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( २२१ )
ख)
ऊम् (अव्य० ) [ ऊय् + मुक् ] ( क ) प्रश्नवाचकता क्रोध (ग) भर्त्सना, दुर्वचन (घ) धृष्टता और (ङ) ईर्ष्या को प्रकट करने वाला विस्मयादिद्योतक अव्यय । ऊम् (स्वा० आ० ) ( ऊयते, ऊत) बुनना, सीना । कररी = दे० उररी ।
ऊरव्यः (स्त्री० व्या) [ ऊरु + यत् ] वैश्य, तृतीय वर्ण का पुरुष (ब्रह्मा या पुरुष की जंघाओं से पैदा होने के कारण ) तु०, मनु० १।३१, ८७ ।
ऊरु: (पुं० ) [ ऊर्णु + कु, तुलोपः ] 1. जंघा - ऊरू तदस्य यद्वैश्यः -- ऋक् १०।१०।१२ । सम० - अष्ठीवम् जंघा और घुटना, उद्भव (वि०) जंघा से उत्पन्न - विक्रम ० ११३, ज, जन्मन्, संभव (वि०) जंघा से उत्पन्न - ( पुं०) वैश्य, - वघ्न, -द्वयस्, मात्र ( वि० ) जंघाओं तक पहुंचने वाला, घुटनों तक, - पर्वन् (पुं० ) ( नपुं० ) घुटना, फलकम् जांघ की हड्डी, कूल्हे की हड्डी । ऊदरी दे० उररी ।
ऊर्ज, (स्त्री० ) [ ऊर्ज, + क्विप् ] 1. सामर्थ्य, बल 2. सत्त्व, भोजन ।
ऊर्जः [ ऊर्ज, + णिच् +अच् ] 1. कार्तिक का महीना - शि० ६।५० 2. स्फूर्ति 3. शक्ति, सामर्थ्य 4. प्रजननात्मक शक्ति 5. जीवन, प्राण, र्जा 1. भोजन, 2. स्फूर्ति 3. सामर्थ्य, सत्त्व 4 वृद्धि ।
ऊर्जस् (नपुं० ) [ ऊर्ज, + असुन् ] 1. बल, स्फूर्ति 2. भोजन । ऊर्जस्वत् (वि० ) [ ऊर्जस् + मतुप् ] 1. भोज्य-समृद्ध, रसीला 2. शक्तिशाली ।
बड़ा ।
ऊर्जस्वल ( वि० ) [ ऊर्जस् + वलच् ] बड़ा शक्तिशाली, दृढ़, ताकतवर- रघु० २५०, भट्टि० ३।५५ । ऊर्जस्विन् ( वि० ऊर्जस् + विन् ] ताकतवर, दृढ़, ऊर्जित ( वि० ) [ ऊर्ज + क्त 1. शक्तिशाली, दृढ़, ताकतवर मातृकं च धनुरूजितं दधत् रघु० १११६४, बलशाली, दृढ़ (वाणी) - शि० १६ । ३८ 2. पूज्य, , बढ़िया, श्रेष्ठ, सुन्दरश्री:- शि० १६।८५, मकरोजित केतनम् - रघु० ९ ३९ 3. उच्च, भव्य, तेजस्वी - 'आश्रयं वच:- कि० २।१ जोशीला या शानदार, तम् 1. सामर्थ्य, ताकत 2. स्फूर्ति ।
ऊर्णम् [ ऊर्णु + ड] 1. ऊन 2. ऊनी वस्त्र । सम० - नाभः, नाभिः पटः मकड़ी - ब्रद, दस्― ( वि० ) ऊन की भांति नरम |
ऊर्णा [ऊर्ण+टाप् । 1. ऊन- रघु० १६।८७ 2. भौंहों का मध्यवर्ती केशपुंज । सम० - पिंड: ऊन का गोला । ऊर्णायु ( वि० ) [ ऊर्णा + यु | ऊनी, यु: 1. मेंढा 2. मकड़ी - भामि० १।९०3. ऊनी कंबल । ऊर्णु (अदा० उभ० ) (ऊर्णो (ण) ति, उर्णुते ऊणित ) ढकना, घेरना, छिपाना - भट्टि० १४।१०३, शि० २०१४
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( प्रेर० ) ऊर्णावयति, ( इच्छा० ) ऊर्णुनूषति, उर्जुन- नु - विषति; प्र ढकना, छिपाना आदि ।
