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लौकिकः, -तौलिकिक: [ तुलि + ठक्, चित्रकार ।
( ४३८ )
तोवलम् [ तोष+लू + ड] मूसल, सोटा । तौकिक: (ग्रीक शब्द ) तुला राशि । तौतिकः ( पुं० ) वह सीपी जिसमें से मोती निकलती है, -कम् मोती ।
सौर्यम् [ सूर्य + अण् ] तुरही का शब्द । सम० - त्रिकम् नृत्य, गान और वाद्य की समेकता, तेहरी स्वरसंगति - तौयंत्रिकं वृथाट्या च कामजो दशको गणः मनु० ७१४७, उत्तर० ४ |
तौलम् [ तुला + अण् ] तराजू ।
तुलिका + ठक् ]
स्वपत ( भू० क० कृ० ) [ त्यज् + क्त ] 1. छोड़ा हुआ, त्यागा हुआ, परित्यक्त, उन्मुक्त 2. उत्सृष्ट, जिसने आत्मसमर्पण कर दिया है 3. कतराया हुआ, टाला हुआ - दे० त्यज् । सम० अग्निः वह ब्राह्मण जिसने अग्निहोत्र करना छोड़ दिया है, -जीवित प्राण (वि०) प्राण देने के लिए तैयार, कोई भी जोखिम उठाने को तैयार — मदर्थे त्यक्तजीविताः -- भग० ११९, – लज्ज (वि० ) निर्लज्ज, बेशर्म
त्यज् (भ्वा० पर० त्यजति त्यक्त ) 1. छोड़ना ( सब अर्थो में) त्यागना, उत्सर्ग करना, चले जाना - भानोस्त्यजाशु - मेघ० ३९, मनु० ६/७७, ९।१७७, स० ५।२६ 2. जाने देना, बरखास्त करना, सेवामुक्त करना, मट्टि० ६।१२२ 3. छोड़ देना, त्यागना, उत्सर्ग करना, आत्मसमर्पण करना - भर्तृ० ३।१६, मनु० २/९५, ६।३३, भग० ६।२४, १६।२१ 4. कतराना, टालना 5. छुटकारा पाना, मुक्त करना - भग० १३ 6. अवहेलना करना, उपेक्षा करना त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च भगं० १।३३ 7. उद्धृत करना 8. वितरण करना, प्रदान कर देना, कृतं (संचयं) आश्वयुजे त्यजेत् - - याज्ञ० ३।४७, मनु० ६।१५, प्रेर० छुड़वाना, इच्छा० - तित्यक्षति छोड़ने की इच्छा करना, परि- 1. छोड़ना, उत्सर्ग करना, त्याग करना 2. पद त्याग करना, छोड़ देना, रद्द कर देना, तिलाञ्जलि देना --- प्रारब्धमुत्तमगुणा न परित्यजन्ति मुद्रा० २।१७ 3. उद्धृत करना- तृणमप्यपरित्यज्य · सतृणम्, सम्-- 1. त्यागना, जायामदोषामुत सन्त्यजामि - रघु० १४।३४ 2. टालना, कतराना - भर्तृ० १1८१ 3. छोड़ देना, तिलांजलि देना -- मनु० ४)१८१ 4. उद्धृत करना - उदा० - संत्यज्य विक्रमादित्यं धैर्यमन्यत्र दुर्लभम् - राजत० ३।३४३ । स्यागः [ त्यज् + ञ ] 1, छोड़ना, परित्याग, छोड़ देना, छोड़ कर चले जाना, वियोग न माता न पिता न स्त्री न पुत्रस्त्यागमर्हति मनु० ८ ३१९, ९१७८ 2. छोड़ देना, पदत्याग कर देना, तिलांजलि देना
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- मनु० १।११२, भग० १२।४१ ३. उपहार, दान, धर्मार्थ दान करे श्लाघ्यस्त्यागः - भर्तृ० २२६५, हि० १।१५४, त्यागाय सम्भृतार्थानाम् - रघु० १।१७ 4. मुक्तहस्तता, उदारता- रघु० १।२२ 5. स्राव, मलोत्सगं । सम० युत, - शील (वि०) मुक्त हस्त, उदार, दानशील।
स्यागिन् (वि० ) [ त्यज् + घिनुण् ] 1. छोड़ने वाला, परित्याग करने वाला, छोड़ देने वाला 2. प्रदाता, दाता 3. शौर्यशाली, शूरवीर 4. वह जो धार्मिक अनुष्ठानों के फलस्वरूप किसी पारितोषिक या पुरस्कार की अपेक्षा नहीं करता है - यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते भग० १७।११ ।
त्रप् ( स्वा० आ० - त्रपते, त्रपित) शर्माना, लजाना,
झंझट में फँस जाना - पन्ते तीर्थानि त्वरितमिह यस्योद्धृतिविधौ गङ्गा० २८, अप, मुड़ना, शर्म के कारण कार्यनिवृत्त होना --तस्माद्बलैरपत्रेपे - भट्टि० १४१८४, येनापत्र पते साधुरसाधुस्तेन तुष्यति महा० । त्रपा [ त्रप् + अङ्+टाप् ] 1. शर्म, लाज- मन्दत्रपाभर
-गीत० १२ 2. हया, शर्म (अच्छे और बुरे अर्थ में) 3. कामुक या व्यभिचारिणी स्त्री 4 प्रसिद्धि, ख्याति । सम० ---- निरस्त, -हीन (वि०) निर्लज्ज, बेशर्म - रण्डा वेश्या ।
त्रपिष्ठ (वि० ) [ अयम् एषाम् अतिशयेन तृप्रः - तृप्र +
इष्ठन्, तृप्रशब्दस्य त्रपादेशः ] अत्यन्त सन्तुष्ट । त्रपीयस् ( वि० ) ( स्त्री० -सी ) तृप्र + ईयसुन्, तृप्र
शब्दस्य पादेश: ] अपेक्षाकृत अधिक सन्तुष्ट | (पुं० ) [ अग्नि दृष्ट्वा त्रपते लज्जते इव त्रप् + उन् तारा० ] टीन, रांगा-यदि मणिस्त्रपुणि प्रतिबध्यतेपंच १।७५ । त्रपुलम्, षम्, त्रपु ( नपुं०), सम् [ त्रप् + उल, त्रप् + उष, त्रप् + उस्, प् + उस ] टीन, रांगा। अप्स्यम् (नपुं०) मट्ठा, घोला हुआ दही । त्रय (वि०) (स्त्री-पी) [त्रि + अयच् ] तेहरा, तिगुना, तीन भागों में विभक्त, तीन प्रकार का त्रयी वै विद्या ऋचो यजूंषि सामानि शत०, मनु० ११२३, पम् तिगड्डा, तीन का समूह - अदेयमासीत् त्रयमेव भूपतेः शशिप्रभं छत्रमुभे च चामरे - रघु० ३।१६, लोकत्रयम्भग० १११२०, ४३, मनु० २७६ ॥ त्रयस् ( 'त्रिशब्द' पुं०, कर्तृ० ब० व०, समास में प्रयोग,
अथवा संख्यावाचक शब्दों के साथ ) तीन । सम० -- चत्वारिंश (वि०) तैंतालीसवाँ, चत्वारिंशत ( वि० या स्त्री०) तैंतालीस, त्रिंश (वि०) तैंतीसवाँ -- त्रिशत् ( वि० या स्त्री० ) तैंतीस दश ( वि० ) 1. तेरहवाँ 2. तेरह जोड़ कर - त्रयोदशं शतम्' एक सौ तेरह, - बशन् ( वि०, ब० व०) तेरह - बशन ( वि० )
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