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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २८७ ) कुरुंट: (पुं०) लालरंग का सदाबहार टो काठ की गुड़िया पुत्तलिका । कुरुवक = कुरबक | कुरुजिद:, दम् [ कुरु + विद्+श, 1. काला नमक 2. दर्पण | कुरुल: (पुं०) वालों का गुच्छा, विशेषकर माथे पर बिखरी हुई जुल्फ । मुम् ] लालमणि - दम् कुर्कुट: [ कुरु + कुटु + क ] 1. मुर्गा 2. कूड़ा-करकट | कुर्कुरः [ कुर् +कुर्+क ] कुत्ता, + उपकर्तुमपि प्राप्तं निःस्वं मन्यंति कुकुरम् पंच० २०९०, अने० पा० । कुचिका = कूचिका । कुर्द, कुर्दन दे० कुर्द, कूर्दन । कु (कु) पर:' [कुर्+क्विप्, कुर्+ पृ+-अव् पक्षे दीर्घः नि० ] 1. घुटना 2. कोहनी । कु (कू) पस:, कु ( कू) र्पासकः [ कुर+अस् + ञ्ञ, पो०, कुस ( कूर्पास) । कन् । स्त्रियों के पहनने के लिए एक प्रकार की अँगिया या चोली 1. मनोजकूर्पासकपीडितस्तना:- ऋतु०५/८, ४११६ अने० पा० । कुर्वत् ( शत्रन्त ) [ कृ + शतृ] करता हुआ (पुं० ) 1. नौकर 2. जूते बनान वाला । कुलम् [कुल + क] 1. वंश, परिवार निदानमिक्ष्वाकुकुलस्य सन्ततेः - रघु० ३।१ 2. पारिवारिक आवास, आसन घर, गृह - वसन्तृषिकुलेषु सः - रघु० १२/२५ 3. उत्तमकुल, उच्च वंश, भला घराना कुले जन्म – पंच ० ५/२, कुलशीलसमन्वितः मनु० ७।५४, ६२, इसी प्रकार कुलजा, कुलकन्यका आदि 4. रेवड़, दल, झुंड, संग्रह, समूह - मृगकुलं रोमन्यमभ्यस्यतु - श० २५ अलिकुलसङ्कुल- - गीत० १, शि० ९।७१, इसी प्रकार गोम महिषी आदि 5. चट्टा, टोली, दल (बुरे अर्थ में) 6. शरीर 7. सामने का या अगला भाग, -ल: किसी निगम या संघ का अध्यक्ष | सम० --- अकुल ( fro ) 1. मिश्र चरित्रबल का 2. मध्यम श्रेणी का, ° तिथि: ( पुं० -- स्त्री०) चांद्रमास के पक्ष की द्वितीया, षष्ठी और दशमी, वार: बुधवार - अङ्गना आदरणीय तथा उच्च वंश की स्त्री – अङ्गारः जो अपन कुल को नष्ट करता है, अचलः, अत्रि, पर्वतः शैलः मुख्य पहाड़, जो इस महाद्वीप के प्रत्येक खंड में विद्यमान माने जाते हैं उन सात पहाड़ों में से एक, उनके नाम ये हैं: - महेन्द्रो मलयः सहा शुक्तिमान् ऋक्षपर्वतः, विन्ध्यश्च पारियात्रश्च सप्तैते कुलपर्वताः । अन्वित ( वि०) उच्चकुल में उत्पन्न, अभिमानः कुल का गौरव, आचारः किसी परिवार या जाति का विशेष कर्तव्य या रिवाज, - आचार्य: 1. कुलपुरोहित या कुलगुरु 2. वंशावलीप्रणेता - आलम्बिन् (वि०) परिवार का पालन पोषण करने वाला, – ईश्वरः 1. परिवार का Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुखिया 2. शिव का नाम, उत्कट (वि०) उच्चकुलोद्भव (ट) अच्छी नसल का घोड़ा० उत्पन्न, उद्गत, उद्भव ( वि०) भले कुल में उत्पन्न, उच्चकुलोद्भव, उद्वहः कुटुंब का मुखिया या उसे अमर बनाने वाला - दे० उह, उपदेशः खानदानी नाम, कज्जलः कुलकलंक, कण्टकः जो अपने कुटुंब के लिए कांटे की भांति कष्टदायक हो, कन्यका, कन्या उच्चकुल में उत्पन्न लड़की - विशुद्धमुग्धः कुलकन्यकाजनः मा० ७१, गृहे गृहे पुरुषाः कुलकन्यकाः समुद्वहन्ति - मा० ७, --करः कुलप्रवर्तक कुल का आदिपुरुष, कर्मन् ( नपुं० ) अपने कुल की विशेष रीति, - कलङ्क जो अपने कुल के लिए अपमान का कारण हो, क्षय: 1. कुटुंब का नाश 2. कुल की परिसमाप्ति, गिरिः, भूभृत् ( पुं० ) -- पर्वतः दे० 'कुलाचल' ऊपर, घ्न (वि० ) कुल को बर्बाद करने वाला दोवरेतेः कुलघ्नानाम् - भग० १/४२, ज, जात (वि०) 1. अच्छे कुल में उत्पन्न, उच्चकुलोद्भव 2. कुलक्रमागत, आनुवंशिक - कि० १1३१ ( दोनों अर्थों में प्रयुक्त), जनः उच्चकुलोद्भव या संमाननीय पुरुष, तन्तुः जो अपने कुल को बनाये रखता है, तिथि: (पुं० [स्त्री० ) महत्त्वपूर्ण तिथि, नामतः चांद्र पक्ष की चतुर्थी, अष्टमी, द्वादशी और चतुर्दशी, तिलकः कुटुंब की कीर्ति, जो अपने कुल को सम्मानित करता है, दीपः- दीपकः जिससे कुल का नाम उजागर हो, दुहित ( स्त्री० ) दे० कुलकन्या, देवता अभिभावक देवता, कुल का संरक्षक देवता - कु० ७ २७ - - धर्मः कुल की रीति, अपने कुल का कर्तव्य या विशेष रीति- उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन - भग० ११४३ मनु० १।११८, ८ १४, – धारक : पुत्र, धुर्यः परिवार का भरणपोषण करने में समर्थ (पुत्र), वयस्क पुत्र न हि सति कुलधुर्ये सूर्यवंश्या गृहाय -- रघु० ७/७१ - नन्दन ( वि० ) अपने कुल को प्रसन्न तथा सम्मानित करने वाला, नायिका वाममार्गी शाक्तों की तान्त्रिकपूजा के उत्सव के अवसर पर जिस लड़की की पूजा की जाय, -नारी उच्चकुलोद्भव सती साध्वी स्त्री, नाशः 1. कुल का नाश या बरबादी 2. विधर्मी आचारहीन, बहिष्कृत 3. ऊँट, परम्परा वंश को बनाने वाली पीढ़ियों की श्रेणी, पति: 1. कुटुंब का मुखिया 2. वह ऋषि जो दस सहस्र विद्यार्थियों का पालनपोषण करता हैं तथा उन्हें शिक्षित करता है - परिभाषा - मुनीनां दशसाहस्रं योऽनदानादिपोषणात्, अध्यापयति विप्रषिरसौ कुलपतिः स्मृतः । --अपि नाम कुलपतेरियमसवर्णक्षेत्रसंभवा स्यात् श० १, रघु० ११९५, उत्तर० ३१४८, पांसुका कुलटा स्त्री जो अपने कुल को कलंक लगावे, व्यभिचारिणी स्त्री, पालिः —पालिका, For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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