. अर्जुन का नामान्तर / विचार, भावना, भाव दूरातमवलोक्य व्याघ्रबुद्ध्या बीभत्सुः [बधु+सन्+उ] अर्जुन का विशेषण / महा० पलायन्ते-हि० 3, अनया बुद्धया मुद्रा० 1, 'इस इस प्रकार व्याख्या करता है-न कुर्यात्कर्म बीभत्सं विश्वास से'-अनुक्रोशबुद्धया मेघ० 115 8. आशय, युध्यमानः कथंचन, तेन देवमनुष्येषु बीभत्सुरिति प्रयोजन, प्रायोजना (बुद्धचा) 'इरादतन' 'प्रयोजन से' विश्रुतः। 'जानबूझ कर 9. सचेत होना, मूर्छा से जागना -मा० बुक (अव्य०) [बुक्क् + क्विप् पृषो० उपधालोपः ] अनु- 4 10. (सां० द० में) सांख्यशास्त्र में वर्णित पच्चीस करणमूलक शब्द / सम-कारः सिंह की दहाड़। तत्त्वों में से दूसरा। सम० --- अतीत (वि.) बुद्धि की बुक्क (म्वा० पर०, चुरा० उभ० बुक्कति, बुक्कयति-ते) | पहुँच से परे, अवज्ञानम् किसी की समझ का तिर___1. भौंकना-हि० 352 2. बोलना, बात करना। स्कार करना या निकृष्ट मत रखना-अप्राप्तकाल वचनं बुक्कः, कम् [बुवक+अच् ] 1. हृदय 2. दिल, छाती बृहस्ततिरपि ब्रुवन, प्राप्नोति बुद्धयवज्ञानमपमानं च -बुक्काघातर्यवतिनिकटे प्रोढवाक्यंन राधा-उद्भट | पुष्कलम् - पंच० ११६३,-इन्द्रियम् प्रत्यक्षीकरण की 3. रुधिर, क्क: 1. बकरा 2. समय / इन्द्रिय, विपकर्मेन्द्रिय)(यह पांच है-कान, त्वचा, आँख बुक्कन् (पुं०) [बुक्क्-+शत ] हृदय, दिल / जिह्वा और नाक-श्रोत्रं त्वक्चक्षुषी जिह्वा नासिका बुल्कमम् [बुक्क् + ल्युट ] भौंकना, भौं भौं करना / चैव पंचमी, इनमें कभी कभी 'मनस्' जोड़ा जाता है) बुक्कसः [-पुक्कस, पृषो० साधुः] चंडाल / नाम्य-ग्राह्य (वि०) पहुंच के भीतर, उपलब्ध बुक्का,-पकी [बुक्क+टाप, ङीष् वा ] हृदय, दिल। करने योग्य, प्रतिभा, ---जीवन (वि.) 'तर्क' का For Private and Personal Use Only