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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इन ( 823 ) का रोग, क्षयरोग 2. रोगमार्ग / सम० ग्रह क्षयरोग दो मुख्य शाखाएं हैं-तोत्तरीय या कृष्णयजुर्वेद ; तथा का आक्रमण,—ग्रस्त ( वि०) क्षयरोगी, घ्नी वाजसनेयि या शुक्लयजुर्वेद / अंगूर। यशः [यज्+(भावे) नहु] 1. याग या मख, यज्ञ सम्बन्धी यक्ष्मिन् (वि०) [ यक्ष्म+इनि ] जो क्षयरोग से ग्रस्त कृत्य --यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवाः, तस्माद्यज्ञात्सर्व हुतः या पीड़ित है मनु० 3 / 154 / ---आदि 2. पूजा का कार्य, कोई भी पवित्र या भक्ति यज (भ्वा० उभ० यजति-ते, इष्ट, कर्मवा० इज्यते, इच्छा० सम्बन्धी क्रिया (प्रत्येक गृहस्थ, विशेषत: ब्राह्मण को यियक्षति-ते) 1. यज्ञ करना, त्याग पूर्वक पूजा करना प्रति पाँच ऐसे भक्तिपरक कृत्य प्रतिदिन करमे पड़ते (प्रायः 'यज्ञार्थक' शब्दों के करण से संबद्ध); है, भूतयज्ञ, मनुष्ययज्ञ, पितृयज्ञ, देवयज्ञ और ब्रह्मयज्ञ, -यजेत राजा क्रतुभि:-मनु०७१७९,५१५३, 6.36,11 // यही पाँचों समष्टिरूप से 'पञ्च महा यज्ञ' कहलाते 40, भट्टि० 14 / 90, इसी प्रकार 'अश्वमेधेनेजे, पाकयज्ञे- है, दे० 'महायज' और 'पाँच' शब्द पृथक्-पृथक्) नेजे-आदि 2, आहुति देना (देवतापरक कर्म० तथा 3. अग्नि का नाम 4. विष्ण का नाम। सम० --अंशः यज्ञीय साधन या आहुतिपरक करण० के साथ) यज्ञ का एक भाग, भुज (पु०) देवता देव-कु० -पशुना रुद्र यजते-सिद्धा० यस्तिलैः यजते पितृन् 3 / 14 अ(आ)गारः,-रम् एक यज्ञीय भूमि, अङ्गम ---महा०, मनु० 8 / 105, 11 / 118 3. पूजा करना, 1. यज्ञ का एक भाग 2. कोई भी यज्ञीय आवश्यकता, सुभूषित करना, सम्मान करना, आदर करना प्रेर० यज्ञ का साधन यज्ञाङ्गयोनित्वमवेक्ष्य यस्य-कु. (याजयति-ते) 1. यज्ञ करवाना 2. यज्ञ में सहायता 1117, (-गः) 1. गूलर का पेड़ 2. विष्णु का नाम, देना / अ, परि, प्र यज्ञ करना, आहुति देना, ----अरिः शिव का विशेषण, ----अशनः देव, आत्मन् ... सम् अलंकृत करना, पूजा करना समयष्टास्त्रम- (0), ईश्वरः विष्णु का नाम, उपकरणम् यज्ञपात्र ण्डलम् भट्टि० 15 / 96 / / या यज्ञ का कोई आवश्यक उपकरण,—उपवीतम् द्विजों यजतिः [यज्-तिप्] 1. उन यज्ञीय अनुष्ठानों का द्वारा पहना जाने वाला यज्ञोपवीत (अब आज कल पारिभाषिक नाम जिनके साथ 'यजति' क्रिया का और निम्न जातियाँ भी पहनती हैं) जो बायें कन्धे प्रयोग होता है (आगे के विवरण के लिए 'जहोति' के ऊपर तथा दाहिनी भुजा के नीचे पहना जाता है शब्द देखो)। --दे० मनु० 2063 (मूल रूप से 