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सदापुष्पफलोऽपि सन्-पंच० ११५१, 8. इन्द्र, 9. .-अर्ह (वि०) सामान्य उपहार के योग्य, --बलाबलम् आहार 10 बारह की संख्या। सम.--अश्मन् (पुं०) मूल्य की दर, उचित मूल्य, मूल्यों में घटत बढ़त, -उपलः सूर्यकान्तमणि,-आह्वः मदार, आक, इन्दुस
सङख्यानम्,-संस्थापनम् मूल्यांकन, वस्तुओं का ङ्गमः सूर्य और चन्द्रमा का संयोग,(दर्श, या अमावस्या), मूल्यनिर्धारण करना, कुर्वीत चैषां (वणिजाम् ) प्रत्यक्ष ~-कान्ता सूर्यपत्नी,चन्दनः एक प्रकार का रक्त- धर्मसंस्थापनं नृप:--मनु० ८।४०२ । चन्दन,-जः कर्ण की उपाधि, यम, सुग्रीव (----जी) । अर्घाशः ( पुं०) शिव । । स्वर्ग के वैद्य अश्विनीकुमार, तनयः 'सूर्य पुत्र' कर्ण
अर्घ्य (वि०) [अर्घ+ यत् अर्घमर्हति) 1. मूल्यवान्, अनर्थ्यका विशेषण, यम और शनि दे० 'अरुणात्मज' (-या)
अनमोल दे० ० के नी० 2. सम्माननीय-तानायमना और ताप्ती नदियाँ,--त्विष (स्त्री०) सूर्य नयमादाय दूरात्प्रत्य द्ययौ गिरि..... कु० ६.५७, शि० की ज्योति,---दिनम्,-वासरः रविवार,-नन्दनः,
१।१४,--य॑म् किसी देवता या सम्मान्य व्यक्ति को --पुत्रः, -सूतः,—सुनुः शनि, कर्ण और यम के नाम,
सादर आहति या उपहार, --अर्घ्यमस्मै--विक्रम० ५, ----बन्धुः, बान्धवः कमल ( सूर्य-कमल ), -मण्डलम
ददतु तरवः पूष्परध्य फलेश्च मधुश्चुतः उत्तरः सर्यमंडल,--विवाहः मदार से विवाह (तीसरा विवाह
३।२४, अय॑मध्य मिति वादिनं नृपम् ... रघु० १११६९, करने वाले पुरुष के लिए पहले मदार से विवाह करने
कु० १-५८, ६।५०। का विधान किया गया है, ताकि तीसरी पत्नी चौथी
अर्च (भ्वा० उभ० ) [ अर्चति-ते, चित | 1. (4) पुजा हो जाय);-- चतुर्थादिविवाहार्थ तृतीयेऽक समुहहेत् ---
करना, अभिवादन करना, सत्कार करना -- -रघु० काश्यप। .) [अर्ज +कलच् न्यङक्त्वादि' कुत्वं
श६, ९०; रा२१, ४१८४, १२६८९, मनु० ३.१३ अर्गल:-लम् तारा०] अगड़ी, किल्ली या मसल
- आर्चीद् द्विजातीन् परमार्थविन्दान् । भट्टि० १३१५, अर्गला-ली J (यह दरवाजे को बन्द करके रोकने के
१४।६३, १७५ (ख ) सम्मान करना अर्थात् अलंकृत लिए लकड़ी के बने यन्त्र है) व्योंडा, सिटकिनी, आगल,
करना, सजाना-उत्तर० २।९, 2. स्तुति करना.
(वेद०), (चु० पर० या प्रेर०) सम्मान करना, अलं--पुरार्गलादीर्घभुजो बुभोज-- रघु० १८।४, १६१६, अनायतार्गलम् - मृच्छ० २, ससंभ्रमेन्द्र द्रुतपातितार्गला
कृत करना, पूजा करना स्वगी कसाचितगर्नयित्वा निमीलिताक्षीव भियाऽमरावती--शि० १, आलं.
-कु० ११५९, अभि... ,समधि - . पूजा करना, अलंसे यह शब्द वाधा, रोक या अवरोध के अर्थ में बहुधा
कृत करना, सम्मान करना, ..आशीभिरभ्यर्च ततः
क्षितीन्दं भट्टि० ११२४, भग० १८१४६ प्र -1. स्तुति प्रयक्त होता है.--ईप्सितं तदवज्ञानाद्विद्धि सार्गल
करना, स्तुतिगान करना 2. मम्मान करना, पूजा मात्मनः --रघ० ११७९, वाधित--वार्यलाभङ्ग इव
करना, -प्रानचुरा जगदर्चनीयम्-भट्टि० २२० । प्रवत्तः-५।४५, कंठे केवलमर्गलेव निहिता जोवस्थ
अर्चक (वि.) | अर्च +ण्वल ] पूजा करने वाला, आरानिर्गच्छतः-काव्य०८, दे० 'अनर्गल' भी, 2. तरंग
धना करने वाला, - ...कः पूजक ---गुरुदेवतिजाक: ...वा झाल।
मनु० ११।२२५ । अगंलिका | अर्गला-कन्+टाप इत्वम् ] छोटी आगल,
अर्चन (वि.) [अर्च+ल्युट | पूजा करने वाला, स्तुति छोटी चटखनी।
करने वाला, नम्, -ना पूजा, अपने से बड़ों का अर्घ (भ्वा० पर०) [ अर्वति, अषित | मल्यवान होना,
और देवों का आदर व सम्मान । मल्य रखना, मल्य लगना, पराक्षका यत्र न सन्ति । अर्चनीय, अच्र्य (म० [अर्च-अनीय, प्यत वा | देशे नार्धन्ति रत्नानि समुद्रजानि --मुभापि० ।
पूजा या आराधना करने के योग्य, सम्माननीय, आदर
मनाया अर्घः । अर्घ +पज । 1. मूल्य, कीमत--कुर्यरघं यथा- णीय-रघ० २।१०, भटि ० ६१७० ।
पण्यं --मनु० ८।३९८ याज्ञ० २१२५१, कुत्स्याः स्युः अर्चा | अर्च-अह-टाप् ] 1. पूजा, आराधना 2. वह कुपरीक्षका हि मणयो यरर्घतः पानिता:-भत० २।१५, प्रतिमा या मनि जिसकी पूजा की जाय-मोहिरण्यावास्तविक मूल्य से घटी हुई,अवमन्यिन, इसी प्रकार अनर्घ थिभिरनीः प्रकल्पिता:--महा० । अमूल्य, महार्घ मूल्यवान् 2. पूजा की सामगो, देवताओं | अचिः (स्त्री०) [ अ +इन् ] किरण, (आग की) या सम्मान्य व्यक्तियों को मादर आहनि या उपहार, ज्वाला या (प्रातः कालीन या सांध्य) ज्योति, आसीदा---कुटजकुममः कल्पिताय तस्मै--मेव० ४ (इस सन्न निर्वाणप्रदोपाचिरिवोपसि--रघु०१२।१, नैशस्याआहुति का सामान निम्नांकित है :..-आप क्षीर चिईतभूज इव छिन्नभूयिष्ठधूमा-विक्रम । कुशाग्रं च दधिमपिः सतण्डलम् । यवः गिद्धार्थकरनेव अचिभमत (वि.) [ अचिस् --मनुप लपटवाला, उज्ज्वल अष्टाङ्गोऽर्घः प्रकीर्तितः । दे० 'अर्य' नीचे। समः । चमकदार-विक्रम० ३।२, (पं.) 1. अग्नि, 2. मूर्य ।
नज्योतिः शस्या
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