________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -रघु० 1188, विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्न- विद्वाण (वि.) [वि+द्रा+क्त नींद से जागा हुआ, गुप्तं धनम् -भर्तृ० 120, (कुछ विद्वानों के मता- | उवुद्ध / नुसार विद्या चार हैं-आन्वीक्षिकी त्रयी वार्ता | विद्रावणम् [वि++णि ल्यट] 1. भगाना, खदेड़ना, दंडनीतिश्च शाश्वती-काम०, कि० 26, इन चारों हाँक कर दूर करना, परास्त करना 2. गलाना, में मनु० 7.43 पांचवीं विद्या-आत्मविद्या को पिधालना। और जोड़ देता है। परन्तु विद्या साधारणतः चौदह विद्रुमः [विशिष्टो द्रुमः] 1.मूंगे का वृक्ष (लाल रंग के मूल्यमानी जाती है अर्थात् चार वेद, छः वेदांग, धर्म, वान मूंगों (मणियों) को पैदा करने वाला) 2. मूंगा मीमांसा, तर्क या न्याय, और पुराण-दे० चतुर प्रवाल- तवाधरस्पधिषु विद्रुमेषु -रघु० 13313, के नीचे चतुर्दश विद्या, तथा नै० 114) 2. यथार्थ कु. 1144 3. कोंपल या किसलय। सम०-लता ज्ञान, अध्यात्म ज्ञान-उत्तर. 6 / 6, तु० अविद्या 1. मुंगे की शाखा 2. एक प्रकार का गंधद्रव्य, लतिका 3. जादू, मन्त्र 4. दुर्गादेवी 5. ऐन्द्रजालिक कुशलता। 'नलिका' नामक एक गंध द्रव्य / सम०-अनुपालिन्-अनुसेविन् (वि.) ज्ञानोपाजन करन विद्वस् (वि०) [विद+क्वसू] (कर्त०, ए० व०,० वाला, आगमः,-अर्जसम्,-अभ्यासः, ज्ञान प्राप्त करना, विद्वान् ; स्त्री० विदुषी, नपुं० विद्वत्) 1. जानने शिक्षा ग्रहण करना, अध्ययन, ----अर्थः ज्ञान की खोज, वाला (कर्म के साथ)-आनन्दं ब्रह्मणों विद्वान् -अथिन् (वि.) छात्र, विद्याव्यसनी, शिष्य, आलयः न बिभेति कदाचन; तव विद्वानपि तापकारणम्-रघु० विद्यालय, महाविद्यालय, विद्यामन्दिर, --- उपार्जनम् 8176, कि० 11130 2. बुद्धिमान्, विद्वान् (पुं०) -विद्यार्जनम,-करः विद्वान् पुरुष,-चण,-चंचु विद्वान् मनुष्य या बुद्धिमान, व्यक्ति, विद्याव्यसनी (वि.) अपने ज्ञान एवं शिक्षा के लिए प्रसिद्ध, -देवी --कि वस्तु विद्वन् गुरवे प्रदेयम्-रघु०५।१८ / सम० सरस्वती देवी,-धनम् विद्यारूपी दौलत,-धरः (स्त्री० ...कल्प,-देशीय,-देश्य (वि.) विद्वत्कल्प, विद्वरी) एक देवयोनि विशेष, अर्घदेवता,-प्राप्तिः द्देशीय, विद्वद्देश्य) थोड़ा पढ़ा लिखा, कम विद्वान्, =विद्यार्जन,--लाभः 1. ज्ञान की प्राप्ति 2. ज्ञान के --जनः (विद्वज्जनः) विद्वान् या बुद्धिमान् पुरुष, द्वारा प्राप्त किया गया धन आदि, विहीन (वि०) मुनि। निरक्षर, अज्ञानी,-वृद्ध (वि०) ज्ञान में बढ़ा हुआ, | विद्विष (40) विद्विषः [वि+द्विष+क्विप. क वा] शत्रु, शिक्षा में प्रगतिशील,-व्यसनम, व्यवसायः ज्ञान दुश्मन-विद्विषोऽप्यनुनय- भर्तृ० 2177, रघु० 3 / 60, की खोज। याज्ञ. 1 / 162 / विद्युत् (स्त्री०) [विशेषेण द्योतते-वि+द्युत+क्विप] | विद्विण्ट (भू० क० कृ०) [वि+द्विष्+क्त घृणित, बिजली -वाताय कपिला विद्युत्-महा०, मेघ० अनीप्सित, कुत्सित। 38, 115 2. वज्र। सम० ---उन्मेषः बिजली की विद्वेषः [वि-द्विष्+घञ्] 1. शत्रुता, घृणा, कुत्सा, कौंध,-जिह्वः एक प्रकार का राक्षस,ज्वाला, द्योतः मनु० 8 / 346 2. तिरस्करणीय घमण्ड, गरे (मानबिजली की कौंध या कांति --दामन् (नपुं०) वक्र हानि)-विद्वेषोऽभिमतप्राप्तावपि गर्वादनादरः-भारत। गति से युक्त बिजली की कौंध या चमक,-पातः विद्वेषणः [वि+विष+ल्युट ] 1. घृणा करने वाला, बिजली का गिरना या प्रहार, -प्रियम् कांसा,-लता, शत्रु,---णी रोषपूर्ण स्वभाव की स्त्री,--णम् घृणा लेखा (विद्युल्लता, विद्युल्लेखा) 1. बिजली की कौंव ___ और शत्रुता पैदा करना 2. शत्रुता, घृणा। या लहर 2. वक्रगतिशील या कुटिल विजली। विद्वेषिन्, विद्वेष्ट (वि.) [ विद्विष् +णिनि, तृच् वा ] विधुत्वत् (वि०) [विद्युत् +मतुप] बिजली से युक्त घृणा करने वाला, शत्रुतापूर्ण (पुं०) घृणक, शत्रु / --मेघ० 64, (पुं०) बादल -- कु. 6 / 27 / विध (तुदा० पर० विधति) 1. चुभोना, काटना विद्योतन (वि.) स्त्री० नी) [ विद्युत्+णिच् + ल्युट्] 2. सम्मान करना, पूजा करना 3. राज्य करना, 1. प्रकाश करने वाला, चमकाने वाला 2. सोदाहरण शासन करना, प्रशासन करना। निरूपण करने वाला, व्याख्या करने वाला। विधः [ विध+क ] 1. प्रकार, किस्म यथा बहुविध, विद्रः [व्य रक्, दान्तादेशः, सम्प्रसारणम्] 1. फाड़ना, नानाविध में 2. ढंग, रीति, रूप 3. तह (समास के खण्ड खण्ड करना, छेद करना 2. दरार, छिद्र, अन्त में, विशेष कर अंकों के पश्चात) त्रिविध, अष्टविध आदि 4. हाथियों का आहार 5. समृद्धि विद्रधिः [विद्रु ध+कि, पृषो०] पीपदार फोड़ा। 6. छेद करना। विद्रवः [वि++अप्] 1. भाग जाना, उड़ान, प्रत्यावर्तन | विधवनम् | वि+धू+ल्युट ] 1. हिलाना, विक्षुब्ध करना 2. आतंक 3. प्रवाह 4. पिघलना, गलना। 2. थरथराहट, कंपकंपी। विवर। For Private and Personal Use Only