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अस्मिता [ अस्मि+तल-टाप् ] अहंकार ।
के आदि में यह 'अहस्-या अहर' बन जाता है यथा अस्मृतिः (स्त्री०) [न० त०] स्मृति का अभाव, भूलना। - अहःपति या अहपतिः आदि )। सम-आगमः अस्त्रः [ अस्- रन् ] 1. किनारा, कोश 2. सिर के बाल, (अहरा") दिन का आना, -- आदिः उषःकाल,-करः
-स्रम् 1. आँसू 2 रुधिर । सम०-कंठः बाण,- जम् सूर्य,- गणः (हर्ग°) 1. यज्ञ के दिनों का सिलमांस,-पः रुधिर पीने वाला राक्षस,-'पा जोक सिला, 2. महीना,-दिवम् (अव्य०) प्रतिदिन, हर - मातृका अन्नरस, आमरस, आँव ।
रोज, दिन प्रति दिन,—निशम् दिन-रात,—पतिः सूर्य, अस्व (वि०) [न० ब०] 1. अकिंचन, निर्धन 2. जो -बांधवः सूर्य,--मणिः सूर्य,- मुखम् दिन का आरंभ, अपना न हो।
प्रभात, उषःकाल—त्रिंशत्कला महर्तः स्यादहोरात्रं तू अस्वतंत्र (वि.) [न० त०] 1. आश्रित, अधीन, पराधीन तावतः-मनु० १। ६४, ६५, -शेषः,-षम् सायंकाल।
--अस्वतंत्रा स्त्री पुरुषप्रधाना-वशिष्ठ 2. विनीत। | अहम् (सर्व) [ 'अस्मद् शब्द का कर्तृ कारक ए० व०] अस्वप्न (वि.) [न०व०] निद्रारहित, जागरूक,-प्न: मैं। सम०-अप्रिका श्रेष्ठता के लिए होड़, प्रतिद्वन्द्विता, 1. देवता 2. अनिद्रा ।
- अहमिका 1. होड़, प्रतियोगिता, अपनी श्रेष्ठता अस्वरः [न० त०] 1. मन्द स्वर 2. व्यंजन,- रम् का दावा--अहमहमिकया प्रणामलालसानाम्-का. (अव्य०) ऊँचे स्वर से नहीं, धीमी आवाज से ।
१४, 2. अहंकार 3. सैनिक अहंमन्यता,-कार: 1. अस्वयं (वि.) [न० त०] जो स्वर्ग प्राप्त करने के योग्य अभिमान, आत्मश्लाघा, वेदान्त दर्शन में 'आत्मप्रेम'
न हो --अस्वयं लोकविद्विष्टं धर्ममप्याचरेन्न तु-या० अविद्या या आध्यात्मिक अज्ञान समझा जाता है,-भग० १११५६ ।
१ ७१, ७।४, मनु० ११ १४, 2. धमंड, स्वाभिमान, अस्वस्थ (वि.) [ न० त०] 1. जो नीरोग न हो, रोगी गर्व 3. (सां० द० में) सृष्टि के मूलतत्व या आठ - बलवत् अस्वस्था-श० ३, अतिरुग्ण ।।
उत्पादकों में से तीसरा अर्थात् आत्माभिमान या अस्वाध्यायः [ न स्वाध्यायो वेदाध्ययनमस्य ---न० व० | 1. अपनी सत्ता का बोध,---कारिन (वि०) घमंडी,
जिसने अभी अध्ययन आरंभ नहीं किया. जिसका अभी स्वाभिमानी,-कृतिः (स्त्री०) अहंकार, घमंड,-पूर्व यज्ञोपवीत संस्कार न हुआ हो 2. अध्ययन में रुकावट (वि०) होड़ में प्रथम रहने का इच्छुक,-पूविका,
(जैसे कि अष्टमी, ग्रहण आदि के कारण अनध्याय)। -- प्रथमिका 1. होड़ के साथ सैनिकों की दौड़, होड़, अस्वामिन् (वि.)/न० त०] जो किसी वस्तु का अधिकारी प्रतियोगिता ---जवादहपूर्विकया थियासुभिः- कि०१४॥
न हो, जो स्वामी न हो। सम..-विक्रयः विना ३२, 2. डींग,मारना, आत्मश्लाघा,- भद्रम् स्वाभिस्वामी बने किसी वस्तु का बेंचना ।
मान, अपनी श्रेष्ठता का दृढ़ विचार,---भावः 1. घमंड, अह (भ्वा० आ० या चुरा० उभ०)=तु० अंह ।
अहंकार-भामि०४।१०,२:- मति तु०-मतिः (स्त्री०) (अव्य०) [अंह, -घश पो० न लोपः] निम्न
1. आत्मरति या स्वानुराग जो आध्यात्मिक अज्ञान अर्थों को प्रकट करने वाला निपात या अव्यय -... (क) समझा जाता है (वेदा०) 2. दम्भ, घमंड, अहंकार । स्तुति (ख) वियोग (ग) दृढसंकल्प या निश्चय (घ) अहरणीय, अहार्य (वि०) [ न० त०] 1. जो चुराये जाने अस्वीकृति (च) प्रेपण तथा (छ) पद्धति या प्रथा ! के योग्य न हो, या हटाये जाने अथवा दूर ले जाये जाने की अवहेलना।
के योग्य न हो-अहार्य ब्राह्मणद्रव्यं राज्ञां नित्यमिति अहंयु (वि.) [ अहम् +यस् ] घमंडी, अहंकारी, स्वार्थी स्थिति:- मनु० ९। १८९, 2. श्रद्धालु, निष्ठावान् -भटि० ११२० ।
3. दृढ़, अविचल, अननुनेय-कु० ५। ८,--यः पहाड़ । अहत (वि०) [न० त०] 1. अक्षत, अनाहत 2. बिना । अहल्य (वि०) [न० त०] बिना जोता हुआ, -- ल्या
धुला, नया, -- तम् विना धुला (कारा), या नया गौतम की पत्नी (रामायण के अनुसार अहल्या सबसे कपड़ा, तु० 'अप्रहत'।
पहली स्त्री थी जिसे ब्रह्मा ने पैदा किया . और गौतम अहन (नपुं०) जहाति त्वजति सर्वथा परिवर्तन, न- को दे दिया, इन्द्र ने उसके पति का रूप धारण करके हाकिनिन् न० त०] (कर्त० अहः, अह्रो-अहनो, उसे सत्पथ से फसलाया इस प्रकार उसे धोखा दिया । अहानि-अह्ना अहोभ्याम् आदि ) 1. दिन (दिन दूसर कथानक के अनुसार वह इन्द्र को जानती थी और रात दोनों को मिलाकर )-अघाहानि मनु० और उसके अनुराग तथा नम्रता के वशीभूत हो वह ५। ८४, 2. दिन का समय -- सव्यापारामहनि न तथा उसकी चापलसी का शिकार बन गई थी। इसके पीडयेन्मद्वियोगः मेध० ९०, ---- यदला कुरुते पापम्- अतिरिक्त एक और कहानी है जिसके अनुसार इन्द्र दिन में, (समस्त पर के अन्त में 'अहन्' बदल कर ने चन्द्रमा की सहायता प्राप्त की। चन्द्रमा ने मर्ग 'अह:--- अहम् या अह्न' रह जाता है परन्तु समस्त पद । बनकर आधी रात को ही बांग दे दी। इस बांग ने
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