________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
(
eer (अव्य० ) [ किम् + दा] कब, किस समय कदा गमिव्यसि - एष गच्छामि, कदा कथयिष्यसि आदि, अपि जोड़ने पर यह शब्द 'कभी-कभी' 'किसी समय' 'समय निकाल कर' अर्थ प्रकट करता है; न कदापि कभी नहीं, यदि 'चन' आगे जोड़ दिया जाय तो इसका अर्थ हो जाता है 'किसी समय' 'एक दिन' 'एक बार' 'एक दफा - आनन्दं ब्रह्मणो विद्वान्न बिभेति कदाचनमनु० २५४, १४४, ३२५, १०१; यदि 'चित्' आगे जोड़ दिया जाय तो इसका अर्थ हो जाता है 'एक बार' 'एक दफा' 'किसी समय अथ कदाचित् एक बार -- रघु० २।३७, १२ २१, नाक्षः क्रीडेत्कदाचित्तु मनु० ४।७४, ६५, १६९– कदाचित् कदाचित् 'अब- अब ' कभी-कभी कदाचित् काननं जगाहे कदाचित् कमलवनेषु रेमे - का० ५८, अमु० । कब्रु (वि०) (स्त्री० ब्रु या तू ) [ कद् + रु] भूरे रंग का, - दुः, -ब्रू (स्त्री०) कश्यप की पत्नी तथा नागों की माता । सम० पुत्रः, सुतः साँप |
२४४ )
कनिष्ठिका [ कनिष्ठ + कन्+टाप्] सबसे छोटी अंगुली - कनिष्ठिकाधिष्ठितकालिदासा - सुभा० । natioका, कनीनी [कनीन + कन्+टाप्, इत्वम्-कन् + ईन् + ङीष् ] 1. छोटी अंगुली - कन्नो 2. आँख की पुतली ।
कनीयस् ( वि० ) ( स्त्री ० सी ) [ अयमनयोरतिशयेन युवा अल्पो वा कनादेशः, कन् + ईयसुन्, स्त्रियां ङीप] 1. दो में से छोटा, अपेक्षाकृत कम 2. आय में छोटा - कनीयान् भ्राता, कनीयसी भगिनी आदि । कनेरा [कन्+एरन्+टाप् ] 1. वेश्या 2. हथिनी ( तु० कणेरा) ।
कनकम् [कन्+ वुन् ] सोना - कनकवलयं त्रस्तं स्रस्तं मया प्रतिसार्यते - श० ३५३, मेघ० २,३७, ६७, - कः 1. ढाक का वृक्ष 2. घतूरे का वृक्ष 3. पहाड़ी आबनूस । सम० - अंगवम् सोने का कड़ा, - अञ्चल:, - अद्रि:, -- गिरिः, -- शैल: सुमेरु पहाड़ के विशेषण, अधुना कुचो ते स्पर्धेते किल कनकाचलेन सार्धम् - भा० २९ आलुका सोने का कड़ा या फूलदान, आह्वयः धतूरे का पौधा, टः सोने की कुल्हाड़ी-दण्डम्, दण्डकम् (सोने के डंडे वाला) राजच्छत्र – पत्रम् सोने का बना कान का आभूषण -- जीवेति मंगलवचः परिहृत्य कोपात् कर्णे कृतं कनकपत्रमनालपन्त्या चौर० १०, परागः सुनहरी रज, रस: 1. हड़ताल 2. पिघला हुआ सोना,
-सूत्रम् सोने का हार, काक्या कनकसूत्रेण कृष्णसर्पों विनाशित:- पंच० १२०७ - स्थली स्वर्णभूमि, सोने की खान ।
ereas (fro ) [ naक + मयट् ] सोने का बना हुआ, सुनहरी ।
