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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1204 ) रूप से देखें तो यह प्रदेश कावेरी से परे नहीं फैला / पांडच --भारत के बिल्कूल दक्षिण में स्थित एक देश जो है। इसकी राजधानी कांची थी जिसे आजकल चोलदेश के दक्षिणपश्चिम में विद्यमान है। मलयपर्वत कांजीवरम कहते हैं और जो मद्रास के 42 मील और ताम्रपर्णी नदी का स्थान निर्विवाद रूप से दक्षिण-पश्चिम में वेगवती नदी के किनारे स्थित है। निश्चत हो चुका है, तु० बा० रा० 2 / 31 / इस द्वारका-दे० 'सौराष्ट्र' के अन्तर्गत / प्रदेश की वर्तमान तिन्नेवली से एकरूपता स्थापित की निषध - एक देश का नाम जहाँ नल का राज्य था। इस जा सकती है। रामेश्वर का पावनद्वीप इसी राज्य की राजधानी अलका थी जो अलकनन्दा नदी के के अन्तर्गत है। कालिदास ने पांडयदेश की राजधानी तट पर स्थित है। ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तरी का नाम 'नाग-नगर' बताया है जो संभवतः मदास से भारत का वर्तमान कुमायू प्रदेश इसका एक भाग 160 मील दक्षिण में वर्तमान 'नागपत्तन' ही है, तु. था। यह एक वर्षपर्वत का नाम भी है। रघु० 6159-64 पंचवटी-दे० 'जनस्थान' के अन्तर्गत। पारसीक-- पशिया देश के रहने वाले लोग। संभवतः यह पंचाल एक प्रसिद्ध प्रदेश का नाम। राजशेखर के शब्द उन जातियों के लिए भी व्यवहार में आता था अनुसार (बा० रा० 10186) यह प्रदेश गंगा यमुना जो भारत की उत्तरपश्चिमी सीमा में सोमावर्ती का मध्यवर्ती भाग था, इसलिए यह गंगा दोआब जिलों में रहते है। इनके देश से 'वनायदेश्य' नाम कहलाता था। द्रुपद के काल में यह प्रदेश चर्मण्वती से घोड़ों के आने का उल्लेख मिलता है। (चंबल) के तट से लेकर उत्तर में गंगाद्वार तक पारियात्र-भारत को एक मख्य पर्वत शृंखला। संभवत: फैला हुआ था। भागीरथी का उत्तरीभाग उत्तर यह वही है जिसे हम शिवालिक पहाड़ कहते हैं और पंचाल कहलाता था / और इसकी राजधानी अहि जो हिमालय के समानान्तर उत्तर पूर्व में गंगा के च्छत्र थी। इस प्रदेश का दक्षिणीभाग 'दक्षिणपंचाल' दोआब की रक्षा करता है। कहलाता था जो द्रुपद की मृत्यु के पश्चात् हस्तिनापुर प्रतिष्ठान पुरूरवस की राजधानी। पुरूरवा एक प्राचीन की राजधानी में विलीन हो गया। काल का चन्द्रवंशी राजा था। यह स्थान प्रयाग या पापूर-भवभूति कवि की जन्मभमि / यह नगर नागपूर इलाहाबाद के समने स्थित था। हरिवंश पुराण में जिले में चन्द्रपुर (वर्तमान चाँदा) के निकट कहीं पर बताया गया है कि यह स्थान प्रयाग के जिले में गंगा बसा हुआ था। नदी के उत्तरी तट पर बसा हआ था। कालिदास पप्रावती : मालवाप्रदेश में सिन्धु नदी के तट पर स्थित ने इसे गंगा यमुना के संगम पर स्थित बतलाया वर्तमान नरवाड़ से इसकी एकरूपता मानी जाती है। तु० विक्रम०२।। है। इसके आस-पास और दूसरी नदियाँ पारा या मगध दक्षिणी विहार या मगध का देश / इसकी पुरानी पार्वती, लण, और मधुवर हैं जिनका भवभूति ने पारा राजधानी गिरिव्रज (या राजगृह) थी। इसमें पाँच लावणी और मधुमती के नाम से उल्लेख किया है यह पर्वत-विपुलगिरि, रत्नगिरि, उदयगिरि, शोगिरि नगर के आसपास बहने वाली नदियाँ हैं। भवभूति और वैभार (व्याहार) गिरि सम्मिलित थे। इसकी के मालतीमाधव का वर्णित दृश्य यह नगर है। दूसरी राजधानी पाटलिपुत्र थी। परवर्ती साहित्य पंपा - एक प्रसिद्ध सरोबर का नाम जो आजकल पेनसिर में मगध का नाम कीकट भी आया है। कहलाता है। इसके निकट ही ऋष्यमूक पर्वत मत्स्य या विराट-धीलपुर के पश्चिम में स्थित देश / कहा विद्यमान है। इस नाम की नदी सरोवर से निकली जाता है कि पांडव लोग दशार्ण के उत्तर में शौरसेन है; विशेषकर इसका उत्तरीभाग चन्द्रदुर्ग के मध्यवर्ती तथा रोहितक के भूभाग से होते हुए यमना के तट शिलासरोवर से निकला है। यही संभवतः मूल पंपा इस प्रदेश में आये थे। विराट देश की राजधानी था, और चन्द्रदुर्ग ही ऋष्यमूक पर्वत / बाद में यह संभवतः वैराट ही थी जो आजकल जयपुर से 40 नाम इस सरोवर से नदी में परिवर्तित हो गया जो। मील उत्तर में वैरात के नाम से विख्यात है। इससे निकली। मलय भारत की सात मुख्य पर्वत श्रृंखलाओं में से एक / पाटलिपुत्र गंगा और शोण नदी के संगम पर स्थित इसको एकरूपता संभवतः मैसूर के दक्षिण में फैले उत्तरी बिहार या मगध में एक महत्त्वपूर्ण नगर / यह हुए घाट के दक्षिणी भाग से की जाती है जो ट्रावन'कुसुमपुर' या 'पुष्पपुर' भी कहलाता था। संस्कृत के कोर की पूर्वी सीमा बनाता है। भवभूति के लौकिक साहित्य में इस नाम का उल्लेख मिलता है। कहते कथनानुसार यह प्रदेश कावेरी से घिरा हुआ है हैं कि लगभग अठारहवीं शताब्दी के मध्य में यह नगर (महावीर० 513 तथा रघु० 4 / 46) / कहते है कि एक नदी की बाढ़ की चपेट में आकर नष्ट हो गया। यहाँ इलायची, काली मिर्च, चंदन और सुपारी के गध का नाम पाटलिपुत्र थी, मालत थे। For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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