________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 707 ) द्वारा जकड़े जाने योग्य, कैद किये जाने या बन्दी जोश में भरकर उसने अर्जन पर एक अर्धचन्द्राकार बनाये जाने के योग्य —याज्ञ. 20243 2. मिलाकर बाण छोड़ा जिससे उसका सिर धड़ से अलग हो बाँधने या जोड़ने के योग्य 3. निर्माण किये जाने के गया। संयोगवश उस समय वहाँ चित्रांगदा के पास योग्य, बनाये जाने या संचरित किये जाने के योग्य उलूपी विद्यमान थी, उसने अर्जुन को पुनर्जीवित कर 4. निरुद्ध, निगृहीत 5. बाँझ, बंजर, जो उपजाऊ न दिया। अर्जुन ने भी बभ्रुवाहन को अपना सच्चा पुत्र हो, निष्फल, निरर्थक (व्यक्ति या वस्तु)-बन्ध्यश्रमास्ते मान लिया और अपनी यात्रा पर आगे चल दिया)। -रघु० 1675, अबन्ध्ययत्नाश्च बभूवर ते-३।२९, बम्ब (भ्वा० पर० बंबति) जाना, चलाना-फिरना। कि० 1133 6. जिसका मासिक रजःस्राव आना बन्द बम्भरः [भू+अच, द्वित्वं मम् च ] मधुमक्खी, भौंरा / हो गया हो 7. ( समास के अन्त में ) विहीन, बम्भराली बम्भर+अल+अच्+ङीष् ] मक्खी / विरहित ! सम० --फल (वि.) निरर्थक, अर्थहीन, बरटः [वृ+अटन्, बवयोरभेदः ] एक प्रकार का अन्न / सुस्त। बर्व (स्वा० पर बर्वति) जाना, चलना-फिरना / बन्ध्या [बन्ध्य-टाप] बाँझ स्त्री नहि बन्ध्या विजानाति बर्बटः (बर्व+अटन् ] एक प्रकार का अनाज, राजमाष / गुर्वा प्रसववेदनाम् —सुभा० 2. बाँझ गौ 3. एक प्रकार बर्बटी [बर्बट-डीष ] 1. एक प्रकार का अन्न, राजमाष का गन्धद्रव्य (बालछड़)। सम०---तनयः,-पुत्रः 2. वेश्या, रंडी। ---सुतः या ---दुहित,- सुता बाँझ स्त्री का पुत्र या | बर्बणा (स्त्री०) नीली मक्खी। पुत्री अर्थात् घोर असंभाव्यता, जिसका न अस्तित्व है | बर्बरः [+अरच, बुट बवयोरभेदः] 1. जो आर्य न हो, न हो सकता है, एवं बन्ध्यासुतो याति खपुष्पकृतशेखरः | अनार्य, असभ्य, नीच 2. मूखं, बुद्ध-शृणु र बबर —दे० 'खपुष्प' / ___--हि०२। बंध्रम् [ धंध+ष्ट्रन ] बन्धन, गाँठ। | बर्बुरः [बर्ब +उरच एक वृक्ष, बाभल-उपसर्गम भवन्तं बभ्रवी [ बभ्रु: अण् + ङीप्, नवृद्धि ] दुर्गा की उपाधि / बर्तुर वद कस्य लोभेन--भामि० 1 / 24 / / बभ्रु (वि.) [ भृ+कु, द्वित्वम्-बभ्रू+उ वा ] 1. गहरा बर्ह (भ्वा० आ० बर्हते) 1. बोलना 2. देना 3. ढकना भूरा, खाकी, लाली लिये हुए भूरा-ज्वालाबभ्र 4. क्षति पहुंचाना मार डालना, नष्ट करना शिरोरुहः - रघु० 15 / 16, 19125, बवन्ध बालारुण ____5. फैलाना, नि-, मार डालना, नष्ट करनाबभ्रु वल्कलम् --कु० 5 / 82 किसी रोग के कारण शि० 1129 / गंजे सिर वाला, भ्रुः 1. आग, 2. नेवला 3. खाकी | वहः,-हम् [ बह +अच् ] 1. मोर की पूंछ-दवोल्काहतरंग 4. भूरे बालों वाला 5. एक यादव का नाम-शि० शेषबहाः-रघु० 16 / 14 (केशपाशे) सति कुसुम 2 / 40 6. शिव का विशेषण 7. विष्ण का विशेषण / सनाथे के हरेदेष बहः-विक्रम० 4110, पाठान्तर सम० ---धातुः 1. सोना 2. गेरु, सूवर्णगरिक,--वाहनः 2. पक्षी की पूंछ 3. पूंछ का पंख (विशेषकर मोर चित्रांगदा के गर्भ से उत्पन्न अर्जन का एक पुत्र, की) मेघ० 44, कु० 1115, शि०८1११ 4. पत्ता [युधिष्ठिर द्वारा छोड़े गये अश्वमेध के घोड़े की देख- अपाण्डुरं केतकबहमन्यः-रघु०६।१७ 5. अनुचरवर्ग, भाल अर्जुन करता था। वह घोड़ा घूमता हुआ नौकर-चाकर। सम-भारः 1. मोर की पंछ मणिपुर देश में चला गया। उस समय वहाँ बभ्रुवाहन 2. मोरछल, लाठी की मठ में बंधा मोर के पंखों राज्य करता था। वह अद्वितीय पराक्रमी था। जब का गुच्छा / वह घोड़ा उसके पास लाया गया और उसने घोड़े के वर्हणम् [बर्ह + ल्युट ] पत्ता। सिर पर बँधे पट्ट पर 'पांडवों' का नाम पढ़ा तथा यह बहिः [बह +इन् ] आग-(नपुं०) कुश नामक घास / जाना कि उसके पिता अर्जन राज्य में आ गए हैं तो बहिणः [बह +इनच् ] मोर-आवासवृक्षोन्मुखबहिणानि शीघ्रता से वह उनके पास गया, बड़े सम्मान, के (बनानि) रघु० 2 / 17, 16 / 14, 19 / 37 / सम. साथ अपना राज्य और कोष, अश्वसहित उनके सामने --वाजः मोर के पंख से युक्त बाण,--वाहनः कातिप्रस्तुत किया। अर्जुन ने उस बुरे समय में बभ्रुवाहन केय का विशेषण। के सिर पर प्रहार किया और उसकी कायरता के | बहिन (पुं०) [बह+इनि] मोर-रघु० 16.64, लिए उसे डाँटा, फटकारा और कहा कि यदि वह सच्चा पराक्रमी होता, तथा अर्जुन का सच्चा पुत्र -पुष्पम् एक प्रकार का गंधद्रव्य, ध्वजा दुर्गा का होता तो उसे अपने पिता से डरना नहीं चाहिए था, विशेषण,---यानः,-वाहनः कार्तिकेय का विशेषण / और न इस प्रकार दीनता दिखलानी चाहिए थी।। बहिस् (पुं०, नपुं०) [बह +(कर्मणि) इसि] कुश नामक इन शब्दों से उस वीर युवक को अत्यन्त क्रोध आया, घास-कु० 1160 2. बिस्तरा या कुशवास का 16 / 64, gem2,4110, ऋतु० 6 न पिता से डरना नहीं सच्चा पुत्र For Private and Personal Use Only