________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (1021 ) शोक i (म्वा० आ० शीकते) 1. तर करना, छिड़कना / गन्धद्रव्य, प्रभः कपूर,--भानुः चाँद,---भीरः एक 2. शनैः शनैः जाना, हिलना-जुलना / प्रकार की मल्लिका, - मयखः, मरीचिः, - रश्मिः ii (भ्वा० पर०, चुरा० उभ० शीकति, शीकयति-ते) | 1. चाँद 2. कपूर,-रम्यः दीपक, - इच् (पुं०) चाँद, 1. क्रोध करना 2. आर्द्र करना, गीला करना। - वल्क: गूलर का पेड़, -वीर्यकः बड़ का पेड़,-शिवः शीकरः [शीक+अरन्] 1. वायप्रेरित छींटे, सूक्ष्मवृष्टि, शमीवृक्ष, जैडी का पेड़, (बम् ) 1. सेंधानमक बौछार, तुषार-कु०१।१५, 2052, रघु० 5 / 42, 2. सुहागा,-शूकः जी, - स्पर्श (वि०) ठंडक पहुंचाने 9 / 68, कि० 5 / 15 2. जलकण, वृष्टिकण-गतम- वाला। परिघनानां वारिगौदराणां पिशनयति रथस्ते शीकर- शीतक (वि.) शीत+कन्] ठण्डा, दे० 'शीत', क्लिन्ननमिः-शा० 7 / 7, रघु० १७।६२,-रम् 1. सरल- 1. कोई ठण्डी वस्तु 2. जाड़े की ऋतु, सर्दी का मौसम वृक्ष 2. इस वृक्ष की राल / 3. मन्थर, दीर्घसूत्री 4. आनन्दित, निश्चिन्त 5. बिच्छ। शोघ्र ( वि० ) [शिङ्घ,+रक्, नि०] फुर्तीला, त्वरित, शीतल (वि.) [शीतं लाति-ला+क, शीतमस्त्यस्य लच् सत्वर-विबभ्रन्मणि मण्डलचारशीघ्रः विक्रम०५।२, वा] ठण्डा, शीतलगुण युक्त, सर्द, (ठण्ड के कारण) - नः ( ज्योति० में ) ग्रहयोग,-घ्रम् ( अव्य०) जमा हुआ (आलं० से भी)- अतिशीतलमप्यम्भः फुर्ती से, तेजी से, जल्दी से। सम०-उसः (ज्योति कि भिनत्ति न भूभृत:-सुभा०, महदपि परदुःखं शीतलं में) ग्रयोग, कारिन् ( वि० ) फुर्तीला, चुस्त, सम्यगाहु:-विक्रम० 4 / 13, लः 1. चाँद, 2. एक - कोपिन् (वि.) चिड़चिड़ा, क्रोधी, चेतनः कुत्ता, प्रकार का कपूर 3. एक प्रकार का धार्मिक अनुष्ठान, -- बुद्धि (वि०) तीक्ष्णबद्धि वाला, तेज़ बुद्धिवाला, -लम् 1. ठण्डक, ठण्डापन 2. जाड़े की ऋतु -----लडन (वि०) तेज जाने वाला, पैर फुर्ती से 3. शैलेयगन्धद्रव्य 4. सफेद चन्दन, या चन्दन 5. मोती रखने वाला-घट०८, वेधिन् (पुं०) तेज़ धनुर्धर / 6. तूतिया 7. कमल 8. वीरण नामक मूल / सम. शोध्रिन् (वि.) [शीन+इनि सत्वर, फुर्तीला। ------छवः चम्पक वृक्ष,-जलम् कमल,-प्रदः-वम् चन्दन, शोध्रिय (वि०) [शीघ्र+घ चुस्त,--यः 1. विष्णु 2. शिव | --षष्ठी माघ शुक्ला छठ। बिल्लियों की