________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .. ( 1020 ) श० 1114, 7 / 14,18 3. आठ या सोलह वर्ष से कम / जाना, श्रेष्ठ होना, (अपा० के साथ) अपेक्षाकृत आयु का बालक / सम-कन्दः, क्रन्दनम् बच्चे का बढ़िया और दूसरों से अच्छा होना मनु० 2 / 83, रोना,-- गम्धा एक प्रकार की मल्लिका, पालः दम- 3 / 203, (प्रेर०) आगे बढ़ जाना श्रेष्ठ होना-मृच्छ० घोष का पुत्र तथा चेदि देश का राजा (विष्णुपुराण 4 / 4, मालवि० 3 / 5 / के अनुसार यह राजा पूर्वजन्म में राक्षसों का राजा | शिष्ट (भू० क०कृ०) [शास्+क्त, शिष+ क्त वा] 1. पापी हिरण्यकशिपु था जिसे नरसिंह का रूप धारण कर छोड़ा हुआ, बचा हुआ, अवशिष्ट, बाकी 2. आदिष्ट, विष्णु ने मार गिराया था। उसके पश्चात् इसने दस समादिष्ट 3. प्रशिक्षित, शिक्षित, अशिष्ट 4. सधाया सिर वाले रावण के रूप में जन्म लिया, और राम ने हुआ, पालतू, वश्य 5. बुद्धिमान, विद्वान् --शि० 2010 इसको मार डाला। फिर इसी ने दमघोष के घर 6. सद्गुणसंपन्न, माननीय 7. शिष्ट, नम्र 8. मुख्य, जन्म लिया - और विष्णु के अष्टम अवतार कृष्ण प्रधान, श्रेष्ठ, उत्तम, पूज्य, प्रमुख,--ष्टः प्रमुख या भगवान से और भी अधिक निष्ठरता के साथ पूज्य व्यक्ति 2. बुद्धिमान् पुरुष 3. परामर्शदाता / निरन्तर द्वेष करता रहा (दे०शि०१) जब युधिष्ठिर सम० -- आचारः 1. बुद्धिमान मनुष्यों का आचरण के राजसूय यज्ञ में यह कृष्ण से मिला तो उसे बुरा शिष्टाचरण, सच्चरित्र,-सभा विद्वान् या श्रष्ठ भला कहने लगा, कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से पुरुषों की सभा, राज्यसभा। इसका सिर काट डाला। इसकी मृत्यु ही, माघकवि के शिष्टि (स्त्री शास...क्तिन] 1 राज्य. प्रसिद्धकाव्य का विषय है), "हम, (पु०) कृष्ण का आज्ञा, आदेश 3. सजा, दण्ड / विशेषण,-मारः संस नाम का जलजन्तु,-वाहकः, शिष्यः शिास-क्यप] 1. छात्र, चेला, विद्यार्थी, -बाह्यक: जंगली बकरा। --शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् .. भग० 217 शिशुकः [शिशु+कन्] 1. बालक, बच्चा 2. किसी भी। 2. क्रोध, आवेश। सम० परम्परा चेलों का अनुजानवर का बच्चा 3. वृक्ष 4. संस। क्रम, किसी गरु-संप्रदाय की परंपरित शिष्यमंडली, शिश्नम्, शिस्नम् [शश्+नक इत्वम्] पुरुष की जननेन्द्रिय, --शिष्टिः (स्त्री०) छात्र का शोधन, भत्सना / लिङ्ग-याज्ञ० 1117, मनु० 111104 / शिलः, शिलकः [सिह +लक्, नि० सस्य शः] शैलेय शिक्विवान (वि.) [श्वित्+सन्+आनच्, सनो लुक्, गन्धद्रव्य / द्वित्वम्, रकारस्य दकारः 1. पवित्र आचरण वाला, | शी (अदा० आ० शेते, शयित, कर्मवा० शय्यते, इच्छा० सद्गुणी, पुण्यात्मा 2. दुष्ट, पापी। शिशयिषते) 1. लेटना, लेट जाना, विश्राम करना, शिष् i (भ्वा० पर०, शेषति) चोट पहुंचाना, मार आराम करना, इतश्च शरणार्थिनः शिखरिणां गणाः डालना। शेरते-भर्त० 2176 2. सोना, (आलं० से भी) ii(म्वा पर०, चुरा० उभ० शेषति, शेषयति-ते) -कि निःशङ्के शेषे-शेषे वयसः समागतो मृत्युः / अथवा अबशिष्ट छोड़ देना, बना देना। सुखं शयीथा निकटे जागति जाह्नवी जननी-भामि० iii (रुषा० पर० शिनष्टि, शिष्ट) 1. बाक़ी छोड़ना, 4 / 30, भ० 3179, कु० 5 / 12, प्रेर० (शाययति बचा रखना, अवशिष्ट छोड़ना 2. दूसरों से भिन्नता -ते) सुलाना, लिटाना, अति-, 1. सोने में पहल करना-प्रेर० (शेषयति-ते) छोड़ना, अव-, बाकी करना 2. बाद में सोना- अपेक्षाकृत देर तक सोना छोड़ना, पीछे छोड़ना (प्रायः कर्मवा० में) स्तम्बन ... अहं पतीनातिशये. महा0 3. श्रेष्ठ होना, आगे नीवार इवावशिष्ट:---रघु० 5 / 15, कियदवशिष्टं बढ़ जाना—पूर्वान्महाभाग तयातिशेषे . रघु० 5 / 14, रजन्याः - श० 4, निद्रागमसीम्नः कियदवशिष्टम चरितेन चातिंशयिता मुनयः-कि० 632, भट्रि० - महावी०६, भग० 7 / 2, उद्---, बाक़ी छोड़ना 7.46, (प्रेर०) आगे बढ़ने का कारग बनना-चाम्या--दे० 'उच्छिष्ट', परि-, अवशिष्ट छोड़ना (प्रेर० तिशाययति धाम सहस्रधाम्न:- मुद्रा० 3317, अधि-, भी-भविता करेणुपरिशेषिता मही-भामि० (स्थान में कर्म के साथ) लेटना, सोना, आराम 1153, वि--, 1. विशिष्ट करना, विशेषता देना, करना.... अध्यशयिष्ट गाम्-भट्टि० 15 / 14, अमुं विशेष रूप से कहना, परिभाषा करना 2. भेद करना, युगान्तोचितयोगनिद्रः संहत्य लोकान् पुरुषोऽधिशेते विवेचन करना 3. बढ़ाना, ऊँचा करना, वृद्धि करना, ... रघु० 1316, 16 / 49, 19 / 32, कि० 1138, गहरा करना -पुनरकाण्डविवर्तनदारुणो विधिरहो 2. बसना, रहना,- भट्टि. 10135, उप .., सोना, विशिनष्टि मनोरुजम्-मा० 4 / 4, उत्तर० 4 / 15 / निकट लेटना, सम , संदेह में होना-संशय्य कर्णा(कर्मवा०) 1. भिन्न होना-- रघु० 17462 2. दिषु तिष्ठते यः--कि० 3 / 14,42, भामि० 2 / 115 / अपेक्षाकृत अच्छा या ऊँचे दर्जे का होना, आगे बढ़ | शी [ शी+क्विप्] 1. निद्रा, विश्राम 2. शान्ति / For Private and Personal Use Only