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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 827 ) बिशेषताओं का आख्यान, विवरण मलक या सूक्ष्म / प्रीत्या मैथिलेयौ यथाविधि-१५।३१, ३।७०,-विभकथन, (अव्य० - थम्) 1. यथार्थतः, सूक्ष्मतया 2. सही वम् (अव्य०) अपनी आय के अनुपात से, अपने तौर पर, उचित रूप से, जैसा कि वस्तुतः बात हो, सावनों के अनुरूप,-वृत्त (दि०) जैसा कि हो ---विक,-दिशम् (अव्य०) सब दिशाओं में,-निविष्ट चुका है, किया गया है, (-सम) वास्तविक तथ्य, (वि०) जैसा कि पहले उल्लेख हो चुका है, जैसा किसी घटना की परिस्थितियाँ या विवरण,-शक्ति, कि ऊपर विशेषता बता दी गई है-यथानिर्दिष्ट- - शक्त्या (अव्य०) अपनी अधिकतम शक्ति के व्यापारा सखी..आदि,-न्यायम् (अव्य०) न्यायतः, अनुसार, जहाँ तक संभव हो,--शास्त्रम् (अव्य०) सही रूप से, उचित रीति से--मनु० 111, पुरम् धर्मशास्त्रों के अनुसार जैसा कि धर्मशास्त्रों में (अव्य०) जैसा कि पहले था, जैसा कि पूर्व अवसरों विहित है मनु० 6 / 88,-- श्रुतम् ( अव्य० ) पर था,-पूर्व (वि०), पूर्वक (वि.) जैसा कि 1. जैसा कि सुना है, या बताया गया है पहले था, पूर्ववर्ती-रधु० 12348, (-र्वम्)-पूर्वकम् 2. (यथाश्रुति) वैदिक विधि के अनुसार, संख्यम् (अव्य०) 1. जैसा कि पहले था--मनु० 11 / 187 अलंकार शास्त्र में एक अलंकार यथासंख्यं क्रमेणव 2. क्रम या परंपरा में, क्रमश:----एते मान्या यथापूर्वम् ऋमिकाणां समन्वयः----काव्य. 10.... उदा० शत्रु मित्रं - याज्ञ. ११३५,--प्रदेशम् (अव्य०) 1. उचित या विपत्ति च जय रञ्जय भञ्जय चन्द्रा० 5 / 107, उपयुक्त स्थान में यथाप्रदेशं विनिवेशितेन--कु० (-स्यम्), संख्येन (अव्य०) संख्या के अनुसार, 1 / 49, आसञ्जयामास यथाप्रदेशं कंठे गुणम् --रघु० क्रमशः, संख्या के संख्या- याज्ञ० ११२१,-समयम् 6 / 83, 7 / 34 2. विधि या निदेश के अनुसार, (अव्य०) 1. उचित समय पर करार के अनुसार, ....प्रधानम, ... प्रधानतः (अव्य) पद या स्थिति के सर्वसम्मत प्रचलन के अनुसार, संभव (वि०) शक्य, अनुकूल, पूर्ववर्तिता के अनुसार ---आलोकमात्रेण सुरा- जो हो सके, सुखम् (अव्य०) 1. मन या इच्छा के नशेषान् संभावधामास यथाप्रधानम् --कु० 7146, अनुसार 2. आराम से, सुखपूर्वक, इच्छानुकूल, जिससे .-प्राणम् (अव्य०) सामर्थ्य के अनुसार, अपनी पूरी सुख हो, अङ्के निधाय करभोरु यथासुखं ते संवाहयामि शक्ति से,—प्राप्त (पि०) परिस्थितियों के अनुरूप, चरणावुत पद्मताम्रो-श० 322, रघु० 8 / 48, .-प्राथितम् (अव्य०) प्रार्थना के अनकल,--बलम् 4 / 43, स्थानं सही और उचित स्थान, (अव्य. (अव्य०) अपनी अधिकतम शक्ति के साथ, अपनी -नम्) उचित स्थान पर, ठीक-ठीक, - स्थित (वि०) शक्ति से,–भागम्, -भागशः (अव्य०) 1. प्रत्येक 1. वास्तविक तथ्य या परिस्थितियों के अनु कल, जैसी के भाग के अनुसार, ठीक अनपात से 2. प्रत्येक अपने कि स्थिति हो भट्रि० 88 2. सचमच, उचित रूप ऋमिक स्थान पर-यथाभागमवस्थिता: भग० 1111 से,—स्वम् (अव्य०) 1. अपने अपने क्रम से, क्रमशः 3. ठीक स्थान पर - यथाभागमवस्थितेपि - रघु० .... अध्यासते चीरभृतो यथास्वम् .. रघु० 13 / 22, ६।१९,-भूतम् (अध०) जो कुछ हो चुका उसके कि० 14 / 43 2. वैयक्तिक रूप से रघु० 1765, अनुसार, सचाई के अनुसार, सत्यतः, यथार्थतः,-मुखीन 3. ठीक ठीक, यथोचित, सही रूप से। (वि.) ठीक सामने देखने वाला (संब० के साथ) | यथावत् (अव्य.) [यथा-|-वति 1. ठीक ठीक, ज्यों का - (मृगः) यथामुखीनः सीया: पुप्लुवे बहु लोभयन् त्यों, यथोचित, सही रूप से; प्रायः विशेषण के बल भट्टि० ५।४८,--यथम् (अव्य०) 1. यथा योग्य, के साथ अध्यापिपद् गाविसुतो यथावत्-भट्टि० जैसा कि योग्य है. यथोचित कि० 82 2. नियमित 2 / 21, लिपेर्यथावग्रहणेन– रघु० 3 / 28 2. विधि क्रम में, पृथक पृथक् एक एक करके ...बीजबन्तो या नियम के अनुसार, जैसा कि नियमों द्वारा विहित मुखाद्यर्था विप्राणां यथायथम् सा० द. 337 / है,-ततो यथावद् विहिताध्यराय---- रघु० 5 / 19, मनु० युक्तम्, -योगम् (अब०) परिस्थितियों के अनु- 6 / 1, 8 / 214 / कूल, यथायोग्य, उपयुक्त रूप से, योग्य (वि०) यद् (सर्व० वि०) यज्+अदि, डित् ] (कर्त०, ए० व०, उपयुक्त, योग्य, उचित, सही,---रुचम, - रुचि (अन्य) पुं० यः, स्त्री० या, नपुं० यत् - द्) संबंधबोधक अपनी पसन्द या रुचि के अनुकूल, ... रूपम (अव्य०) सर्वनाम जो जौन सा, जो कुछ (क) इसका उपयुक्त 1. रूप या दर्शन के अनुसार 2. ठीक-ठीक, यथोचित, सहसंबंधी 'तद' है,—यस्य बुद्धिर्बलं तस्य, परन्तु कभीयथायोग्य, वस्तु (अव्य०) जैसे कि तथ्य है, कभी 'तद्' के स्थान पर इदम्, अदस् या एतद् को भी यथार्थतः, विशुद्ध रूप से, सचमच, - विधि (अव्य०) प्रयुक्त किया जाता है, कभी कभी 'यद' शब्द अकेला नियम या विधि के अनुसार, ठीक-ठीक, यथोचित ही प्रयुक्त होता है, तथा उसके सहसबंधी सर्वनाम का ----यथाविधिहुताग्नीनाम्- रघु० 116, संचस्कारोभय- / ज्ञान प्रकरण से ही कर लिया जाता है, दोनों संबंध For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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