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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1063 ) सः] सहाध्यायी, साथ अध्ययन करने वाले। में प्रमुखता, लक्षणम् गर्भ के लक्षण--श० 5, ब्रह्मचारी। --विप्लवः चेतना की हानि, विहित (वि०) सतीलः [सतो--लक्ष् + ड] 1. बाँस 2. हवा, वायु 1. प्राकृतिक 2. सद्गुणी, पुण्यात्मा, खरा, * संशुद्धिः ____3. मटर, दाल (स्त्री० भी)। (स्त्री०) प्रकृति की पवित्रता या खरापन, --संपन्न सतेरः / सन् +एर, तान्तादेशः] भूसी, चोकर / (वि०) सद्गुणों से युक्त, पुण्यात्मा,--संप्लवः सत्ता [ सत् +तल+टाप् | 1. अस्तित्व, विद्यमानता, 1. बल या सामर्थ्य को हानि 2. विश्वविनाश, प्रलय, होने का भाव 2. वस्तुस्थिति, वास्तविकता 3. उच्च- -सारः 1. सामर्थ्य का सार, असाधारण साहस तम जाति या सामान्यता 4. उत्तमता, श्रेष्ठता / 2 अत्यन्त शक्तिशाली पुरुष,-स्थ (वि.) 1. अपनी सत्त्रम् [बहुधा सत्रम् -- लिखा जाता है, सद्+ष्ट्र ] प्रकृति में स्थित 2. पशुओं में अन्तहित 3. सजीव 1. यज्ञीय अवधि जो प्रायः 13 से 100 दिन तक 4. सत्त्वगण विशिष्ट, उत्तम, श्रेष्ठ / होने बाले यज्ञों में पाई जाती है 2. यज्ञमात्र 3. आहुति, | सत्त्वमेजय (वि.) [सत्व+ए+णिच् +खश्, मुम् ] चढ़ावा, उपहार 4. उदारता, वदान्यता 5. सद्गुण | पशुओं या जीवधारी प्राणियों को डराने वाला। 6. घर, निवासस्थान 7. आवरण 8. धनदौलत सत्य (वि.) [सते हितम्-सत् + यत् ] 1. सच्चा, 9. जंगल, बन-कि० 1309 10 तालाब, पोखर वास्तविक, असली, जैसा कि सत्यव्रत, सत्यसन्ध में 11. जालसाजी, ठगना 12. शरणगृह, आश्रम, आश्रय 2. ईमानदार, निष्कपट, सच्चा, निष्ठावान् 3. सद्स्थान। सम०--अयनम् (णम्) यज्ञों का चलने गुणसम्पन्न, खरा, --त्यः ब्रह्मलोक, सत्यलोक, भूमि के वाला दीर्घ कार्यकाल। ऊपर सात लोकों में सबसे ऊपर का लोक-दे. लोक सत्ता (अव्य.) [सद् ।-त्रा ] के साथ, मिल कर, सहित / 2. पीपल का पेड़ 3. राम का नाम 4. विष्णु का नाम ___ सम... हन् (पुं०) इन्द्र का विशेषण / 5. नांदीमुख श्राद्ध को अधिष्ठात्री देवता,-त्यम् सस्त्रिः [ सद् +-त्रि ] 1. बादल 2. हाथी। 1. सचाई-मौनात्सत्यं विशिष्यते--मनु० 2 / 83, सत्यं सत्रिन् (पुं०) [ सत्त्र+इनि ] जो निरन्तर यज्ञानुष्ठान / 1. सच बोलना 2. निष्कपटता 3. भद्रता, सद्गुण, करता रहता है, उदार गृहस्थ -शि० 18132 / शुचिता 4. शपथ, प्रतिज्ञा, गंभीर दृढोक्ति-सत्याद् सत्त्वम् (प्रथम दस अर्थों में पुं० भी होता है) [ सतो गुरुमलोपयन्-रघु० 12 / 9, मनु०८।