'यज्ञोपवीत' उपयजत्रः [ यज्-अत्र | 1. वह गहस्थ जो यज्ञीय अग्नि को नयन संस्कार का ही नाम है जिसमें जनेऊ पहना स्थिर रखता है, अग्निहोत्री, त्रम् अभिमन्त्रित जाय),-कर्मन् (वि०) यज्ञकार्य में व्यस्त (नपुं०) अग्नि का स्थापित रखना। यज्ञीय कृत्य,कल्प (वि०) यज्ञ की प्रकृति का, या यजनम् | यज्+ल्युट ] 1. यज्ञ करने की त्रिया 2. यज्ञ, यज्ञ के समान, कोलकः वह खूटा जिसके साथ यज्ञीय -देवयजन संभवे देवि सीते --उत्तर. 4 3. यज्ञ बलि-पशु बाँधा जाता है, कुण्डम् हवनकुण्ड, अग्निकरने का स्थान / कुण्ड, - कृत (वि०) यज्ञानुष्ठान करने वाला, (पुं०) यजमानः [यज+शानच्] 1. वह व्यक्ति जो नियमित रूप 1. विष्णु का नाम 2. यज्ञ कराने वाला पुरोहित,-ऋतुः से यज्ञ करता है और उसका व्ययभार स्वयं वहन 1. यज्ञीय कृत्य 2. पूर्णकृत्य या मुख्य अनुष्ठान करता है 2. वह व्यक्ति जो अपने लिए यज्ञ करवाने 3. विष्णु का विशेषण,---नः वह राक्षस जो यज्ञों में के लिए पुरोहित या पुरोहितों को नियुक्त करता विघ्न डालता है, * दक्षिणा यज्ञीय उपहार, यज्ञानुष्ठान है 3. आतिथेयो, संरक्षक, धनी व्यक्ति 4. कुल का कराने वाले पूरोहित को दी जाने वाली दक्षिणा, प्रधान पुरुष। सम० शिष्यः स्वयं यज्ञ करने वाले .- दीक्षा 1. किसी यज्ञीय कृत्य में प्रवेश या उपक्रम ब्राह्मण का शिष्य-श०४। 2. यज्ञ का अनुष्ठान मनु० ५११६९,-द्रव्यम् यज्ञ के यजिः [यज ---इन्] 1. यज्ञकर्ता 2. यज्ञ करने की क्रिया लिए प्रयुक्त होने वाली कोई वस्तू (उदा० यज्ञ पात्र 3. यज्ञ-दानमध्ययनं यजिः मनु० 1079 / आदि), -पतिः 1. जो किसी यज्ञ की स्थापना या पजुस (नपुं०) [यज्+उसि] 1. यज्ञीय प्रार्थना या मन्त्र, प्रतिष्ठा करता है दे० 'यजमान' 2. विष्णु का नाम, 2. यजुर्वेद का पाठ, यजुर्वेद के गद्यात्मक मन्त्रों का -पशुः 1. यज्ञ के लिए पश, यज्ञीय बलि 2. घोड़ा, संग्रह जो यज्ञ के अवसर पर पढ़े जायं-तु० मन्त्र -पुरुषः, - फलदः विष्णु के विशेषण, भागः 1. यज्ञ 3. यजुर्वेद का नाम / सम० विद् (वि.) यज्ञीय का एक अंश, यज्ञ के उपहारों में हिस्सा 2. देव, देवता, विधि का ज्ञाता, - वेदः तीन (अथर्व वेद को सम्मिलित ---भुज् (पुं०) देव, देवता,.. भूमिः (स्त्री०) यज्ञ के करके) या चार प्रधान वेदों में द्वितीय (यह यज्ञ लिए स्थान, यज्ञीय भूमि,- भत् (पुं०) विष्णु का सम्बन्धी पवित्र पाठ का गद्यात्मक संग्रह है। इसकी / विशेषण,-भोक्त (पुं०) विष्णु या कृष्ण का विशेषण, For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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