ऊर्ध्व ( वि० ) [ उद् + हा +ड पृषो० ऊर् आदेशः ] 1. सीधा, खड़ा, ऊपर का, केश आदि, ऊपर की ओर उठता हुआ 2. उठाया हुआ, उन्नत, सीधा खड़ा - हस्तः पादः आदि 3. ऊँचा, बढ़िया, अपेक्षाकृत ऊँचा या ऊपर का 4. खड़ा हुआ (विप० आसीन ) 5. फटा हुआ, टूटा हुआ (बाल आदि ), ध्वम् उन्नतता, ऊँचाई, र्ध्वम् ( अव्य० ) 1. ऊपर की ओर, ऊँचाई पर, ऊपर 2. बाद में ( = उपरिष्टात् ) 3. ऊँचे स्वर से, जोर से 4. बाद में, पश्चात् (अपा० के साथ ) — ते त्र्यहादूर्ध्वमाख्याय - कु० ६।९३, रघु० १४।६६ । सम० कच, केश (वि०) 1. खड़े वालों वाला 2. जिसके बाल टूट गये हों (चः ) केतु, कर्मन् (नपुं०)
-क्रिया 1. ऊपर को गति 2. ऊँचा पद प्राप्त करने के लिए चेष्टा ( -- पुं० ) विष्णु, कायः, -- कायम् शरीर का ऊपरी भाग, गः, -- गामिन् ( वि० ) ऊपर जाने वाला, चढ़ा हुआ, उठता हुआ, गति (वि० ) ऊपर की ओर जाने वाला ( स्त्री० तिः) गमः, -गमनम् 1. चढ़ाव, उन्नतता 2. स्वर्ग में जाना, चरण, पाव ( वि० ) ऊपर को पैर किये हुए ( णः ) शरभ नाम का एक काल्पनिक जन्तु, जानु, ज्ञ, जु ( वि० ) 1. घुटने उठाये हुए, पुट्टी के बल बैठा हुआ -- शि० ११।११ 2. उकडं वैटा हुआ, दृष्टि, नेत्र (वि० ) 1. ऊपर हुआ 2. ( आलं०) उच्चाकांक्षी, महत्त्वाकांक्षी (स्त्री० - टिः ) भौंओं के बीच में अपनी दृष्टि को संकेन्द्रित करना (यो० द० ), देहः अन्त्येष्टि संस्कार, पातनम् ऊपर चढ़ाना, परिष्करण ( जैसे पारे का ) - पात्रम् यज्ञीय पात्र याज्ञ० १।१८२, -मुख (वि० ) ऊपर को मुंह किये हुऐ, उन्मुख कु० १११६, रघु० ३।५७, मौहूर्तिक (वि०) थोड़ी देर के पश्चात् होने वाला, रेतस् ( वि० ) अनवरत ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला, स्त्री-संभोग से सदैव विरत रहने वाला - ( पुं० ) 1. शिव 2. भीष्म, लोकः ऊपर की दुनिया, स्वर्ग, बर्त्मन् (पुं० ) पर्यावरण, बातः - वायुः शरीर के ऊपरी भाग में रहने वाली वायु - शायिन् (वि० ) ऊपर को मुंह ( बच्चे की भाँति ) करके चित सोया हुआ - - ( पु० ) शिव, शोधनम् वमन करना, श्वासः साँस छोड़ना, प्राण त्यागना, -- स्थितिः (स्त्री० ) 1. अश्व पालन 2. घोड़े की पीठ 3. उन्नतता, श्रेष्ठता ।
ऊर्मि: (पुं०, स्त्री० ) [ ऋ + मि, अर्तेरुच्च ] 1. लहर, झाल - पयोवेत्रवत्याश्चलोमि मेघ० २४ 2. धारा प्रवाह 3. प्रकाश 4. गति, वेग 5 वस्त्र की शिकन या चुन्नट 6. पंक्ति, रेखा 7. कष्ट, बेचैनी, चिन्ता ।
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