SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -जलम् अन्न और जल, दासः भोजन मात्र पाकर सौतेली माता का पुत्र, अर्घभ्राता (-) अर्ध-भगिनी, सेवा करन वाला दास या नोकर, --देवता आहार ---ऊडा (वि०) दूसरे से विवाहित, दूसरे की पत्नी, की सामग्री की अधिष्ठात्री देवी, -दोषः निपिद्ध ---क्षेत्रम् 1. दूसरा खेत 2. दूसरा देश या विदेश 3. भोजन के खाने से उत्पन्न पाप, - द्वेषः भोजन में दूसरे की पत्नी, --1, ---गामिन् (वि०) 1. और अरुचि, भूख का अभाव,—पूर्णा दुर्गा देवी का एक रूप के पास जाने वाला, 2. व्यभिचारी, लम्पट, गोत्र (अर्थात् सम्पन्नता की देवी) -प्राशः, -प्राशनम् (वि०) दूसरे कुल या वंश का, ---चित्त (वि.) किसी १६ संस्कारों में से एक संस्कार जवकि नवजात बालक और पदार्थ पर ध्यान लगाने वाला, दे० 'मनस, -ज, को पहली बार विधिवत् भोजन देने की क्रिया सम्पा- ---जात (वि.)भिन्न कुल में उत्पन्न,-जन्मन् (नपुं०) दित की जाती है, यह संस्कार ५ से ८ महीने के मध्य दूसरा जीवन, पुनर्जन्म, आवागमन, ---दुर्वह (वि.) (प्रायः छठे मास में—मनु० ॥३४) किया जाता है, जो दूसरे को सहन न कर सके-देवत,-देवत्य (वि०) --- ब्रह्मन, ---आत्मन् (पुं०) आहार का प्रतिनिधित्व दूसरे किसी देवता को संबोधित करने वाला या मंत्र द्वारा करने वाला ब्रह्मा,-भुज (वि०) भोजन करने वाला, उल्लेख करने वाला,--नाभि (वि०) किसी दूसरे कुल से शिव की उपाधि, ---मय (वि०) दे० नीचे, —मलम् संबंध रखने वाला, --- पदार्थः 1. दूसरी वस्तु 2. दूसरे 1.विष्ठा, 2. मदिरा,- रक्षा भोजन करने में सावधानी, शब्द का भाव, प्रधानो बहुव्रीहिः---बहुव्रीहि समास - रसः आहार का सत्, पक जाने पर अन्न के भीतरी निश्चित रूप से अन्यपुरुषप्रधान होता है, पर (वि०) गूदे से बना रस, ---वस्त्रम् = आच्छादनम् तु० 1. दूसरों का भक्त 2. किसी दूसरे का उल्लेख करने व्यवहारः खानपान संबंधी प्रथा या विधि अर्थात् दूसरों वाला--पुष्ट:-ष्टा,-भूतः–ता दूसरे से पाला हुआ के साथ मिलकर खाना या न खाना, ----शेषः जूठन, या पाली हुई, कोयल की उपाधि, जो कि कौवे के द्वारा उच्छिष्ट--संस्कारः देवताओं के निमित्त अन्न का पाली हुई समझी जाती है अत एव 'अन्यभूत' कहलाती समर्पण। है- अप्यन्यपुष्टा प्रतिकूल शब्दा कु० ११४५, कलमन्यअन्नमय (वि.) (स्त्री०-यी) [अन्न+मयट] अन्न वाला भृतासु भाषितम्-रघु० ८1५९, -पूर्वा 1. वह स्त्री या अन्न से बना पदार्थ; कोशः-ब: भौतिक शरीर, जिसका वाग्दान किसी और के साथ हो चुका है 2. पुनस्थूलशरीर, जो अन्न पर ही आधारित है तथा जो कि विवाहित विधवा, --बीजः,-बोजसमुद्भवः, समुत्पन्नः आत्मा का पाचवा वस्त्र या परिधान है, भौतिक संसार, गोद लिया हुआ पुत्र (दूसरे माता पिताओं से उत्पन्न), स्थूलतम तथा निम्नतम रूप जिसके द्वारा ब्रह्म अपने वह जो कि औरस पुत्र के अभाव में गोद लिया जा आपको सांसारिक सत्ता के रूप में प्रकट करने वाला सके, - भत् (पुं०) कौवा (दूसरों को पालने वाला), माना जाता है,-यम् अन्न की बहुतायत । ...मनस्,-मनस्क, मानस (वि०) 1. अवधानहीन 2. चंचल, अस्थिर,-मातृजः अर्धभ्राता (दूसरी मां से अन्य (वि.) [नपुं० --अन्यत् ] 1. दूसरा, भिन्न, और; उत्पन्न), –रूप (वि०) परिवर्तित था बदले हुए रूप सामान्यत: दूसरा, और स एव त्वन्यःक्षणेन भवतीति वाला,-लिंग,-गक (वि.) दूसरे शब्द के लिंग वाला विचित्रमेतत्----भर्त० नी० ४०, 2. अपेक्षाकृत दूसरा, अर्थात नामशब्द, विशेषण, . वापः कोयल,-विवधित से भिन्न, की अपेक्षा और (अपा० के साथ अथवा समास में अन्तिम पद) नास्ति जीवितादन्यदभिमततर (वि०)=पुष्ट कोयल,--संगमः दूसरी स्त्री से रति क्रिया, अवैध मैथुन, साधारण (दि.) बहुतों के लिए मिह सर्वजन्तूनाम् --का० ३५, उत्थितं ददशेऽन्यच्च सामान्य,-स्त्री दूसरे की पत्नी, जो अपनी पत्नी न हो कबंधेभ्यो न किंचन-रघु १२।४९ 3. अनोखा, (साहित्य शास्त्र में यह तीन मुख्य नायिकाओं-स्वीया, असाधारण, विशेष --अन्या जगद्धितमयी मनसः अन्या, साधारणी-में से एक है, 'अन्या' या तो किसी प्रवृत्तिः–भामि० १२६९, धन्या मृदन्यैव सा—सा. दूसरे की पत्नी होती है अथवा अविवाहित कन्या जो ६०, 4. तुच्छ, कोई 5 अतिरिक्त, नया, अधिक, अन्यच्च -इसके अतिरिक्त, इसके साथ ही, तो फिर (वाक्यों युवती तथा लज्जाशील होती है, दूसरे की पत्नी आमोदका संयुक्त करने वाला); एक-अन्य एक-दूसरा-मेघ० प्रमोद तथा उत्सवों के लिए उत्सुक रहती है तथा अपने कुल के लिए कलंक एवं नितान्त निर्लज्ज होती है७८, दे०, एक के नीचे भी अन्य-अन्य और और, अन्यन्मुखे अन्यनिर्वहणे-मुद्रा० ५, अगदुच्छंखलं सत्त्व सा.द.१०८-११०) गः व्यभिचारी। मन्यच्छास्त्रनियन्त्रितम्---शि० २।६२, अग्य-अग्य-अन्य अन्यक = अन्य। आदि, पहला, दूसरा, तीसरा चौथा आदि। सम- अन्यतम (वि.) [अन्य+इतम] (संज्ञा शब्द की भांति कारक --असाधारण (वि.) जो दूसरों के प्रति सामान्य न के रूप) बहुतों में से एक, बड़ी संख्या में से कोई एक. हो, विशेष, --उदर्य (वि०) दूसरे से उत्पन्न (-2) | अन्यतर (वि.) [अन्य+तरप्](सर्वनाम की भांति रूप), For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy