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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३५७ ) 4. लिखना, रचना करना- अध्नामि काव्यशशिनं । प्रस् । (भ्वा० आ.--ग्रसते, ग्रस्त) 1. निगलना, भसकना, विततार्थरश्मिम्-काव्य० १० 5. बनाना, निर्माण खा जाना, समाप्त कर देना-स इमां पृथिवीं कृत्स्नां करना, पैदा करना- ग्रन बाष्पबिन्दूनिकरं पक्ष्म- संक्षिप्य ग्रसते पुनः--महा०, भग० ११०३० 2. पकपङक्तयः-का० मट्टि. १७१६९, उद्-', बांधना, डना 3. ग्रहण लगना-द्वावेद असते दिनेश्वरनिशानत्थी करना, मुद्रा० ११४ अन्तर्जटित करना-- लता- प्राणेश्वरौ भास्वरो- भर्त० २।३४, हिमांशुमाशु असते प्रतानोद्ग्रथितैः स केदाः-रघु० २१८ 2. खोलना, तन्म्रदिम्नः स्फुटं फलम्-शि० २१४९ 4. शब्दों को ढीला करना। मिला-जुला कर अस्पष्ट लिखना 5. नष्ट करना, अन्यः [ग्रन्थ --घा] 1. बांधना, गूंथना (आलं० से भी) सम्-- नष्ट करना भट्रि० १२१४; i (म्वा० पर०, 2. कृति, प्रबन्ध, रचना, साहित्यिक कृति, पुस्तक चुरा० उभ०---ग्रसति, ग्रासयति-ते) खाना निगलना। --ग्रन्यारम्भे, ग्रन्थकृत, ग्रन्थसमाप्ति आदि 3. दौलत, | असनम् [ग्रस् -ल्युट ] 1. निगलना, खा लेना 2. पकड़ना सम्पत्ति 4. ३२ मात्राओं का श्लोक, अनुष्टुप् छंद । सूर्य या चन्द्रमा का खण्डग्रास । सम०--कारः,---कृत् (पुं०) लेखक, रचयिता---ग्रन्था- ग्रस्त (भ० क० कृ०) [ग्रस्+क्त 1. खाया हुआ, निगला रंभे सम चितेष्टदेवतां ग्रन्थकृत्परामगति--काव्य० १, हुआ 2. पकड़ा हुआ पीड़ित, ग्रस्त, अधिकृत, ग्रह, --कुटी,-कटी 1. पुस्तकालय 2. कलामन्दिर, विपद् आदि 3. ग्रहण-ग्रस्त,--स्तम् अर्घोच्चारित शब्द ---विस्तरः,-विस्तारः ग्रन्थ का कई भागों में विभा या वाक्य । सम०--अस्तम् ग्रहणग्रस्त सूर्य या चन्द्रमा जन, विस्तारमयी शैली,--सन्धिः किसी पुस्तक का का अस्त होना, उदयः ग्रहण-ग्रस्त सूर्य या चन्द्रमा अनुभाग या अध्याय (संस्कृत में 'अनुभाग' आदि के | का उगना। पर्याय 'अध्याय' शब्द के अन्तर्गत देखें)। ग्रह (श्या० उभ० (वेद में 'ग्रभ')-गणाति, गृहीत; प्रन्यनम्-ना [ग्रन्थ् + ल्युट] दे० 'ग्रथन' । प्रे० ग्राहयति, सन्नन्त-जिघक्षति) 1. पकड़ना, लेना, ग्रहण ग्रन्थिः [ग्रन्थ-। इन्] 1. गांठ, गच्छा, उभार स्तनौ मांस- करना, पकड़ लेना, थामना, लपक लेना, कस कर ग्रन्थी कनककलशावित्युपमितौ---भर्त० ३।२०, इसी पकड़ना-तयोर्जगृहतुः पादान् राजा राज्ञी च माधवी प्रकार 'मेदाग्रन्थिः' 2. रस्सी का बंधन या गाँट, वस्त्र ---रघु० ११५७... आलाने गृह्यते हस्ती वाजी वल्गासु की गांठ-इदमुपहितसूक्ष्मग्रंन्थिना स्कन्धदेशे श०१।१८, गृह्यते. मृच्छ० ११५०, तं कण्ठे जग्राह-का० ३६३ मच्छ० १११, मनु० २।४३, भर्त० ११५७ 3. रुपया- पाणि गृहीत्वा, चरणं गृहीत्वा 2. प्राप्त करना, लेना, पैसा रखने के लिए कपड़े के अंचल में गाँठ, अतएव स्वीकार करना, बलपूर्वक वसूल करना-प्रजानामेव बटुवा, धन, सम्पत्ति कुसोदाहारिद्रचं परकरगतग्रन्थि- भत्यर्थ स ताभ्यो वलिमग्रहीत्--रघु० १११८, मनु० शमनात--पंच० १११ 4. नरकुल की गाँठ, गन्ने ७।१२४, ९।१६२ 3. हिरासत में लेना गिरफ्तार आदि की पोरों की गांठ या जोड़ 5. शरीर के अवयवों करना बन्दी बनाना-- बन्दिग्राहं गहोत्वा. विक्रम का जोड़ 6. टेढ़ापन, तोड़ना-मरोड़ना, मिथ्यात्व, सचाई १, यांस्तत्र चारान् गृह्णीयात्--मनु०८।३४ 4. गिरमें उलट फेर 7. शरीर की वाहिकाओं में सूजन, फ़्तार करना, रोकना, पकड़ना- भग० ६।३५ 5. मोह कठोरता । सम०--छेदकः,-भेदः --मोचकः गिरहकट लेना, आकृष्ट करना—महाराजगृहीतहृदयया मया जेबकतरा-अङ्गलीग्रन्थिभेदस्य छेदयेत् प्रथमे ग्रहे --विक्रम० ४, हृदये गृह्यते नारी-- मच्छ० ११५०, - मनु० ९।२७७, याज्ञ० २।२७४,-- पर्णः, पर्णम् माधुर्यमीष्टे हरिणान् ग्रहीतुम्- रघु० १८१३ 1. एक मुगन्धयुक्त वृक्ष-विक्रमांक० १११७ 2. एक ! 6. जीत लेना उकसाना, अपनी ओर करने के लिए फुसप्रकार का सुगन्ध द्रव्य,-- बन्धनम् 1. विवाह के अवसर लाना -लुब्धमर्थन गृहणीयात्- - चाण. ३३ 7. प्रसन्न पर दूल्हे और दुलहिन का गठजोड़ा करना 2. वन्धन, करना, सन्तुष्ट करना, तृप्त करना, अनुकूल करना - हरः मन्त्री। -~-ग्रहीतुमार्यान् परिचर्यया महर्महानुभावा हि निताप्रन्धिकः अधिक क|1. ज्योतिपी, दैवज्ञ 2. राजा । न्तमथिन:-शि० ११७, ३३ 8. ग्रस्त करना, पकड़ना, विराट के यहाँ अज्ञातवास के अवसर पर नकुल का । चिपटना (भूत प्रेतादिक का) जैसे कि 'पिशाचगृहीत' नाम । या 'वेतालगृहीत' में 9. धारण करना, लेना--द्युतिमप्रन्थित-दे० प्रथित । ग्रहीत् ग्रहगण:---शि० ९।२३, भट्टि० १९।२९ प्रन्थिन् (पुं०) [ग्रन्थ+ इनि] 1. जो बहन सी पुस्तकें पढ़ता 10. सीखना, जानना, पहचानना, समझना--कि० हो, किताबो... अज्ञेभ्यो ग्रन्थिनः श्रेष्ठाः ग्रन्थिभ्यो १०८ 11. ध्यान देना, विचार करना, विश्वास धारिणो वरा:-मन० १२।१०३ 2. विद्वान, पण्डित । करना, मान लेना-- -मयापि मत्पिण्डबुद्धिना तथव गही प्रन्थिल (वि.) [ग्रन्थिविद्यतेऽस्य-लच] गांठवाला, जटिल। तम्-श० ६, परिहासविजल्पितं सखे परमार्थेन न मृच्छ० कसाना, महातुम For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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