११३ 5. सचाई, भावः सत्+त्व] 1. होने का भाव, अस्तित्व, प्रदर्शित सत्यता या रूढ़ि 6. चारों युगों में पहला युग, सत्ता 2. प्रकृति, मूलतत्त्व 3. स्वाभाविक चरित्र, राहज स्वर्णयुग, सत्ययुग 7. पानी,-त्यम् (अव्य०) सचस्वभाव जीवन, जीव, प्राण, जीवनी शक्ति, प्राण- मुच, वस्तुतः, निस्संदेह, निश्चय ही, वस्तुतस्तु--सत्यं शक्ति का सिद्धान्त श० 2 / 9 5. चेतना, मन, शपामि ते पादपङ्कजस्पर्शन--का०, कु०६।१९। सम० ज्ञान 6. भ्रूण 7. तत्त्वार्थ, वस्तु, सम्पत्ति 8. मलतरब, -अन्त (वि०) 1. सच और मिथ्या-सत्यानृता च जैसे कि पृथ्वो, वाय, अग्नि आदि 9. प्राणधारी जीव, परुषा-हि० 21183 2. सच प्रतीत होने वाला परन्तु जानदार, जन्तु,-वन्यान् विनेष्यन्निव दुष्टस त्वान्-रघु० मिथ्या (-तम्,-ते) 1. सचाई और झूठ 2. झूठ और 218, 15 / 15, 20217 10. भूत, प्रेत, पिशाच सच का अभ्यास अर्थात् व्यापार, वाणिज्य -मनु० 11, भद्रता, सद्गुण, श्रेष्ठता 12. सचाई, वास्तविकता, 4 / 4, 6, - अभिसन्धि (वि०) अपनी प्रतिज्ञा पूरी निश्चय 13. सामर्थ्य, ऊर्जा, साहस, बल, शक्ति, करने वाला, निष्कपट,-उत्कर्षः 1. सचाई में प्रमुखता अन्तहित शक्ति, वह तत्व जिससे पुरुष बनता है, 3. सच्ची श्रेष्ठता, उद्य (वि.) सत्यभाषी,-उपपुरुषार्थ क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति महतां नोपकरणे याचन (वि.) प्रार्थना पूरी करने वाला,---कामः सत्य -सुभा०--रघु० 5 / 31, मुद्रा० 3 / 22 14. बुद्धि का प्रेमी, तपस् एक ऋषि का नाम,-दशिन् (अव्य०) मत्ता, अच्छी समझ 15. भद्रता और शुचिता का सचाई को देखने वाला, सत्यता को भांपने वाला, सर्वोत्तम गुण, सात्त्विक, (देवों तथा स्वर्गीय प्राणियों --धन (वि.) सत्य के गुण से समृद्ध, अत्यंत सच्चा में यह बहुतायत से पाया जाता है) 16. स्वाभाविक .-धुति (वि.) परम सत्यवादी,-पुरम् विष्णुलोक, गुण या लक्षण 17. संज्ञा, नाम। सम० अनुरूप -पूत (वि.) सत्यता से पवित्र किया हुआ (जैसे (वि०) मनुष्य के सहज स्वभाव या अन्तहित चरित्र कि वचन) सत्यपूतां वदेवाणी-मनु०-६।४६,-प्रतिज्ञ के अनुसार-भत० 2130 2. अपने साधन या संपत्ति (वि.) वादे का पक्का, अपने वचन का पालन के अनुसार रघु० 7 / 32. (यहाँ मल्लि० व्याख्या करने वाला, भामा सत्राजित की पुत्री तथा कृष्ण प्रकरणानुकूल उपयुक्त प्रतीत नहीं होती),-उद्रेकः की प्रिय पत्नी का नाम, (इसी सत्यभाभा के लिए 1, भद्रता के गुण का आधिक्य 2. साहस या सामर्थ्य कृष्ण ने इन्द्र से युद्ध किया, तथा नन्दनवन से पारि For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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