कमलम् [?] एक तीर्थस्थान (हरद्वार) का नाम तथा उसके साथ लगी पहाड़ियाँ, (तीर्थं कनखलं नाम गंङ्गाद्वारेऽस्ति पावनम् ) -- तस्माद्गच्छेरनुकनखलं शैलराजावतीर्णां जनोः कन्याम् - मेघ० ५० ।
कमन ( वि० ) [ कन् + युच्] एक आँख का तु० 'काण' । कनपति (ना० घा० पर०) कम करना, घटाना, छोटा करना, न्यून करना - कीर्ति नः कनयन्ति च - भट्टि० १८।२५ ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कनिष्ठ (वि० ) [ अतिशयेन युवा अल्पो वा - कनादेशः -कन् + इष्ठन् ] 1. सबसे छोटा, कम से कम 2. आयु में सबसे छोटा ।
कन्तुः [कन्+तु | 1. कामदेव, 2. हृदय ( विचार और भावना
का स्थान ) 3. अनाज की खती ।
कन्या [ कम् + न् + टाप् ] थेगली लगा वस्त्र, गुदड़ी, झोली (जिसे संन्यासी धारण करते हैं ) - जीर्णा कन्था ततः किम् - भर्तृ० ३०७४, १९८६, शा० ४।५, १९, । सम० -धारणम् थेगली लगे कपड़े पहनना जैसा कि कुछ योगी करते हैं, – धारिन् (पुं०) धर्म- भिक्षु, योगी । कन्दः,
वम् [कन्द् + अच्] 1. गांठदार जड़ 2. गाँठ भर्तृ ० ३।६९ ( आलं ० भी ) - ज्ञानकन्द : 3. लहसुन 4. ग्रन्थि, -द: 1. बादल 2. कपूर । सम०-- मूलम् मूली, - सारम् नन्दन - कानन, इन्द्र का उद्यान | कन्वट्टम् [कन्द् + अटन् ] श्वेत कमल- तु० कन्दोट । कम्बरः,—– रम् [कम्+दृ+अच्] गुफा, घाटी - कि कन्दा:
कन्दरेभ्यः प्रलयमुपगता:- भर्तृ० ३१६९ वसुधाधरकन्दराभिसर्पी - विक्रम ० १।१६, मेघ० ५६ - र: अंकुश, रा, -री गुफा, घाटी, खोखला स्थान । सम० -आकारः पहाड़ । कन्दर्पः | कं कुत्सितो दर्पो यस्मात् - ब० स०] 1. कामदेव
- प्रजनश्चास्मि कंदर्प :- भग० १०।२८, कन्दर्प इव रूपेण - महा० 2. प्रेम । सम० – कूपः योनि, ज्वरः काम ज्वर, आवेश, प्रबल इच्छा, वहनः शिव, -- मुषलः :- मुसल: पुरुष की जननेन्द्रिय, लिंग, श्रृंखल: 1. मेहन 2. रतिक्रिया का विशेष प्रकार, रतिबंध | कम्बलः, -लम् [कन्द् + अलच् ] 1. नया अंकुर या अँखुवा
उत्तर० ३।४० 2. झिड़की, निन्दा 3. गाल, गाल और कनपटी 4. अपशकुन 5. मधुर स्वर 6. केले का पेड़ - कन्दलदलोल्लासाः पयोबिन्दवः - अमरु ४८, - ल: 1. सोना 2. युद्ध, लड़ाई 3. ( अतः ) वाग्युद्ध, वादविवाद, - लम् कन्दल का फूल - विदलकन्दलकम्पनलालितः - शि० ६।३०, रघु० १३।२९ । कन्बली [कन्दल + ङीष् | 1. केले का पेड़ - आरक्त राजिभि
रियं कुसुमैर्नवकन्दली सलिलगर्भः कोपादन्तर्बाध्येि स्मरयति मां लोचने तस्याः । विक्रम ० ४५, मेघ० २१, ऋतु० २।५ 2. एक प्रकार का मृग 3. झंडा 4. कमलगट्टा या कमल का बीज । सम० - कुसुमम् कुकुरमुता ।
For Private and Personal Use Only