लड़ाई। | शीतलकम् [शीतल+कन्] सफेद कमल / घ्रघम् [शीघ्र+यत् चुस्ती, शीघ्रता। शीतला [शीतल+टाप्] 1. चेचक 2. चेचक (शीतला) शीत् (अव्य०) आकस्मिक पीड़ा या आनन्द को अभि- की अधिष्ठात्री देवता। सम० पूजा शीतला देवी व्यक्त करने वाली ध्वनि (विशेषकर आनन्दोद्रेक की की पूजा। वह ध्वनि जो सम्भोग के समय होती है)। सम० - शीतली शीतल+डीष चेचक / -~-कारः,-कृत् (पुं०) उपर्युक्तध्वनि, सिसकारी। शोता दे० 'सीता'। शीत (वि०) [श्य+क्त] 1. ठण्डा, शीतल, जमा हुआ, शीताल (वि.) [शीतं न सहते-- शीत+आलच] सर्दी ...--तब कुसुमशरत्वं शोतरश्मित्वमिन्दोः-श० 3 / 2 / / से ठिठुरता हुआ, जिसे सर्दी लग गई है, जाड़े के 2. मन्द, सुस्त, उदासीन, आलसी 3. अलस, सुस्त, कारण कष्ट पाता हुआ - शि० 8 / 19 / जड़, तः 1. एक प्रकार का नरकुल 2. नील का शोत्य दे० 'सीत्य' / वृक्ष 3. जाड़े की ऋतु, (नपुं० भी) 4. कपूर, तम् शोधु (पुं०, नपुं०) [शी+-धुक ] 1. कोई भी प्रास्त 1. ठण्डक, शीतलता, सर्दी आः शीतं तुहिनाचलस्य मदिरा, अंगूरी शराब 2. शराब। सम०-गन्धः करयो:-काव्य० 10 2. जल 3. दारचीनी। सम० बकुल वृक्ष, मौलसिरी का पेड़, पः शराबी। ---अंशुः 1. चाँद वक्त्रेन्द्रौ तव सत्ययं यदपरः / शीन (वि.) [ श्य+क्त ] 1. जमा हुआ, घनीभूत, नः शीतांशुरुज्जृम्भते - काव्य० 10 2. कपूर, अदः 1. जड़, बुद्ध 2. अजगर।। मसूड़ों के पकजाने या उनमें ब्रण हो जाने का रोग, | शीभू (भ्वा० आ० शीभते) 1. शेखी बघारना 2. बतलाना, पायरिया, अद्रिः हिमालय पहाड़,--अश्मन् (पुं०) कहना, बोलना, (कथने ?) / चन्द्रकान्तमणि,- आर्त (वि०) ठंड से व्याकुल, जाड़े शीम्यः [शीभ+ण्यतु] 1. साँड़ 2. शिव।। से ठिठुरा हुआ, उत्तमम् पानी, काल: जाड़े की शोरः [शीड-+रक] अजगर देसीर' भी। ऋतु, सर्दी का मौसम, कालीन (वि०) जाड़े में | शीर्ण (भू० क. कृ०) [शवत ] 1. कुम्हलाया हुआ, होने वाला, -कृच्छ,- छम् एक प्रकार की धार्मिक | मुझीया हुआ, सड़ा हुआ 2. सूखा, शुष्क 3. टूटा फूटा, साधना,--गन्धम् सफेद चन्दन,-T: 1. चाँद 2. कपूर, चूर चूर हुआ 4. दुबला-पतला, कुश (दे० श),-र्णम् चम्पक: 1. दीपक 2. दर्पण, दीधितिः चाँद,-पुष्पः एक प्रकार का गन्ध द्रव्य / सम० अघ्रिः ,—पादः शिरीष का वृक्ष, शिरस का पेड़, - पुष्पकम् शैलेय ! 1. यम का विशेषण 2. शनिग्रह का विशेषण,-पर्णम For Private and Personal Use Only