________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1348 ) संरोषः [सम् + रुध् +धन] बंधन, कैद। (आक्रमण से)-संशोध्य विविध मार्ग--मनु० संख्द (वि.) [सम्+रह+क्त] जो गहराई तक घुसा 7/185 / हुआ हो-ततो मामतिविश्वस्तं संरूढशरविक्षतम संधि (भ्वा० उभ०) संभोगसुख के लिए पहुँचना / -महा० 3 / 17411 / / संश्रयः[सम्+श्रि+अच ] 1. आसक्ति 2. किसी पदार्थ संवत्सरनिरोधः एक वर्ष की कैद। का कोई अंश। संवद (भ्वा० पर०) परस्पर मिलाना। संश्रवस् (नपुं० [सम् --श्रु+ असुन ] पूरी कीर्ति या संबवनम् [संवद्-+ ल्युट्] संदेश / ख्याति / संवादः [सम्+वद्+घञ्] अभियोग, मुकदमा / संश्लिष्ट (वि०) [ सम् +-श्लिष्क्त ] मिश्रित, अव्यवसंवर्गविद्या (दर्शन०) अवशोषण या विश्लेपण का शास्त्र। स्थित,-ष्टम् (नपुं०) राशि, ढेर / संवासः [सम् +वस्+घञ] सहवास / संसक्त (वि.) [सम् सञ्। त] 1. विषयासक्त संवहनम् [सम्+वह+ ल्युट्] 1. मार्गदर्शन करना, नेतत्व 2. अनुरक्त / ... करना 2. प्रदर्शन करना, दिखलाना / संसज्जमान (वि.) [सम्+सज+शानच् ] 1. साथ संविग्न (वि.) [सम् +विज+क्त] 1. क्षुब्ध, उत्तेजित / लगने वाला 2. संकोच करने वाला, झिझकने वाला, 2. भयभीत, डरा हुआ 3. इधर-उधर चक्कर लगाता ...वाइमात्रेण न भावेन वाचा संसज्जमानया-रा० हुआ। 2 / 25 / 39 / संविज्ञानम् [सम् + वि+ज्ञा+ल्युट्] 1. सहमति, अनुमोदन | संसवनम् [ सम् +-सद्+ल्युट् ] खिन्नता, अवसाद / 3. सम्यक ज्ञान 4. प्रत्यक्ष ज्ञान / / संसिद्धिः [सम्+सिध+-क्तिन् ] 1. अन्तिम परिणाम संविद सम्+विद्+क्विप] 1. मतैक्य-स्तुतीरलभमा- 2. अन्तिम शब्द / नानां संविदं वेद निश्चितान् महा० 12115116 | संसृ (भ्वा० पर०) 1. स्थगित करना, उठा रखना 2. काम 2. मित्रता-संविदा देयम् --तै० उ० 1111113 / / में लगाना। संविषु (स्त्री०)[सम्+-वि+धा+क्विप्] व्यवस्था रावणः संसारसागरः ) जन्म मरण का समुद्र / संविधं चक्रे महा० 3 / 284 / 2 / संसाराधिः संविभक्त (वि.) [सम्-वि+भज्+क्त] बांटा हुआ, संसारार्णवः विभाजित, पृथक किया हुआ। संसारपङ्कः संसार रूपी कीचड़ / संवेशः [सम्+विश्+घा] कुर्सी। संसारवृक्षः सांसारिक जीवन रूपी वृक्ष / संवेशनम सिम-विश+ल्यूट] सोना, नींद लेना संवेशनो- | संसेव (म्वा० आ०) 1. सम्मिलन करना 2. सेवा करना, स्थापनयोः–प्रतिमा। सेवा में प्रस्तुत रहना 3. व्यसनी होना / संवारः सम् ++घा] बाधा, विघ्न / संसेवा [ सम्+सेव + अङ+टाप् ] 1. (किसी सभा, समाज संवृतसंवार्य (वि.) जो गोपनीय बातों को गुप्त रखता है। में) नित्यप्रति जाता 2. उपयोग, काम में लगाना संवर्तः [सम्+वृत्+घञ ] सिकोड़ना, सिकुड़न,-पर्या- 3. आदर सत्कार, पूजा अर्चना।। यात् क्षणदृष्टनष्टककुभः संवर्तविस्तारयोः --म० वी० / संस्कृ (तना० उभ०) 1. सचय करना--ये पक्षापरपक्षदोष __ सहिताः पापानि संस्कुर्वते-मच्छ० 9 / 4 2. यथासंवर्तित (वि.) [सम् + वृत्+क्त ] 1. लिपटा हुआ, | थता पर पहुँचना (गणित)। लपेटा हआ 2. बराबर आया हुआ। संस्कारवती (स्त्री) जिसे चमका कर उज्ज्वल कर दिया संधिः [सम+वृथ्+क्तिन् ] पूर्णवृद्धि, अम्युदय, शक्ति।। गया है-संस्कारवत्येव गिरा मनीपी-कु० 1128 संव्यस् (दिवा० पर०) व्यवस्थित करना, एकत्र करना। संस्कारवस्वम् प्रमार्जन, परिष्कार-कि० 17 / 6 / संम्यूहः [सस्+वि+ऊह+घञ ] व्यवस्था, क्रम-संस्कृतात्मन् (वि०) आध्यात्मिक अनुशासन, या धर्मस्थापन / कृत्यों के द्वारा जिसने अपने आपको पवित्र कर संशित (वि.) [सम+शो+क्त अपने संकल्प को लिया है। दृढ़ता पूर्वक निभाने वाला (जैसा कि 'संशितव्रत' | संस्कृतिः | सम्++क्तिन्] 1. परिष्कार 2. तैयारी कड़ाई के साथ अपना व्रत पूरा करने वाला)। 3. पूर्णता 4. मनोविकास / संशयाक्षेपः एक अलंकार जिसमें संदेह का निवारण समा-संस्तम्भनम् [सम्+स्तम्भ+ल्यूट] रोकना, बंधन में विष्ट होता है। डालना, पकड़लेना। संशयोपमा संदेह के रूप में न्यस्त तुलना / संस्तीर्ण (वि.) [सम्+स्तु+क्त ] छितराया हुआ, संशष (दिवा. पर०) शुद्ध करना, सुरक्षित रखना बखेरा ह-समिद्वन्तःप्रान्त संस्तीर्णदर्भाः-श०४।८। For Private and Personal Use Only