________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 975 ) जन्म हुआ। पद्मपुराण के अनुसार वह भली भांति / तस्वत् (वि०) (स्त्री०-ती) [ वेतस+मतुप, मस्य शासन करने लगा, परन्तु बाद में वह जैन-नास्तिकता वः] जहाँ नरकुल बहुतायत से पाये जायें। में फंस गया। यह भी कहा जाता है कि उसने | वेतालः [अज्+विच, वी आदेश:, तल+घञ कर्म वर्णव्यवस्था में गड़बड़ी फैलाई, तु० मन० 7141, स० 11. एक प्रकार की भूतयोनि, पिशाच, प्रेत, 966-67) / विशेषकर शव पर अधिकार रखने वाला भूत-- मा. वेणा [ वेण+टाप् ] एक नदी का नाम (जो कृष्णा नदी . 5 / 23, शि० 20 / 60 2. द्वारपाल / में जाकर मिलती है)। वेत्तु (पुं०) [विद्+तृच् ] 1. ज्ञाता 2. ऋषि, मुनि बेणिः,-णी (स्त्री०) [ वेण्-+-इन्, डीप् वा ] 1. गुंथे हुए | 3. पति, पाणिग्रहीता। बाल, बालों की मींढी,-तरङ्गिणी वेणिरिवायता भुवः वेत्रः [ अज्+त्रल, वी भावः ] 1. वेत, नरसल 2. लाठी, -शि० 1275, मेघ०१८ 2. बालों की एक छड़ी, विशेष कर द्वारपाल की छड़ी,-वामप्रकोष्ठापितअनलंकृत चोटी जो पीठ पर लटकती रहती है (कहा हेमवेत्र:-कु० 3.41 / सम--आसनम् बेंत की जाता है कि वही स्त्रियां ऐसी चोटी करती हैं जिनके बनी गद्दी,-धरः,-बारक: 1. द्वारपाल 2. आसाघारी, पति घर पर न हों) वनानिवृत्तेन रघूत्तमेन मुक्ता छड़ीबरदार। स्वयं वेणिरिवाबभासे-रघु० 14.12, अबलावेणि वेत्रकीय (वि.) [वेत्र+छ, कुक ] वेत्रबहुल, जहाँ नरकुल मोशोत्सुकानि-मेघ० 99, कु० 2161 3. अनवच्छिन्न बहुत पाये जायें। प्रवाह, धारा, सरिता जलवेणिरम्यां रेवां यदि वेत्रवती [ वेत्र+मतुप+कोष ] 1. स्त्री द्वारपाल 2. एक प्रेक्षितुमस्ति कामः-रघु०६।४३, मेघ० 29, तु० नदी का नाम - मेघ० 24 / त्रिवेणी' शब्द की भी 4. दो या अधिक नदियों का बन् (पुं०) [वेत्र+इनि ] 1. द्वारपाल, दरबान संगम 5. गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम 6. एक 2.चोबदार। नदी का नाम / सम० -पत्यः गुथे हुए बाल, मीढी देय (म्वा आवेयन्ते) प्रार्थना, निवेदन करना, कहना। -रघु० १०॥४७,वेषनी जोक, वेषिनी कंघी, देवः विद+घञ, अच वा ] 1. ज्ञान 2. आध्यात्मिक -संहार: 1. बालों को गंथ कर मीढी बनाना वेणी. या धार्मिक ज्ञान, हिन्दुओं के धर्मग्रन्थ (मलरूप से 6 2. भट्टनारायणकृत एक नाटक का नाम / केवल तीन वेद थे, ऋग्वेद, यजुर्वेद, और सामवेद जिन्हें पेणुः [वेण +उण् ] 1. बाँस, - मलयेऽपि स्थितो वेणुर्वेणुरेव समष्टिरूप से 'त्रयी' कहते थे, परन्त बाद में 'अथर्ववेद' न चन्दनम् सुभा०, रघु० 12141 2. नरकुल उनके साथ जोड़ दिया गया। प्रत्येक वेद के दो 3. बंसरी, मुरली-नामसमेतं कृतसंकेतं वादयते मद् भाग है-मन्त्र या संहिता पाठ तथा ब्राह्मण भाग / वेणुम् - गीत० 5 / सम० जः बाँस का बीज, हिन्दुओं की निरी धर्मनिष्ठता के अनुसार बेद --ध्मः बांसुरी बजाने वाला, मुरलीवाला, नियुतिः अपौरुषेय (जो पुरुषों द्वारा की गई रचना न हो) ईख,--पष्टिः बाँस की लकड़ी,---वावः, ....वादक: है, क्योंकि वह परमात्मा से प्रकट हुए या सुने गये हैं, मुरली वाला, बांसुरी बजाने वाला, बीजम् बाँस का इसीलिए उन्हें 'श्रुति' कहते हैं, इसके विपरीत 'स्मति' बीज। अर्थात् जो याद रक्खे जायं या जो पुरुषों की कृति हो; बेणुकम् [ वेणु+कन् ] बॉस की मूठ वाला अंकुश। दे० 'धुति' तथा 'स्मृति' भी, इसीलिए बहुत से ऋषि वेणुनम् | वेण+उनन् ] काली मिर्च / / जिनका नाम वेद के सूक्तों से संबद्ध है 'द्रष्टारर देखने ): (पुं०) हाथी भामि० 1162 / वाले कहलाते हैं, उन्हें 'कर्तारः' या 'स्रष्टारः' अर्थात् बेतनम् [अ+तनन् वीभावः] 1. किराया, मजदूरी, रचयिता नहीं कहा जाता) 3. कुशा घास का गुच्छा भृति, तनख्वाह, वृत्ति-रघु. 17/66 2. आजीविका, ----- मनु०४१३६, 4. विष्णु का नाम / सम-अगम् जीवननिर्वाह का साधन / सम-अबानम-अनपाकर्मन् 'वेद का अंग' एक प्रकार के ग्रन्थ जो मंत्रोच्चारण, (नपुं०),-अनपक्रिया 1, पारिश्रमिक या मजदूरी न व्याख्या और संस्कारों में यत्र-तत्र सही विनियोग में देना 2. मजदूरी न मिलने के कारण किया गया सहायता देने के लिए प्रयुक्त होते हैं अत: वेदाध्ययन प्रयत्न, बीविन् (पुं०) वृत्ति पाने वाला, वैतनिक / में सहायक है, (वेदांग गिनती में छः हैं 1. शिक्षा, बेतसः अज्+असुन तुक च, वीभावः] 1. नरसल, नरकुल, अर्थात उच्चारण-विज्ञान 2. छंदस -छन्दः शास्त्र, बेत-अविलम्बितमेषि वेतसस्तरुवन्माधव मा स्म 3. व्याकरण 4. निरुक्त अर्थात् वेद के कठिन शब्दों भग्यथाः-शि०.१६॥५३, रघु० 975 2. नींबू, की निर्वचनपरक व्याख्या 5. ज्योतिष अर्थात नक्षत्रविजीरा। विद्या या गणितज्योतिष और 6. कल्प अर्थात् कर्मबेतली [वतस् + ] नरसल,-चेतसीतल्तले-काव्य. 1 / / काण्ड या अनुष्ठानपति),-मधिगमः, --मभ्ययनम् For Private and Personal Use Only