________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1227 ) भदिनः-महा० ३१३१२॥३,-यज्ञः और्ध्वदैहिक क्रिया / धीनं नराधिपं वर्जयन्ति नरा दूरात-रा०३।३३।५। का एक भाग,-विलयः किसी पवित्र नदी में किसी अस्विन्न (वि०) [न० त०] जिसे भली भांति उवाला न मृतक की अस्थियों को प्रवाहित करना,-सारः, स्नेहः गया हो। वसा, मज्जा। अस्वेद्य (वि.) न+स्विद् ---ण्यत] जिसे पसीना लाने के अस्नात (वि.) [न० त०] जिसने स्नान न किया हो। उपयुका न समझा जाय। अस्पृष्ट (वि.) [न--स्पृश्--क्त] जो (किसी कथन सें) आत (वि.हिन्+क्त जो बजाया न गया हो-अह आबूत न हो, (उसके) अंतर्गत न हो --अस्पष्टपुरुषा- तायां प्रयाणभेर्याम---का। न्तरं (शब्दम्)--कु. 675 / / | अहम् ( सर्व०) [अस्मद् का कर्तृकारक एक वचन] मैं / अस्पृष्टमैथुना (वि.) [न ब] कुमारी, अक्षतयोनि / ___सम० जुस् (पुं०) अहंकारी, जो केवल, अपना ही अस्पृह (वि.) [न० ब०] निरीह, निरिच्छ, जिसे इच्छा चिन्तन करें,-स्तम्भः अहङ्कार, घमंड / न हो। अहिचक्रम् [प० त०] तान्त्रिकों का एक आरेख। अस्फुट (वि.) न० त०] जो पूर्ण विकसित न हो--अस्फु- अहिबियापहा (स्त्री०) [अहिविप-+-अप+हा-+अङ टावयवभेदसुन्दरम्---नारा० / +टाप्] एक पौधे का नाम जिसके सेवन से विष दूर अस्मिमानः [त० स०] स्वाभिमान, अहंकार / हो जाता है। अस्मत (वि.न. त०] 1. याद न किया हुआ 2. जिसका | अहोलाभकर (वि०) [अल्पेऽपि, अहोलाभो जात इति प्रामाणिक ग्रन्थों में उल्लेख न हो। विस्मयं कुर्वाण: थोड़े लाभ से ही संतुष्ट होने वाला अस्वाधीन (वि.) [न० त०] जो स्वतन्त्र न हो अस्वा / व्यक्ति / आ आंहस्पत्य ( वि० ) [ अंहस्पति+यज ] मलमास | आकूतिः (स्त्री०) [आ++क्तिन् ] शतरूपा और मन संबंधी। __ की एक कन्या का नाम / आकण्ठम् (अव्य०) गले तक। सम-- तृप्त (वि.) आक्पारम् (नपुं०) कुछ साम-मन्त्रों के नाम / , स्वादिष्ट भोजनों से गले तक छिका हुआ। आकरकर्म (नपुं०) [ष० त०] खनिकार्य-को० अ० 2 / आकलना [आ+कल+युच् / टाप् ] गिनना, समझ, आकरग्रन्थः [प० त०] मूलग्रन्थ, आदिग्रन्थ / अनुमान, मूल्य आँकना। आकरजम् [50 त०] रत्न, जड़ाऊ गहना। भाकल्पम् / (अ.) चार युगों के चक्र की अवधि तक, आकारवर्ण (वि.) [न० ब०] रंग और आकार कमनीय। आकल्पान्तम् जब तक संसार है तब तक / आकृत (वि.) [आ+ +क्त ] निमित, बना हुआ आकाक्षा [ आ+काश् +अच् + टाप् ] अपेक्षा, आशा ___..- यद्वा समुद्रे अध्याकृते गृहे --ऋ० 81111 / -असत्यामाकाक्षायां सन्निधानमकारणम् -मै० सं० आकृतिः (स्त्री०) [आ-+क+क्तिन्] 1. छन्द 2. (गणित) 6 / 4 / 23 पर शा० भा० / बाईस की संख्या। आकाशः,-शम् [आकाशन्ते सूर्यादयोऽत्र-आकाश+घञ] आकृतियोगः [ष० त०] नक्षत्रपुंज / 1. आस्मान 2. अन्तरिक्ष 3. मुक्त स्थान / सम० | आकर्षः [आ+ कृष्-घा ] 1. धनुष भाकर्षः शारि -पथिकः सूर्य, बदष्टिः ,-बद्धलक्ष, जो बिना / फलके बूतेऽक्षे काम केऽपि च-हेम 2 विषाक्त पौधा उद्देश्य से इधर-उधर देखता है, - मुखिनः (व० व०)। -~~-महा० 5 / 40 / 9 / शव सम्प्रदाय के लोग, जो अपना मुंह आकाश की : आकृष्ट (पि०)[आ- कृष्+क्त ] खींच हुआ, आकर्षित ओर रखते हैं,-मुष्टिहननम् मूर्खता का कार्य जैसे किया हुआ, ऐंचा हुआ। आकाश की ओर घुसा उठाना, व्यर्थ कार्य,--शयनम् आकोपः [आ+कुप्+घञ ] चिड़चिलपन, मृदुक्रोध / / खुली हवा में सोना। आकौशलम् (नपुं०) [आ-+-कुशल+अण् ] विशेषता का आकुञ्चनम् [ आ+कुञ्च् + ल्युट् ] एक प्रकार का युद्ध- ____ अभाव, नैपुण्य की कमी विवर्षतुमथात्मनो गुणान् कौशल-शुक्र० 4 / 1100 / भृशमाकौशलमार्यचेतसाम्-शि०१६।३० / आकृतम् [आ+कू+क्त ] (प्रायः समास के अन्त में | आक्रमः [आ-+क्रम् -+घञ पौड़ी, रोढ़ी का डंडा -केनाप्रयुक्त) प्रस्तुतीकरण--तु० धर्माकूतम् / क्रमेण यजमानः स्वर्ग लोकमा काते-बु० 3 / 116 / For Private and Personal Use Only