SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -संभवः-समुद्भवः 1. पुत्र-चकार नाम्ना रघु- आत्रेय (वि.) (स्त्री०-यी)[ अत्रि+ठक ] अत्रि से संबंध मात्मसंभवम्-रघु०३।२१,१११५७,१७।८2. प्रेम | रखने वाला, या अत्रि की संतान,--यः अत्रि का का देवता, कामदेव 3. ब्रह्मा की उपाधि, शिव, विष्णु वंशज, यी 1. अत्रि की पुत्री 2. अत्रि की पत्नी (--चा) 1. पुत्री 2. समझ,-संपन्न (वि०) 1. स्वस्थ- 3. रजस्वला स्त्री। चित्त, 2. बुद्धिमान्, प्रतिभाशाली,-हन = घातिन्, | आत्रेयिका [आत्रेयी+कन्+टाप, ह्रस्वः] रजस्वला स्त्री। -हननम्,-हत्या आत्मघात,-हित (वि.) अपने आथर्वण (वि.) (स्त्री०---णी) [अथर्वन्+अण्] अथर्वलिए हितकर,(-तम्) अपना निजी भला या कल्याण । वेद या अथर्वा ऋषि से संबंध रखने वाला,-ण: 1. मात्मना (अध्य०) [ 'आत्मन्' का करण० ए० व.] आत्म अथर्ववेद का अध्येता या ज्ञाता ब्राह्मण 2. यज्ञ का बाची कर्तृकारक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है पुरोहित जिससे संबद्ध यज्ञ कर्म पद्धति का विधान अथ बास्तमिता त्वमात्मना-रघु०८।५१, तुम स्वयम्, अथर्ववेद में निहित है 3. स्वयं अथर्ववेद 4. गृहयह प्रायः क्रमिक संख्यासूचक शब्दों के साथ जोड़ा | पुरोहित । जाता है-उदा०-द्वितीयः आप सहित दूसरा अर्थात् आथर्वणिकः । अथर्वन --ठक अथर्ववेद का अध्येता ब्राह्मण। वह तथा स्वयं । आदंशः [आ+दंश्+घञ ] 1. डंक, डंक मारने से पैदा मात्मनीन (वि.) आत्मन+ख] 1. अपने से संबंध रखने __ हुआ घाव, 2. डंक, दांत । बाला, अपना निजी,—कस्यैष आत्मनीन:----मालदि. आवरः [ आ+द+अप्] 1. आदर, पूज्यभाव, सम्मान, ४, 2. अपने लिए हितकर-आत्मनीनमुपतिष्ठते-कि० -निर्माणमेव हि तदादरलालनीयम-मा० ९।४९, न १३॥६९,-न: 1. पुत्र 2. पत्नी का भाई 3. विदूषक जातहार्देन न विद्विषादरः-कि० ११३३, कु. ६३२० (नाटकों में)। 2. अवधान, सावधानी, सम्मान्य व्यवहार, कु० ६१९१, मात्मनेपदम [ आत्मने आत्मार्थ-फलबोधनाय पदम्-अलुक 3. उत्सुकता, इच्छा, स्नेह-भूयान्दारार्थमादरः कु० स.] 1. आत्मवाची क्रियापद, दो प्रकार के क्रियापदों ६१९३, यत्किञ्चनकारितायामादरः----का० १२२, 4. (परस्मैपद तथा आत्मनेपद) में से एक जिनमें कि संस्कृत प्रयत्न चेप्टा-गृहयंत्रपताकाश्रीरपौरादरनिर्मिता-कु० भाषा की धातु-रूपावली पाई जाती है, 2. आत्मनेपद ६।४१, 5. उपक्रम, आरंभ 6. प्रेम, आसक्ति । के प्रत्यय । आवरणम् [ आ+द+ल्युट् ] सत्कार, इज्जत, सम्मान । मात्मभरि (वि.) [आत्मानं बिभर्ति इति-आत्मन्+भू आदर्शः [ आ-+-दृश्+घञ 11. आईना, मुंह देखने का +खि, मुम् च ] स्वार्थी, लालची, ( जो केवल अपनी शीशा, दर्पण-आत्मानमालोक्य च शोभमानमादर्शबिबे ही उदरपूर्ति करता है)--आत्मम्भरिस्त्वं पिशितैर्न स्तिमितायताक्षी–कु. ६२२. 2. मूल पांडुलिपि राणाम्-भट्टि० २१३३, हि० ३।१२१ । जिससे प्रतिलिपि तैयार की जाय, (आलं०) नमूना, मात्मवत् (वि.) [आत्मन् + मतुप्-मस्य वः ] 1. स्वस्थ- प्रतिकृति, प्रकार, आदर्शः शिक्षितानाम् - मृच्छ० वित्त, 2. शान्त, दूरदर्शी, बुद्धिमान् - किमिवावसाद ११४८; आदर्शः सर्वशास्त्राणाम् - का० ५, इसी करमात्मवताम्--कि० ६।१९ । प्रकार,—गुणानाम् -आदि 3. कार्य की एक प्रति भात्मवत्ता [आत्मवत्+तल-+टाप् स्वस्थचित्तता, स्वनि- | लिपि 4. टीका, भाष्य। यंत्रण, बुद्धिमत्ता-प्रकृतिष्वात्मजमात्मवत्तया-रघ० आवर्शकः [ आदर्श-+-कन् ] दर्पण, आईना । ८1१०, ८४ । आदर्शनम् [ आ+दृश् + ल्युट् ] 1. दिखलावा, प्रदर्शन मात्मसात् (अव्य०) [आत्मन+साति ] अपने अधिकार 2. दर्पण । में, अपना निजी,(प्राय: 'कृ' और 'भू' के साथ]-दुरित- | आदहनम् [आदहल्युट्] 1. जलन 2. चोट पहुँचाना, रपि कर्तुमात्मसात् - रघु० ८।२।। हत्या करना 3. खरी-खोटी सुनाना, घृणा करना भात्यंतिक (वि.) (स्त्री०---की) [ अत्यन्त+ठा ] 1. 4. श्मशान । सतत, अनवरत, अनन्त, स्थायी, नित्यस्थायी —स आवानम् [आ+दा+ल्युट् ] 1. लेना, स्वीकार करना, श्रात्यन्तिको भविष्यति----मुद्रा०४, विष्णुगप्तहतकस्या- पकड़ना-कुशाङकुरादानपरिक्षताङगुलि:-कू० ५।११, त्यन्तिकश्रेयसे–२।१५, भग०६।२१, 2. अत्यधिक, आदानं हि विसर्गाय सतां वारिमुचामिव-रघु० प्रचुर, सर्वाधिक 3. सर्वोच्च, पूर्ण-आत्यन्ति की स्वत्व- ४१८६, 2. उपार्जन, प्रापण 3. (रोग का) लक्षण । निवृत्तिः-मिता। आदायिन् (वि.) [ आ+दा+णिनि ] ग्रहण करने वाला, भाल्पपिक (वि.) [स्त्री०--की] [ अत्यय-+ठक ] 1. | प्राप्त करने वाला। नाशकारी, सर्वनाशकर 2. पीडाकर, अमंगलकर, अशुभ- | आदि (वि.) [ +दा+कि] 1. प्रथम, प्राथमिक, . सूचक 3. अत्यावश्यक, अपरिहार्य, आपाती। आदिम-निदानं त्वादिकारणम्-,अमर०, 2. मुख्य, For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy