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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 789 ) जबकि उसके आगम 'अकार' का लोप भी हो जाता। लगाना, अटकल लगाना-अन्वमीयत शुद्धेति शतिन है-पापे रति मा कृथाः -भर्तृ० 2177, मा मूमुहत् वपुषव सा-रघु० 15177, 1711 2. समाधान खलु भवंतमनन्यजन्मा मा ते मलीमसविकारपना करना, पुनर्मिलित करना, उप-, तुलना करना, मतिर्भूत् -मा० 1132 (ख) लड लकार की क्रिया समानता करना-तेनोपमीयेत तमालनीलम् ..शि० के साथ भी (यहाँ भी आगम 'अकार' का लोप हो 38, स्तनी मांसग्रंथी कनककलशावित्युपमिती जाता है) मा चैनमभिभाषथाः राम. (ग) लट -- भर्तृ. 320, निस् .. , बनाना, सृजन करना, लकार या विधि लिऊ की क्रिया के साथ भी, 'ऐसा अस्तित्व में लाना --निर्मातं प्रभवेन्मनोहरमिदं न हो कि' 'ऐसा नहीं कि' अर्थ को प्रकट करने में रूपं पुराणो मुनिः-विक्रम०. 1 / 4, यस्मादेष -लघु एनां परित्रायस्व मा कस्यापि तपस्विनो हस्ते सुरेन्द्राणां मात्राभ्यो निर्मितो नपः-मनु० 75 पतिष्यति-श० 2, मा कश्चिन्ममाप्यनर्थों भवेत् 113 2. (क) बनाना, रूप बनाना, संरचना -पंच०५, मा नाम देव्याः किमप्यनिष्टमुत्पन्नं करना-स्नायुनिर्मिता एते पाशाः-हि०१ (ख) भवेत् - का० 307, (घ) जब अभिशाप अभिप्रेत बसाना, (नगर पुर आदि) नई बस्ती बसाना-निर्ममे हो तो शत्रन्त (वर्तमानकालिक विशेषण) के रूप निर्ममोऽर्थेषु मधुरां मधुराकृतिः-रघु० 15 / 28 में प्रयुक्त-मा जीवन्यः परावज्ञादुःखदग्धोऽपि जीवति 3. उत्पन्न करना, पैदा करना, शलाकाजननिर्मितेव ---शि० 2 / 45 या (6) संभावनार्थक कर्मवाच्य- -कु०४।४७, निर्मातु मर्म-व्यथाम्-गीत०३ 4..रचना प्रत्ययांत क्रियाओं के साथ-मैवं प्रार्थ्यम,मा कभी कभी करना, लिखना-स्वनिर्मितया टीकया समेतं काव्यम् बिना किसी क्रिया की अपेक्षा किये प्रयुक्त होता है 5, तैयार करना, निर्माण करना, परि-, 1. मापना -~-मा तावत् 'अरे ऐसा मत (कहो) मा मैवम् मा 2. माप कर निशान लगाना, सीमांकन करना, नामरक्षिण:-मच्छ० 3, 'कहीं कोई पुलिस का प्र--, 1. मापना 2. सिद्ध करना, स्थापित करना, आदमी न हो' दे० 'नाम' के अन्तर्गत। कभी कभी प्रदर्शित करना, सम्-, 1. मापना 2. समान बनाना, 'मा' के वाद 'स्म' लगा दिया जाता है, और उस बराबर बराबर करना-कान्तासंमिततयोपदेशयुजे समय क्रिया में लड या लड लकार का प्रयोग होता -काव्य० 1, दे० संमित 3. समानता करना, तुलना है तथा आगम 'अकार' का लोप हो जाता है, विधि करना 4. युक्त या सहित होना- मृणालसूत्रमपि ते न लिड के साथ प्रयोग बिरलतः देखा जाता है - क्लव्यं . समाति स्तनान्तरे-सुभा०। मा स्म गमः पार्थ . भग० 213, मा स्म प्रतीपं गमः | मांस (नपुं०)[?] मांस (इस शब्द के पहले पाँच बचनों .-श० 4 / 17, मास्म सीमंतिनी काचिज्जनयत्पुत्रमी- | के रूप नहीं होते, और उसके पश्चात् इसके स्थान दृशम् / में विकल्प से 'मास' आदेश हो जाता है।) मा मा+क+टाप] 1. धन की देवी लक्ष्मी-तमाखुपत्र | मांसम [मन--स दीर्घश्च 1. मांस, गोश्त,-समासो मधुपर्कः राजेन्द्र भज मा शानदायकम् सुभा० 2. माता 3. उत्तर. 4 (इस शब्द की व्युत्पत्ति की उद्भावना माप। सम-प-पतिः विष्णु के विशेषण / मनु० 5 / 55 में इस प्रकार की गई है-मां स भक्षमा (अदा० पर०, जुहो०, दिवा० आ०-माति, मिमीते, यिताऽमुत्र यस्य मांसमिहादम्यहम, एतन्मांसस्य मांसत्वं मीयते, मित) 1. मापना--- न्यधित मिमान इवावनि प्रवदन्ति मनीषिणः ) 2. मछली का मांस 3. फल पदानि शि० 7 / 13 2. नापतोल करना; चिह्न का गूदा,-सः 1. कीड़ा 2. मांस बेचने वाली एक वर्ण लगाना, सीमांकन करना- दे० 'मित' 3. (डील डोल संकर जाति / सम०-अद-अद-आविन् --भक्षक में) तुलना करना, किसी भी मापदण्ड से मापना (वि०) मांस खाने वाला, आमिषभोजी (जैसे कि एक -- कु० 5.15 4. अन्दर होना, अन्दर स्थान ढूंढना, जानवर)-भट्टि. 16 / 28, मनु० 5 / 15-- अर्गल: युक्त या सहित होना-तनौ ममुस्तत्र न कंटभद्विषः -लम् मांस का टुकड़ा जो मुंह से नीचे लटकता है, तपोधनाभ्यागमसंभवा मुदः-शि० 1123, वृद्धि गतेऽ- .-अशनम् मांस खाना,-आहारः पाशव भोजन, प्यात्मनि नैव मांतीः 3173 1050, माति मातुम- -उपजोविन् (पुं०) मांस बेचने वाला,- ओवनः शक्योऽपि यशोराशिर्यदत्र ते काव्य०१०-प्रेर० 1. मछली का भोजन 2. मांस के साथ पकाये हुए (मापयति-ते) मपवाना, नाप करवाना - एतेन माप- चावल,-कारि (नपुं०) रक्त, प्रन्थिः मांस की यति भित्तिष कर्ममार्गम् - मुच्छ० 3 / 16, इच्छा० गिल्टी,- जम्,---तेजस् (नपुं०) चर्बी, वसा,-द्राविन (मित्सति-ते) मापने की कामना करना। अनु - , (पुं०) खटमिट्ठा चोका, खट्टी भाजी,---निर्यासः 1. अनुमान लगाना, घटाना (कुछ कारणों के आधार शरीर के बाल,-पिटकः,--कम् 1: मांस की टोकरी पर) धूमादग्निमनुमाय- तर्क०, कु० 2 / 25, अन्दाज / 2. मांस का बड़ा ढेर,-पित्तम् हड्डी,-पेशी 1. पुद्रा For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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