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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सबसे कमजोर जीवों को खाकर पलती है) तु०-मत्स्या इव जना नित्यं भक्षयन्ति परस्परम-रामा०,-आश्रयः अपने ऊपर निर्भर करना,-ईश्वर (वि०) आत्मसात्कृत, अपना स्वामी आप-आत्मेश्वराणां न हि जातु विघ्नाः समाधिभेदप्रभवो भवन्ति—कु० ३।४०, -उद्धवः 1. पुत्र 2. कामदेव (-वा) पुत्री,-- उपजीविन् (पुं०) 1. जो अपने परिश्रम पर निर्भर करता है, श्रमिक 2. मजदूर 3. जो अपनी पत्नी के ऊपर आश्रित रहता है (मनु० ८।३६२ पर कुल्लक), 4. पात्र, सार्वजनिक अभिनेता,--काम (वि.) 1. अपने आप को प्रेम करने वाला, अभिमान से युक्त, घमंडी 2. ब्रह्म या परमात्मा को प्रेम करने वाला,--गत (वि०) मन में उपजा हुआ,- तो मनोरथः-श०१, (-तम्) [अव्य.] एक ओर, जो मन में कहा हुआ समझा जाय (विप० प्रकाशम-जोर से) (यह बहुधा रंगमंच के निर्देश के रूप में नाटकों में प्रयुक्त होता है) ---यह 'स्वगत' का ही पर्याय है जिसकी परिभाषा यह है:--अश्राव्यं खलु यद्वस्तु तदिह स्वगत मतम् ....सा. द०६,---गुप्तिः (स्त्री०) गुफा, किसी जानवर के छिपने का स्थान,--ग्राहिन (वि०) स्वार्थी, लालची, -धातः 1. आत्महत्या, 2. नास्तिकता,--घातकः, --घातिन् (पुं०) 1. आत्महत्यारा अपने आप को स्वयं मारनेवाला, ... व्यापादयेत् वृथात्मानं स्वयं योऽन्युदकादिभिः, अवधेनैव मार्गेण आत्मघाती स उच्यते ॥ 2. नास्तिक,..---घोषः 1. मुर्गा 2. कौवा ----जः-जन्मन् (पुं०),-जातः,-प्रभवः,- सम्भवः 1. पुत्र-तमात्मजन्मानमजं चकार-रघु० ५१३६. । तस्यामात्मानुरूपायामात्मजन्मसमुत्सुकः-रघु० ११३३, । मा० १, कु० ६।२८, 2. कामदेव,-जा 1. ! पुत्री-वंद्य युगं चरणयोर्जनकात्मजाया. ---रघु० १३। ७८, तु० नगात्मजा आदि 2. तर्कशक्ति, समझ,-जयः अपने ऊपर विजय प्राप्त करना, आत्मत्याग, आत्मोत्सर्ग,-ज्ञः,-विद् (पुं०) ऋषि, जो अपने आप को जानता है, -- ज्ञानम् 1. आत्मा या परमात्मा की जानकारी, 2. अध्यात्म ज्ञान,-तत्वम् आत्मा या परमात्मा की वास्तविक प्रकृति, त्यागः 1. स्वार्थत्याग 2. दूसरे के भले के लिए अपनी हानि करना, आत्महत्या, त्यागिन् (पं०) 1. आत्महत्या करने वाला-आत्म त्यागिन्यो नाशौचोदकभाजनाः- याज्ञ० ३१६, 2. नास्तिक ---त्राणम् 1. आत्मरक्षा 2. शरीर-रक्षक,--दर्शः आईना –प्रसादमात्मीयमिवात्मदर्श:-- रघु० ७.