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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतम को अपने प्रातःकालीन नित्यकृत्य करने के लिए | अहिंस्र (वि.) [न० त०] अनिष्टकर, निर्दोष, अहिंसक अगा दिया। इन्द्र ने अन्दर प्रविष्ट होकर गौतम -मनु० ४।२४६. । का स्थान ग्रहण किया। ' जब गौतम को अहल्या के | अहिकः एक अंधा साँप ।। पथभ्रष्ट होने का ज्ञान हआ तो उसने उसे आश्रम से अहित (वि.) [न० त०] 1. जो रक्खा न गया हो, धरा निर्वासित कर दिया और शाप दिया कि वह पत्थर न गया हो, जमाया न गया हो 2. अयोग्य, अनुचित बन जाय तथा तब तक अदश्य अवस्था में पड़ी रहे -- मनु० ३।२०, 3. क्षतिकर, अनिष्टकर 4. अनपकाजब तक कि दशरथ के पुत्र राम का चरण-स्पर्श न रक 5. अपकारी, विरोधी,-त: शत्रु - अहिताननिहो, जो कि अहल्या को फिर पूर्वरूप प्रदान करेगा। लोद्धस्तर्जयन्निव केतुभिः---- रघु० ४१२८, ९।१७, उसके पश्चात् राम ने उस दीन-दशा से उसका उद्धार ११४६८,-- तम् हानि, क्षति । किया-और तब उसका अपने पति से पुनोमलन | अहिम (वि०) [न० त०] जो ठंडा न हो, गर्म । सम० हआ। अहल्या प्रातःस्मरणीय उन पांच सती तथा --अंशुः,-करः,-तेजस्,- द्युतिः,-रुचिः, सूर्य ।। विशद्ध चरित्र महिलाओं में एक है जिनका प्रातःकाल | अमीन विनत.11. अक्षण. पर्ण. समस्त 2. जो नाम लेना श्रेयस्कर है-अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा छोटा न हो, बड़ा- अहीनबाहुद्रविणः शशास- रघु० मंदोदरी तथा, पंचकन्याः स्मरेन्नित्यं महापातक-- १८।१४, 3. जो वञ्चित न हो, अधिकार प्राप्त-मनु० नाशिनीः । सम० --- जारः इन्द्र,-नन्दनः शतानन्द २११८३ 4. जातिबहिष्कृत न हो, दुश्चरित्र न हो,-नः मुनि, अहल्या का पुत्र । कई दिनों तक होने वाला यज्ञ, (नम्-भी)। सम० अहह ( अव्य०) [ अहं जहाति इति-हा+क पुषो०] -वादिन (पुं०) गवाही देने में असमर्थ, अयोग्य गवाह । विस्मयादि द्योतक निपात निम्नांकित अर्थों में प्रयुक्त | अहीरः [ आभारी पृषो० साधुः ] ग्वाला, अहीर ।। होता है.----(क) शोक, खेद--अहह कष्टमपण्डितता अहत (वि.) न० त०] जो यज्ञ न किया गया हो, जो विधेः-- भ००।९२, ३१११, अहह ज्ञानराशिविनष्टः (आहुति के रूप में) हवन में प्रस्तुत न किया गया -मुद्रा०२ (ख) आश्चर्य, विस्मय-अहह महतां निस्सी हो--मनु० १२।६८,तः धर्मविषयक चिन्तन, मनन, मानश्चरित्रविभूतयः--भर्तृ ० २।३५, ३६, (ग) दया, प्रार्थना और वेदाध्ययन (पांच महायज्ञों और कर्तव्यों तरस-भामि०४।३९ (घ) बुलाना (ङ) थकावट । में से एक)-----मनु० ३।७३, ७४।। अहिः [ आहन्ति ....आ+हन्+इण स च डित आडो | अहे (अव्य०) [ अह--ए] (क) झिड़की, भर्त्सना (ख) ह्रस्वश्च ] 1. साँप, अजगर...-अहयः सविषाः सर्वे खेद तथा (ग) वियोग को प्रकट करने वाला निपात । निविषा: डुडुमाः स्मृताः -- कथा० १४१८४, 2. अहेतु (वि०) | न० ब० ] निष्कारण, स्वतः स्फूर्त- अहेतुः सूर्य 3. राहुग्रह 4. वासुर 5. धोखेबाज, बदमाश 6. पक्षपातो यः- उत्तर० ५।१७ । बादल। सम०–कांतः वायु, हवा, कोष: साँप | अहे (है) तुक (वि०) [न० ब० कप् ] निराधार, निष्काकी केंचुली- छत्रकम् कुकुरमत्ता,--- जित् (पुं०) 1.! रण, निष्प्रयोजन-भग० १८।२२ । कृष्ण (कालिय नाग को मारने वाला ) 2. इंद्र अहो (अव्य०) [हा-+डो न० त०] निम्नांकित अर्थों को --तुंडिकः सांप पकड़ने वाला, सपेरा, बाजीगर, प्रकट करने वाला अव्यय--(क) आश्चर्य या विस्मय -द्विष,-द्रुह-मार,-रिपु,-विद्विष् (पुं०) 1. -बहुधा रुचिकर -- अहो कामी स्वतां पश्यति---श० गरुड़ 2. नेवला 3. मोर 4. इन्द्र 5. कृष्ण--कि० २६२, अहो मधुरमासां दर्शनम् श० १, अहो बकुला४।२७, शि० ११३१, नकुलम् साँप और नेवले, वलिका-मालवि० १, अहो रूपमहो वीर्यमहो सत्त्व... नकुलिका साँप और नेवले के मध्य स्वाभाविक वैर, महो द्युतिः-रामा० (अहो उसका रूप आश्चर्य जनक --निर्मोक: साँप की केंचुली,-पतिः 1. साँपों का है--आदि) (ख) पीडाजनक आश्चर्य----अहो ते विगत स्वामी, वासुकि 2. कोई बड़ा साँप, अजगर साँप चेतनत्वम्-का० १४६, 2. शोक या खेद-अहो दुष्यन्त---पुत्रक: साँप के आकार की बनी किश्ती,----फेनः, स्य संशयमारूढाः पिंडभाजः - श० ६, विधिरहो बल---नम् अफीम,-भयम् किसी छिपे हुए साँप का भय, वानिति मे मतिः-भर्त० २।९१, 3. प्रशंसा (शाबास, घोखे की शङका, अपने-मित्रों की ओर से भय,- भुज बहुत खूब) -- अहो देवदत्त: पचति शोभनम्-सिद्धा० (पुं०)1. गरुड़ 2. मोर 3. नेवला-भृत (पुं०) शिव । 4. झिड़की (धिक,) 5. बुलाना, संबोधित करना 6. अहिंसा [न० त०] 1. अनिष्टकारिता का अभाव, किसी ईर्ष्या, डाह 7. उपभोग, तृप्ति 8. थकावट 9. कई बार प्राणी को न मारना, मन वचन कर्म से किसी को पीड़ा केवल अनुपूरक के रूप में अहो न खलु (भोः), सामान देना--अहिंसा परमोधर्म: -- भग० १०१५, मनु० न्य रूप से आश्चर्य जो रोचक हो-अही नु खल ईदशी१०१६३, ५१४४, ६७५, 2. सुरक्षा। मवस्थां प्रपन्नोऽस्मि-श० ५, अहो नु खल भोस्तदेत For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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