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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ९५ अचि ( न० ) ( --चिः ) [ अर्च+ इसि ] 1. प्रकाशकिरण, लौ प्रदक्षिणाचिर्हवि राददे रघु० ३११४, 2. प्रकाश, चमक, —–प्रशमादचिषाम् - कु० २ २०, रत्न० ४ १६, ( स्त्री० भी ), ( पुं० ) 1. प्रकाशकिरण 2. अग्नि । अर्ज ( वा० पर ० ) [ अर्जति अर्जित ] 1. उपार्जन करना, उपलब्ध करना, प्राप्त करना, कमाना प्रायः प्रेर०, इस अर्थ में – पितृद्रव्याविरोधेन यदन्यत्स्वयमर्जितम् -- या० २।११८, 2. ग्रहण करना - आनर्जुर्नृभुजोऽस्त्राणि भट्टि० १४०७४, ( चु० पर० - या प्रेर०) उपार्जन करना, अधिकार में करना, प्राप्त करना -स्वयमजित, स्वाजित, अपने आप कमाया हुआ । उप प्राप्त करना या उपार्जन करना । अर्जक ( वि० ) [स्त्री० र्जन करने वाला, करने वाला । अर्जनम् [ अर्ज + ल्युट् ] प्राप्त करना, अधिग्रहण करना अर्थानामर्जने दुःखम् - पंच० १११६३, अर्जयितृव्यापारोऽर्जनम् - दाय० । जिंका ] [ अर्ज + ण्वुल् ] उपाअधिकार में करने वाला, प्राप्त -- अर्जुन (वि०) [स्त्री० -ना, -- नी] [ अजें + उनन्, णिलुक् च ] 1. सफेद, चमकीला, उज्ज्वल, दिन जैसा रंगीन, - पिशङ्ग मोजीयुज मर्जुनच्छविम् शि० १३६, 2. रुपहला, नः 1. श्वेतरंग 2. मोर 3. गुणकारी छाल वाला अर्जन नामक वृक्ष 4. इन्द्र द्वारा कुन्ती से उत्पन्न तृतीय पांडव ( इसीलिए इसे 'ऐन्द्रि' भी कहते हैं ) [ अपने कार्यों में पवित्र और विशुद्ध होने के कारण वह अर्जुन कहलाया । द्रोणाचार्य से उसने शस्त्रास्त्र की शिक्षा ली, अर्जुन द्रोण का प्रिय शिष्य था। अपने शस्त्र - कौशल के द्वारा ही उसने स्वयंवर में द्रौपदी को जीता। अनिच्छापूर्वक किसी नियम का उल्लंघन हो जाने के कारण उसने अल्पकालिक निर्वासन ग्रहण किया तथा इसी बीच परशुराम से शस्त्रविज्ञान का अध्ययन किया। उसने नागराजकुमारी उलूपी से विवाह किया जिससे इरावत् नामक पुत्र पैदा हुआ । उसके पश्चात् उसने मणिपुर के महाराज की कन्या चित्रांगदा से विवाह किया – इससे बभ्रुवाहन का जन्म हुआ । इसी निर्वासन काल में वह द्वारका गया और वहाँ कृष्ण के परामर्शानुसार सुभद्रा से विवाह करने में सफलता प्राप्त की । सुभद्रा से अभिमन्यु का जन्म हुआ । उसके पश्चात् उसने खांडव वन को जलाने में अग्नि की सहायता की जिससे कि उसने 'गांडीव धनुष प्राप्त किया । जब उसके ज्येष्ठ भ्राता धर्मराज ने जुए में राज्य खो दिया और पांचों भाई निर्वासित कर दिए गए तो वह देवताओं का अनुरंजन करने के लिए हिमालय पर्वत पर गया जिससे कि कौरवों के साथ होने वाले 'युद्ध में ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपयोग करने के लिए उनसे दिव्य शस्त्रास्त्र प्राप्त कर सके । वहाँ उसने किरातवेषधारी शिव से युद्ध किया, परन्तु जब उसे अपने विपक्षी के वास्तविक चरित्र का ज्ञान हुआ तो उसने उनकी पूजा की, शिव ने भी प्रसन्न होकर अर्जुन को पाशुपतास्त्र दिये । इन्द्र, वरुण, यम और कुबेर ने भी अपने-अपने अस्त्र उसे उपहारस्वरूप दिए। अपने निर्वासनकाल के तेरहवें वर्ष में पांडव राजा विराट् की नौकरी करने लगे--अर्जुन कंम्बुकी के रूप में नृत्यगान का शिक्षक बना | कौरवों के साथ महायुद्ध में अर्जुन ने अद्भुत शौर्य का परिचय दिया। उसने कृष्ण की सहायता प्राप्त की, उसे अपना सारथि बनाया । जिस समय युद्ध के पहले ही दिन अर्जुन ने अपने बंधु-बांधवों के विरुद्ध धनुष उठाने में संकोच किया— उस समय श्रीकृष्ण ने अर्जुन को 'भगवद्गीता' का उपदेश दिया । उस महाभारत के युद्ध में अर्जुन ने कौरव सेना के जयद्रथ, भीष्म तथा कर्ण आदि अनेक दुर्दान्त योद्धाओं को मौत के घाट उतारा । जिस समय युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राज्यसिंहासन पर आसीन हुआ तो उसने अश्वमेघ यज्ञ करने का संकल्प किया -- फलतः अर्जुन की संरक्षकता में एक घोड़ा छोड़ा गया। अर्जुन ने अनेक राजाओं से किया युद्ध तथा अमेक नगर और देशों में घोड़े का अनुसरण किया। मणिपुर पहुँचने पर उसे अपने ही पुत्र बभ्रुवाहन से युद्ध करना पड़ा । फलत: अर्जुन, जब इस प्रकार बभ्रुवाहन से लड़ता हुआ युद्ध में मारा गया तो अपनी पत्नी उरूपी द्वारा दिये गए जादू-तन्त्र से वह पुनर्जीवित किया गया। उसने इस प्रकार सारे भारतवर्ष में भ्रमण किया । जब नाना प्रकार की भेंट उपहार तथा अपहृत संपत्तियों के साथ वह हस्तिनापुर वापिस आया तो उस समय अश्वमेध यज्ञ किया गया। उसके पश्चात् कृष्ण ने उसे द्वारका में बुलाया - और जब पारस्परिक गृह-युद्ध में यादवों का अंत हो गया तो अर्जुन ने वसुदेव और कृष्ण की अन्त्येष्टि-क्रिया की। इसके बाद शीघ्र ही पांडवों अभिमन्यु के एक मात्र पुत्र परीक्षित को हस्तिनापुर को राजगद्दी पर बिठा दिया तथा स्वयं स्वर्ग की यात्रा को चल दिये। पाँचों पांडवों में अर्जन सबसे अधिक पराक्रमी, उदार, गंभीर, सुंदर और उच्च विचारों का मनुष्य था - अपने सब भाइयों में वही प्रमुख व्यक्ति था ] 5. कार्तवीर्य — जिसे परशुराम ने मौत के घाट उतारा था - दे० कार्तवीर्य, 6. अपनी माता का एक मात्र पुत्र, नी 1. दूती, कुटनी 2. गौ 3. एक नदी जिसे 'करतोया' कहते हैं, नम घास । सम० -उपमः सागवान का वृक्ष - छवि ( वि०) For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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