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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1049 ) गोपनीयता 2. उच्चारण का एक प्रकार। सम० / ...-भग०६।३९ 2. शंका, शक 3. संदेह, या अनिर्णय --आकार (वि.) जो अपनी आन्तरिक भावनाओं (न्या० में) न्यायदर्शन में वर्णित सोलह भेदों में से एक को बाहर प्रकट नहीं होने देता है, जो अपने मन के -एक धर्मिकविरुद्धभावाभवप्रकारकं ज्ञानं संशयः 4. डर, विचारों का अता-पता नहीं देता,:-मन्त्र (वि०) जो खतरा, जोखिम-न संशयमनारुह्य नरो. भद्राणि अपनी योजनाओं को गुप्त रखता है-रघु० 1220 / पश्यति-हि. 17, याता पुनः संशयमन्यथैव-मा० संवृतिः (स्त्री.) [सम्+वृ+क्तिन्] 1. आवरण, आच्छा- 10113, कि०. 13316, वेणी० 61 5. संभावना / दन 2. छिपाव, दबाना, गुप्त रखना कि० 10144 सम-आत्मन् (वि०) संदेह करने वाला, शंकाशील, 3. गुप्त प्रयोजन, अभिसंधि / ..... आपन्न,-उपेत,---स्थ (वि०) संदेहपूर्ण, अनिसंवृत्त (भू० क. कृ.) [सम्+वृत्+क्त ] 1. हुआ, घटा, श्चित, अस्थिर,--गत (वि.) खतरे में पड़ा हुआ घटित हुआ 2. भरा गया, सम्पन्न 3. संचितं, एकस्थान -श०६, -छेवः संदेह का निवारण, निर्णय, पर राशीकृत 4. बीता हुआ, गया हुआ 5. ढका हुआ -- छेविन् (वि०) सभी संदेहों को मिटाने वाला, 6. सुसज्जित,-तः वरुण का नाम / निर्णयात्मक-श० 3 / / संवृत्तिः (स्त्री.) [सम्+वृत्+क्तिन् ] 1. होना, घटना संशयान, संशयाल (वि०) [सम् +शी+शानच्, संशय घटित होना 2. निष्पन्नता 3. आवरण / +आलुच् ] सन्देहपूर्ण, अस्थिर, अनिश्चित, संवृद्धि (मू० क० कृ.) [सम् + वृष्+क्त ] 1. पूर्ण चंचल / विकसित, बढ़ा हुमा, पूर्ण वृद्धि को प्राप्त 2. ऊँचा या संशरणम् [ सम् + +ल्युट् ] युद्ध का आरम्भ, आक्रलंबा, बढ़ा हुआ, बड़ा विशाल 3. समृद्धिशाली, खिलता मण, पढ़ाई, पावा। हुआ, फलता फूलता हुआ। संशित (भू० क. कृ.) [ सम् +शो+क्त ] 1. तेज संवेगः [ सम् +-विज्+घ ] 1. विक्षोभ, हड़बड़ी, उत्ते- किया हुआ, प्रोत्तेजित किया हुआ 2. तेज, तीक्ष्ण जना महावीर० 1239 2. प्रचंड गति, शीघ्रगामिता, 3. सर्वथा पूरा किया हुआ, क्रियान्वित, निष्पन्न प्रचंडता-उत्तर० 2 / 24, मा० 5 / 6 3. जल्दी, 4.निर्णीत, सुनिश्चित, निर्धारित, निश्चित / सम०, चाल 4. तड़पाने वाली पीड़ा, वेदना, तीक्ष्णता / --आत्मन् (वि०) जिसका मन सर्वथा परिपक्व या , संवेषः [सम्+-विद्+घा ] प्रत्यक्षशान, जानकारी, अनुशिष्ट है, -व्रत (वि०) जिसने अपनी प्रतिमा चेतना, भावना। पूरी कर ली है। संवेदनम्, - मा [सम् +विद् + ल्युट् ] 1. प्रत्यक्षज्ञान, | संशुद्ध (भू० क० कृ०) [ सम् +शुष्+क्त ] 1. पूरी जानकारी 2. तीव्र अनुभूति, भावना, अनुभूति, तरह शुद्ध किया हुआ, पवित्र .. पालिश किया हुआ, भोगना ...दुःखसंवेदनायव रामे चैतन्यमर्पितम्-उत्तर० __संस्कृत 3. प्रायश्चित्त के द्वारा विशुद्ध किया हुआ। ' 1147 3. देना, आत्मसमर्पण करना--मुद्रा० संशुद्धिः (स्त्री०) [सम्+शुध+क्तिन् ] 1. नितान्त 1 / 23 / पवित्रीकरण, भग० 15.1 2. स्वच्छ करना, विमल संवेशः [ सम् + विश्+घन ] 1. निद्रा, विश्राम - रघु० करना 3. संशोधन, समाधान, परिशोबन 4. स्वच्छता, 1193 2. स्वप्न 3. आसन (कुर्सी आदि) सफाई 5. (ऋण का) भुगतान / / संभोग या रतिबंध विशेष / / संशोधनम् [ सम्+शुध् + ल्युट् ] पवित्रीकरण, स्वच्छता संवेशनम् [ सम्+विश्ल्यू ट ] मैथुन, संभोग। आदि / संव्यानम् [ सम् +व्ये + ल्युट् ] 1. आवरण, परिवेष्टन संश्चत् (नपुं०) [ सम् + श्चु+इति ] दाव-पेंच, जादू 2. वस्त्र, कपड़ा, परिधान 3. उत्तरीय वस्त्र शि० गरी, इन्द्रजाल, मरीचिका-पुं० जादूगर / / 18 / 69 / / संश्यान (भू.क. कृ०) [ सम्+श्य+क्त ] 1. संकुसंशप्तकः [ सम्यक् सप्तमङ्गीकारो यस्य कप् ] वह योद्धा चित, सिकुड़ा हुआ 2. जमा हुआ, ठिठुरा हुआ जिसने युद्ध से न भागने की शपथ खायी हो और जो 3. लपेटा हआ 4. अवसन्त / दूसरे योद्धाओं को भागने से रोकने के लिए रक्खा | संश्रयः [ सम्+श्रि+अच् ] विश्रामस्थल, आवास स्थान, गया हो 2. छंटा हुआ योद्धा 3. सहयोगी योद्धा 4. वह निवासस्थान, वासस्थान-परस्पर विरोधिन्योरेकसंश्रयषड्यन्त्रकारी जिसने किसी को मार डालने का बीड़ा दुर्लभम् --विक्रम० 5 / 24, रघु० 6 / 41,' इस अर्थ में उठाया हो। प्रायः समास के अन्त में, 'साथ रहने वाला' 'संबद्ध या संशयः [ सम्+शी+अच् ] 1. संदेह, अनिश्चिति, चप- विषयक' 'निर्देशानुसार'-ज्ञातिकुलकसश्रयाम्-२० लता, संकोच, मनस्तु मे संशयमेव गाहते-कु० 5 / / 5 / 17, नौसंश्रयः-- रघु० 16157,, मनोरथोऽस्याः 46, त्वदन्यः संशयस्यास्य छेत्ता न हि उपपद्यते / शशिमौलिसंश्रयः---कु० 5 / 60, द्विसंश्रयां प्रीतिमवाप 132 For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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