६९, --दर्शनम् 1. अपने आपको देखना 2. आध्यात्मिक ज्ञान,--द्रोहिन् (वि०) 1. अपने आपको पीडित करने वाला 2. आत्महत्या करने वाला--नित्य (वि०) । . लगातार हृदय में होने वाला, अपने आपको अति प्रिय, । -निन्दा अपनी निंदा,-निवेदनम् अपने आपको प्रस्तुत करना (जैसे किसी प्राणी का किसी देवता के प्रति बलिदान)निष्ठ (वि०) आत्मज्ञान का अनवरत अन्वेषक, प्रभ (वि.) स्वयं प्रकाशवान् -प्रभवः-जः,--प्रशंसा अपने मुंह मियाँ मिळू बनना,-बन्धुः,-बान्धवः अपना निजी संबंधी-आत्ममातुः स्वसुः पुत्रा आत्मपितुः स्वसुः सुताः, आत्ममातुलपुत्राश्च विज्ञेया ह्यात्मबान्धवा:-शब्दक०। अर्थात् मौसी का पुत्र, भुवा का पुत्र, और मामा का पुत्र, बोधः 1. आध्यात्मिक ज्ञान 2. आत्मा का ज्ञान,-भूः, -योनिः 1. ब्रह्मा, वचस्यवसिते तस्मिन् ससर्ज गिरमात्मभूः—कु० २।५३, 2. विष्णु 3. शिव-श०७१ ३५ 4. कामदेव, प्रेम का देवता 5. पुत्र (स्त्री०-भूः) 1. पुत्री 2. बुद्धिवैभव, समझ,–मात्रा परमात्मा का अंश,—मानिन् (वि.) 1. स्वाभिमानी, आदरणीय 2. घमंडी,-याजिन् (वि०) अपने लिए यज्ञ करने वाला, (पुं०) विद्वान् पुरुष जो शाश्वत आनन्द प्राप्त करने के लिए अपने तथा दूसरे व्यक्तियों की आत्मा का अध्ययन करता है, जो सब प्राणियों को अपने समान समझता है-सर्वभूतेषु चात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि, समं पश्यन्नात्मयाजी स्वाराज्यमधिगच्छति --मनु० १२१९१,---योनिः -भू (पुं०), कु० ३१७० – रक्षा अपना बचाव,-लाभः जन्म, उत्पत्ति, मूल -यैरात्मलाभस्त्वया लब्धः--मुद्रा०३।१,५।२३, कि० ३।२३ १७।१९,--वंचक (वि.) अपने आपको धोखा देने वाला,---वंचना आत्म-भ्रम, अपने को धोखा देना, - वधः,--बध्या, हत्या अपनी हत्या स्वयं करना, ---वश (वि०) अपनी इच्छा पर आश्रित रहने वाला (-शः) 1. आत्मनियन्त्रण, आत्म-प्रशासन 2. अपना नियन्त्रण, अधीनता, शं नी, वशीकृ अधीन करना, विजय प्राप्त करना,-वश्य (वि०)अपने ऊपर नियन्त्रण रखने वाला, आत्मसंयमी, अपने मन व इन्द्रियों को वश में रखने वाला,-विद (०) बुद्धिमान् पुरुष, ऋषि, जैसा कि 'तरति शोकमात्मवित्' में,--विद्या आत्मा का ज्ञान, अध्यात्म-ज्ञान,—बीर: 1. पूत्र 2. पत्नी का भाई 3. विदूषक (नाटकों में),-वृत्ति (वि.) आत्मा में रहने वाला (तिः- स्त्री०) 1. हृदय की अवस्था, अपने से संबंध रखने वाली चेष्टाएँ, अपनी निजी अवस्था या परिस्थिति--विस्माययन् विस्मितमात्मवृत्तौ--रघु० २।३३,--शक्तिः (स्त्री०) अपनी निजी सामर्थ्य या योग्यता, अन्तहित शक्ति या बल —देवं निहत्य कुरु पौरुषमात्मशक्त्या---पंच०११३६१, अपनी शक्ति के अनुसार, इलाघा, स्तुतिः (स्त्री०) अपनी प्रशंसा स्वयं करना, शखी बधारना, डींग मारना,---संयमः अपनी इन्द्रियों पर काबू रखना, For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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