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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५८२ ) बन्द करना, चारों ओर से घेरा डालना, बाड़ बनाना | 2. जान पहचान, परिचिति, घनिष्ठता, सरकारी 3. पहनना, (वेषभूषा की भांति) लपेटना--मौलि- संरक्षण-पुरुषपरिचयेन-मच्छ० २५६, अतिपरिपरिग्रहः-रघु० १८०३८ 4. धारण करना, लेना--- चयादवज्ञा 'अतिपरिचय से होता है, अरुचि अनादर मानपरिग्रह:--अमरु ९२, विवाहलक्ष्मी उत्तर०४ भाय' परिचयं चललक्ष्यनिपातेन-रधु० ९।४९, 5. प्राप्त करना, लेना, स्वीकार करना, अंगीगार । सकलकलापरिचयः-का० ७६ 3. जांच, अध्ययन, करना-भौमो मनेः स्थानपरिग्रहोऽयम्-रघु० १३। अभ्यास, मुहमहु- आवृत्ति, हेतुपरिचयस्थये वक्तुर्गुण३६, अर्घ्यपरिग्रहांते-७०, १२।१६, कु० ६।५३, निकैव सा--शि० २१७५, ११५, वर्णपरिचयं करोति विद्यापरिग्रहाय -मा० १, इसी प्रकार--आसनपरि- -श० ५ 4. ज्ञान ---महावीर ५।१० 5. पहचान, ग्रहं करोतु देव:.-उत्तर० ३, 'आसन-ग्रहण कीजिए --मेघ०९। महाराजाधिराज' 6. वैभव, संपत्ति, सामान-त्यक्त- परिचरः [परि+चर-अच] 1. सेवक, अनुचर, टहलुआ सर्वपरिग्रहः--भग० ४।२१, रघु० १५५५, विक्रम 2. शरीर रक्षक 3. रक्षक, पहरेदार 4. श्रद्धांजलि, ४।२६ 7. आवाह, विवाह-- नवे दारपरिग्रहे सेवा। उत्तर. १।१९,-मा० ५।२७, श० ११२२ 8. पत्नी, परिचरणः पिरि-चर-+ल्युट] सेवक, टहलूवा, सहायक, रानी-प्रयतपरिग्रहद्वितीयः-- रघु० ११९५, ९२, । | --णम् 1. सेवा, टहल 2. इधर उधर जाना। ९।१४, १११३३, १६।८, २०५।२७, ३०, परिग्रह परिचर्चा परिचर-1क्यपटाप। । मेवा. टहल बहुत्वेऽपि- श० ३१२१ 9. अपने रक्षण में लेना, __ --रघु० २९१, भग० १८।४४ 2. अर्चना, पूजा अनुग्रह करना--उत्तर० ७.११, मालवि० १४१३ -शि० १११७। 10. अनुचर, अनुसेवी, नौकर-चाकर, परिजन, सेवक परिचाय्यः [परि+चि प्रयत] यज्ञाग्नि (कुण्ड में स्थासमूह 11. गृहस्थ, परिवार, परिवार के सदस्य पित)। 12. राजा का अन्तःपुर, रनिवास 13. जड़, मूल परिचारः परि+चर+घा] 1. रोवा, टहल 2. सेवक 14. सूर्य या चन्द्रमा का ग्रहण 15. शपथ 12. सेना 3. टहलने का स्थान । का पिछला भाग 17. विष्णु का नाम 18. संक्षेप, परिचारकः, परिचारिकः [परि+च+ बुल, परिचार उपसंहार। +ठन् सेवक, टहलवा। परिग्रहीतु (पुं०) [परि---गद+तृच पति--श० ४।२२। परिचित (भू. क. कृ.) [परि चि+क्त] 1. ढेर परिक्लान (भू० क० कृ०) [परि+ग्ल+क्त] 1. शिथिल, लगाया हुआ, इकट्ठा किया हुआ 2. जानकार, थका हुआ 2. विमुख, पराङमुख । घनिष्ठ, जान पहचान का 3. सीखा गया, अभ्यस्त । परिघः [परि हुन् । अप, घादेशः] 1. लोहे की छड़ या । परिचितिः (स्त्री०) [परि+चि-+-क्तिन्] जान पहचान, लकड़ी का मसल जो द्वार को बंद रखने के लिए परिचय, घनिष्टता। प्रयुक्त की जाय, अर्गला- एकः कृत्स्ना नगरपरिष परिच्छद् (स्त्री०) [परि+छद् -+-क्विप्] 1. परिजन, प्रांशुबाहु नक्ति-श० २।१५, रघु० १६३८४, शि० अनुचरवर्ग 2. साज-सामान । ३२, मालवि० ५।२ 2. (अतः) रोक, अवरोध, परिच्छदः [परि+छ+णिच्+घ] 1. आवरण, चादर, विघ्न, बाधा-भार्गवस्य सुकृतोऽपि सोऽभवत्स्वर्गमार्ग पोशाक 2. वस्त्र, वेशभुषा- शाखावसक्तकमनीय परिघो दुरत्ययः-रघु० ११३८८ 3. लोहे की स्याम परिच्छदानाम्-कि० ७।४० 3. नोकरचाकर, परिजन, लगी हुई लाठो, मुद्गर जिसमें लोहे की स्याम जड़ टहलए, आश्रितमंडली-रघु० ९/७० 4. साजदो गई हो रघु० १२७३ 4. लोहे की गदा 5. जल सामान, (छत्र, चामर आदि) ऊपरी सामान–सेना पात्र, धड़ा 6. शीशे की झारी 7. घर 8. मारना, परिच्छदस्तस्य-रघु० १११७ 5. सामान, असबाब, नष्ट करना 9. प्रहार करना-आघात या थप्पड़ । व्यक्तिगत सामान, निजी चीजे व सामान (बर्तनभांडे, परिघट्टनम् [परि+घट्ट ल्यूट घोटना, कड़छी चलाना। तथा अन्य उपकरण आदि) - विवास्यो वा भवेद्राष्ट्रापरिघातः, -घातनम् [परि+हन्+णिच घा, नस्य तः, त्सद्रव्यः सपरिच्छदः-- मनु० ९४२४१,७१४०, ८१४०५, ल्युवा] 1. मारना, प्रहार करना, हटाना, छुटकारा ९।७८, १२७६ 6. यात्रा का आवश्यक सामान । पाना 2. मुद्गर, मोटे सिरे की छड़ी। परिच्छंदः [परि। छन् । को नौकर-चाकर, परिजन । परिघोषः [परि-+-घुष्+घञ्] 1. कोलाहल 2. अनुचित परिच्छन्न (भू० क० कृ०) [परि-|-छद्+क्त] 1. वेष्टित, भाषण 3. गर्जन। ढका हुआ, वस्त्राच्छादित, जिसने वस्त्र पहने हुए हों परिचतुर्दशन् (वि.) [प्रा० स०] पूरे चौदह । 2. ऊपर फैलाया हुआ, या बिछाया हआ 3. घिरा परिचयः [परि ।-चि --अप] 3. ढेर लगाना, एकत्र करना । हुआ (परिजनों से) 4. छिपा हुआ। For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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