________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 897 ) वंद्र: [वंद+रक पूजा करने वाला, भक्त, द्रम् समद्धि। / वपिल: [ वप्न- इलच ] प्रजापति, पिता / बंधुर (वि०) दे० 'बंधुर'। वपुनः (पुं०) सुर, देवता।। वंध्य, वंध्या दे० बंध्य, बंध्या / बपुष्मत् (वि.) [ व+उसि+मतुप् ] 1. मूर्त, देहवन्य (वि.) वने भवः यत्] 1. जंगल से संबंध रखने धारी, शरीरधारी-ददृशे जगतीभुजा मुनिः स वपु वाला, जंगल में उगने बाला या उत्पन्न, जंगली | मानिव पुण्यसंचय:--कि० 2056 2. सुन्दर, मनोहर, कल्पविकल्पयामास वन्यामेवास्य संविधाम-रघु० पुं० विश्वेदेवों में से कोई एक / 1194, वन्यानां मार्गशाखिनाम् 45 2. बर्बर, जो वपुस् (नपुं०) [व+उसि ] 1. (क) शरीर, देह पालतू या धरैल न हो रघु० 2 / 8, 37, 5/43, (स्मर) वपुषा स्वेन नियोजयिष्यति-कु० 4 / 42, न्यः जंगली जानवर,-न्यम् जंगली पैदावार (जैसे नवं वयं कातमिदं वपुश्च -- रघु० 2 / 47, शि० 10 // कि फल, मूल क्षादि) रघु० 1220 / सम० 50, (ख) रूपं, आकृति, सूरत या छवि-- लिखित----इतर (वि०) पालतू, घरेल,- गजः,--द्वीपः जंगली वपुषौ शंखपयो च दृष्ट्वा मेघ० 80, परिघः हाथी। क्षतजतुल्यवपुः बृहत्० 30125 2. रस, प्रकृति वन्या [वन्य-+-टाप्] 1. विशाल जंगल, झुरमुटों का समूह | मनु० 596 3. सौन्दर्य, सुन्दर रूप या छवि / 2. जलराशि, वाद, जल-प्रलय / सम० गुणः, प्रकर्षः रूप की श्रेष्ठता, वैयक्तिक व (म्वा० उभ० वपति, वपते, उप्तः, कर्मवा० उप्यते, सौन्दर्य-संधुक्षयंतीव वर्गणेन--कुं० 3152, इच्छा० विवप्सति ते) 1. बोना, (बीज) बिखेरना, वपुः प्रकर्षादजयद् गुरुं रघुः रघु० 3 / 34, कि० पौधा लगाना यथेरिणे बीजप्त्वा न वप्ता लभते 312, पर (वि०) 1. मूर्त 2. सुन्दर * लवः शरीर फलम्-मनु० 3 / 142, न विद्यामिरिणे वपेत्-२१११३, से चने वाला तरल रस / यादशं वपते बीजं तादृशं लभते फलम् - सुभा०, कु. वप्त (पुं०) [वप्+तुच ) 1. (बीज का) बोने वाला, 25, श०६।२३ 2. फेंकना, (पांसा) डालना 3. पौधा लगाने बाला, किसान न शाले: स्तम्बकरिता जन्म देना, पैदा करना 4. बनना 5. मुंडना, बाल वस्तुर्गणमपेक्षते--- मुद्रा० 13, मनु० 33142 2. काटना (प्रायः वैदिक), प्रेर० (वापयति-ते) पिता, प्रजापति 3. कवि, अन्तःस्फूर्त या प्रणोदित बोना, पौधा लगाना, भूमि में डालना, आ. 1. ऋषि / बिखेरना, इधर उधर फेंकना 2. बोना 3. यन्न | वप्रः,-प्रम् [ उप्यते अत्र व+रन् / दुर्गप्राचीर, मिट्टी की आदि में आहति देना उद , उडेलना नि 1. दीवार, गारे की भित्ति-- वेलावप्रवलयां (ऊर्वीम्) (बीज ) इधर-उधर बिखेरना 2. ( आहुति ) रघु० 1030 2. तटबंध या टीला (जिसमें कि सांड देना, विशेषतः पितरों को,- न्यप्य पिण्डांस्ततः / या हाथी टक्कर लगाते हैं) रघु० 13147, दे० नी. ___ मनु० 31216, (स्मरमुद्दिश्य) निवपेः सहकार बप्रक्रीड़ा 3. किसी पहाड़ या चट्टान का ढलान मंजरी:- कु०४।३८ 3. बलि चढ़ाना, यज्ञ के पशु -~-बृहच्छिलावप्रधनेन वक्षसा-कि० 14140 4. का वध करना निस्---, 1. बिखेरना, (बीज चादि) चोटी, शिखर, अधित्यका--तीव्र महाव्रतमिवात्र छितराना 2. प्रस्तुत करना, पेश करना-श्रोत्रियाया- चरन्ति वप्राः शि० 4158, 3137, कि० 5 / 36, 6 // भ्यागताय वत्सतरी वा महोक्षं वा निर्वपंति गहमेधिनः 7 5. नदीतट, पाव, किनारा, वेलातट,- ध्वनयः, उत्तर० 4 3. तर्पण करना, विशेषकर पितरों का प्रतेनरनुवप्रनपाम्--कि० 6 / 4, 711, 17:58 4. अनुष्ठान करना प्रति-, 1. बोना 2. पौधा 6. किसी भवन की नींव 7. शहरपनाह या दुर्गप्राचीर लगाना, जमाना, रोपना-उत्तर०३।४६, मा० 5 / से युक्त नगर का फाटक 8. खाई 1. वृत्त का व्यास 10 3. जमाना, (रत्नादिक) जड़ना, प्र-, फेंकना 10. खेत 11. मिट्टी का टीला (जिसको कि हाथी या डालना, प्रस्तुत करना ----भट्टि० 9/98 / सांड़ टक्कर मारे)-प्र: पिता,-प्रम् सीसा। सम. वपः [वप्-11] 1. बीज बोना 2. जो बीज बोता है, -- अभिघातः (किसी पहाड़ या नदी आदि के) तटबोने वाला 3. मुंडना , बनना। बंध पर टक्कर मारना-कि० 5 / 42, तु० 'तटाघात' वपनम् [ वप् + ल्युट् ] 1. बीज बोना 2. मुंडना, काटना ---क्रिया,-कीड़ा किसी टीले या तटबन्ध पर हाथी मनु० 112151 3. वीर्य, शुक्र, बीज---नी 1. नाई (या सांड़) का टक्कर मार कर विहार करना-वप्रकी दुकान 2. बुनने का उपकरण 3. तन्तु शाला।। क्रियामक्षवतस्तटेषु- रघु० 5 / 44, वप्रक्रीडापरिणत वपा [वप्न-अच-1-टाप्] 1. चर्बी, वसा-याज्ञ० 3 / 94 गजप्रेक्षणीयं ददर्श--मेघ०२। 2. छिद्र, रन्ध्र 3. बमी, दीमकों द्वारा बनाया गया वतिः[वपु+क्रिन ] 1. खेत 2. समुद्र। मिट्टी का टीला / सम० कृत् (पुं०) वसा, मज्जा। | वनी [वधि+की ] मिट्टी का टीला, पहाड़ी। For Private and Personal Use Only